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Baljeet Singh
White उठो जागो और प्रयास करो तब तक करते रहो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए, बदलाव क्षणों में होता है। ©Baljeet Singh उठो जागो।
उठो जागो।
read moreManisha Keshav https://www.audible.in/pd/Jab-Tera-Zikr-Hota-Hai-When-You-Are-Mentioned-Audiobook/B0D94RCK97
White https://www.amazon.in/dp/9363303624/ref=sr_1_1?crid=1BG7ESUNE99LA&dib=eyJ2IjoiMSJ9.u_X-ACLRxc3Bp_N1TlG0rQ.6Qiwd2Wla8gtRO9hqyOuf_aJyG0p-vE3cHJ7OViYmlY&dib_tag=se&keywords=9789363303621&qid=1730815253&sprefix=9789363306233%2Caps%2C378&sr=8-1 ©Manisha Keshav https://www.audible.in/pd/Jab-Tera-Zikr-Hota-Hai-When-You-Are-Mentioned-Audiobook/B0D94RCK97 #समझ सको तो अर्थ हूँ #कविता #Love
soniya verma
White जीवन मे कभी भी किसीकी भी औकात दिखाने का अहम आ जाये ना तो एक बार अपनी मुट्ठी मे मिट्टी भरना और भरकर मुट्ठी से मिट्टी को ज़मीन पर छोड़ना जो मुट्ठी मे थीं वो मिट्टी थीं जो हाथों से गिरी वो ज़िन्दगी थीं और जो हाथों छूट कर मिट्टी, मिट्टी मे मिल गयी वो औकात थी बस ये है इंसान कि औकात जिसके पीछे हम अपना पूरा जीवन व्यर्थ करदेते है बिना ये सोचे कि हम आखिर इस दुनिया मे आए क्यों है उस प्रभु को भूलकर अपना लक्ष्य भूलकर बस उलझे है ©soniya verma #जीवन का सत्य
#जीवन का सत्य
read moreलेखक 01Chauhan1
मिट्टी से बना शरीर मिट्टी में मिल जाएगा अभी अहंकार है तुम्हें एक दिन वो भी आग मे जल जाएगा ©01Chauhan1 शुभ प्रभात
शुभ प्रभात
read morePrabhat Kumar
White इंतज़ार अब होता नहीं ज़िन्दगी क्यों ऐसी हो गई मेरी न जाने किसकी यादों में खो गया ये मन मेरा तू नहीं कोई और था वो अंजना सा चेहरा लग रहा था उसका देख कर उसको मुस्कुरा भी नहीं पा रहा था ज़िन्दगी क्यों ऐसी हो गई मेरी हर चीज़ में ख़ुशी ख़ोज रही थी ©Prabhat Kumar #प्रभात
neelu
White जीवन देख कर चलने का नाम नहीं जीवन सिख कर चलने का नाम है. aapke vichar kya hai is par ©neelu #good_night जीवन देख कर चलने का नाम नहीं जीवन सिख कर चलने का नाम है
#good_night जीवन देख कर चलने का नाम नहीं जीवन सिख कर चलने का नाम है
read moreनवनीत ठाकुर
जमीन पर आधिपत्य इंसान का, पशुओं को आसपास से दूर भगाए। हर जीव पर उसने डाला है बंधन, ये कैसी है जिद्द, ये किसका अधिकार है।। जहां पेड़ों की छांव थी कभी, अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी। मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया, ये कैसी रचना का निर्माण है।। नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने, पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है। प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र, बस खुद की चाहत का संसार है। क्या सच में यही मानव का आविष्कार है? फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है, सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है। बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है, उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है। हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है, किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है, इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।। हरियाली छूटी, जीवन रूठा, सुख की खोज में सब कुछ छूटा। जो संतुलन से भरी थी कभी, बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।। बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है। हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है? ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है? क्या यही मानवता का सच्चा आकार है? ©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता
#प्रकृति का विलाप कविता
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