Nojoto: Largest Storytelling Platform

New अब जागो जीवन के प्रभात कविता का अर्थ Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about अब जागो जीवन के प्रभात कविता का अर्थ from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, अब जागो जीवन के प्रभात कविता का अर्थ.

Stories related to अब जागो जीवन के प्रभात कविता का अर्थ

Raja Basumatary

जागो और जगाओ

read more

Baljeet Singh

उठो जागो।

read more
White उठो जागो और प्रयास करो तब तक करते रहो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए, बदलाव क्षणों में होता है।

©Baljeet Singh उठो जागो।

Manisha Keshav https://www.audible.in/pd/Jab-Tera-Zikr-Hota-Hai-When-You-Are-Mentioned-Audiobook/B0D94RCK97

#समझ सको तो अर्थ हूँ #कविता Love

read more
White https://www.amazon.in/dp/9363303624/ref=sr_1_1?crid=1BG7ESUNE99LA&dib=eyJ2IjoiMSJ9.u_X-ACLRxc3Bp_N1TlG0rQ.6Qiwd2Wla8gtRO9hqyOuf_aJyG0p-vE3cHJ7OViYmlY&dib_tag=se&keywords=9789363303621&qid=1730815253&sprefix=9789363306233%2Caps%2C378&sr=8-1

©Manisha Keshav https://www.audible.in/pd/Jab-Tera-Zikr-Hota-Hai-When-You-Are-Mentioned-Audiobook/B0D94RCK97 #समझ सको तो अर्थ हूँ #कविता #Love

soniya verma

#जीवन का सत्य

read more
White  जीवन मे कभी भी किसीकी भी औकात दिखाने का 
अहम आ जाये ना तो एक बार अपनी मुट्ठी मे 
मिट्टी भरना और भरकर मुट्ठी से मिट्टी को ज़मीन पर छोड़ना 
जो मुट्ठी मे थीं वो मिट्टी थीं जो हाथों से गिरी वो 
ज़िन्दगी थीं और जो हाथों छूट कर मिट्टी, मिट्टी मे 
मिल गयी वो औकात थी बस ये है इंसान कि औकात 
जिसके पीछे हम अपना पूरा जीवन व्यर्थ करदेते है 
बिना ये सोचे कि हम आखिर इस दुनिया मे आए क्यों है उस प्रभु को भूलकर अपना लक्ष्य भूलकर बस उलझे है

©soniya verma #जीवन का सत्य

लेखक 01Chauhan1

शुभ प्रभात

read more
मिट्टी से बना शरीर 
मिट्टी में मिल जाएगा 
अभी अहंकार है तुम्हें 
एक दिन वो भी 
आग मे जल जाएगा

©01Chauhan1 शुभ प्रभात

Sumit Kumar

शादी का सही अर्थ..

read more

Prabhat Kumar

neelu

#good_night जीवन देख कर चलने का नाम नहीं जीवन सिख कर चलने का नाम है

read more
White जीवन देख कर चलने का नाम नहीं
 जीवन सिख कर चलने का नाम है.
aapke vichar kya hai is par

©neelu #good_night जीवन देख कर चलने का नाम नहीं जीवन सिख कर चलने का नाम है

Bachan Manikpuri

धर्मी का जीवन

read more

नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

read more
जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile