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Shashi Bhushan Mishra
भरोसे की लाठी गई टूट ऐसे, लिखा हर्फ़ मिट जाए पानी पे जैसे, ये आबोहवा भी नहीं रास आई, बदलते हैं रिश्ते भला कैसे कैसे, जो अरमान थे रह गए दफ़्न दिल में, सियासत मुहब्बत हुए एक जैसे, जहाँ सम हो बंधन टिकेगा वहीं पर, बचे स्वार्थपरता में संबंध कैसे, सँभलकर है चलना ज़रूरी यहाँ पर, ये राह-ए-गुज़र भी है मझधार जैसे, जहाँ प्रेम विश्वास कायम हो शक पे, न टिकता निराधार ही प्यार जैसे, किया सात फेरों में वादा जो 'गुंजन', ढहा वो मकां ताश के पत्ते जैसे, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #भरोसे की लाठी#
Ganesh Din Pal
🌹लाठी ऊपर वाले की करती नहीं आवाज। अपराधी, पापी, पाखंडी सब रहते नाराज। देर भले लगती है भैया नाही है अंधेर। पीट पाटकर ठांव लगाते नाही करते देर।🌹 ©Ganesh Din Pal #लाठी ऊपर वाले की
#लाठी ऊपर वाले की
read morePradeep Kp
दिल का दरिया बह ही गया राहों में यूँ जो तू मिल गया मुश्किल से मैं संभला था, हाँ टूट गया हूँ फिर एक दफ़ा #कबीर_सिंह #लिरिक्स #lyrics #hindi
#लिरिक्स #lyrics #Hindi #संगीत #कबीर_सिंह
read moreDR. LAVKESH GANDHI
नफरत इतनी नफरत दिल में छिपाए कैसे हो नफरत के शोलों दिल में दबाए कैसे हो #नफरत # #नफरत दिल की # #yqdil #yqlifelessons #
नफरत # नफरत दिल की # yqdil yqlifelessons #
read moreNeophyte
राजतंत्र की लाठी को लोकतंत्र का जामा पहना देने से आम इंसान को लगने वाला चोट कम नही होता! #the quote ©क्षत्रियंकेश लाठी!
लाठी!
read morepramod malakar
नफरत की आग ************** नफरत की आग की लहर, आसमां को छू रही है। तनिक हवा के झोंकों से, मन भी अब टूट रही है।। प्यार भरा दिल अब है कहां, सारे पैसों से जूट रहा है। खून का प्यासा है आज हर आदमी, दुनिया अपने को लूट रहा है।। अपनापन और यह रिश्ते नाते, बन कर भी टूट रहा है। यह आत्मा भी जो है तन में, खुद से यह अब रूठ रहा है।। ईर्ष्या द्वेश और यह नफरत, खुले मैदान में जूट रहा है। सच और इनाम बेचारा क्या करें, दामन में सिमट कर घर को फूट रहा है।। &&&&&&&&&&&&&&&&&&& प्रमोद मालाकार कि कलम से 21.01.1994 ©pramod malakar #नफरत की आग।
Varsha Upadhyay
जल रहा है हिन्दुस्तान नफरत की आग में, चारों ओर अफरा तफरी है दिलों में धुँआ आँखों मे सैलाब है, किसी की छीन रही रोज़ी रोटी टूट रहा ख़्वाब है, कोई इसे रंग दे रहा देशप्रेम का किसी पर लांछन देशद्रोह का, ये कैसा समय ,ये कैसा समा है, पथराई आंखे, टूटते सपने, सूना आँचल, बिखरता आसरा, हरकोई ख़ौफ़ज़दा बदहवास है, कोई खरीद रहा नोनिहालो के लिए निवाले,कोई विध्वंश का सामान है, उसने संजोया घरोंदा पल-पल की कीमत देकर, राख कर दिया किसी ने चंद सिक्के लेकर, किसी को अपना धर्म खतरे में नज़र आता है,किसी को अपना देश, उसका तो धर्म,ईमान,परिवार,पड़ोसी,उसका घरोंदा ही उसका हिन्दुस्तान था, किसी के सीने में देशप्रेम, किसी की फितरत दिमाग मे, हाँ साहब....जल रहा है हिदुस्तान नफरत की आग में....... डॉ पंकज उपाध्याय नफरत की आग
नफरत की आग
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