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राजकिशोर मिश्र राज
भौरें मधुमय गुंजन करते , कलियों से करते परिहास l बाग़ -बगीचे खिल कर हँसते , आया मधुर प्रिये मधुमास l राजकिशोर मिश्र राज
Kavi Sunil Yadav
मुक्तक मेरे मन पे ना कोई तुम अपना राज चलाओ भुला हूँ जिसे वर्षों से उसकी याद ना दिलाओं उड़ रहे है जो भौरें अब्र में उन्हें फूलों पर ना बुलाओ बचाकर जो रखें हो अपनी दौलत दुनियां पे ना लुटाओ www.kavisunilyadav.com मुक्तक मेरे मन पे ना कोई तुम अपना राज चलाओ भुला हूँ जिसे वर्षों से उसकी याद ना दिलाओं उड़ रहे है जो भौरें अब्र में उन्हें फूलों पर ना बुलाओ ब
Ruchi Rathore
जिस घर 🏡मे रहती हूँ कैसे कहू की मेरा है चीटिया🐜 कीट-पतंगे🐛 और छिपकलियां भी तो रहती है,, उधर कोने मे कुछ चूहो🐀 ने बनाया है, अपना बसेरा एक छोटी-सी मकडी 🕷भी जो बुन रही है जाला 🕸 बाहर बालकनी के कोने मे पल रहा है, चिडियों 🕊का परिवार आंगन मे खिले फूलो🌺🌻 पर मंडराती तितलियां और भौरें 🐝गुनगुनाने हुए चले आते हैं, घर के अंदर तक अरे हाँ, एक तोता 🐦🐦 भी है, जो कई सालो से घर मे रहता है..! फिर कैसे कहू की,,, 🏡"घर मेरा है"..! जिस घर 🏡मे रहती हूँ कैसे कहू की मेरा है चीटिया🐜 कीट-पतंगे🐛 और छिपकलियां भी तो रहती है,, उधर कोने मे कुछ चूहो🐀 ने बनाया है, अपना बसेरा एक छो
Mohammad Arif (WordsOfArif)
भूलना इतना आसान थोड़ी है जान की बाजी लगानी पड़ती है ख्यालो में कैद करना आसान थोड़ी है उनसे मिले इक मुद्दत हो गया हमें आमना सामना जब हुआ आखें रो पडी़ आसुओं में बयान करना आसान थोड़ी है दिल धड़कन जान थी तुम मेरी ख्यालों में इस कदर बसाया था तुम्हें दिल के अरमान बहाना आसान थोड़ी है बरसों से तुम्हें चाहा था इस तरह जैसे कलियों पर भौरें ने पहरा लगाया हो इक उम्र तक आसूं बहाना आसान थोड़ी है मिलना बिछड़ना ऐसे लगा रहा सपने में आखें जब खुलीं सब धुआँ धुआँ सा था आरिफ इस तरह धुएँ में खोना आसान थोड़ी है ©Mohammad Arif (WordsOfArif) भूलना इतना आसान थोड़ी है जान की बाजी लगानी पड़ती है ख्यालो में कैद करना आसान थोड़ी है उनसे मिले इक मुद्दत हो गया हमें आमना सामना जब हुआ आखे
✍️ लिकेश ठाकुर
आ गया फाल्गुन का महीना, खिलने लगे टेसू के फूल, पेड़ों से टूट पत्ते गिर रहे, कलरव कर रहे पँछी खूब। रिश्तों में बंध रहे गुड्डे गुड़िया, जुड़ते लोग हैं दूर सूदूर। माँ बाबा की लाड़ो बेटी, जा रही अब अपनों से दूर। बसंत बहार पत्ते हिलोरें लेते, सूरज की रोशनी छायी भरपूर। रंग बिरंगी दुनिया मुस्कुराती, बनकर अनजान दुखों से दूर। भौरें मधुमक्खी करते गुँजन, तितलियों का अब दिखे समूह। मिल जाये बच्चों की टोली, तन पर सनी सड़कों की धूल। बहुत दिनों बाद दादी नानी से, सुनते बच्चे कहानी भरपूर। कोई चढ़ता पेड़ों पर बन बंदर, कोई खाता आँवले आमचूर। बिन बस्ता मौज मस्ती में, ज़िन्दगी लगती बहुत कूल। कुछ दिन बिताए अपनों संग, टेंशन की बत्ती हो जाती गुल। आ गया फाल्गुन का महीना, खिलने लगे टेसू के फूल।। ✍️कवि लिकेश ठाकुर likeshthakur.blogspot.com आ गया फाल्गुन का महीना, खिलने लगे टेसू के फूल, पेड़ों से टूट पत्ते गिर रहे, कलरव कर रहे पँछी खूब। रिश्तों में बंध रहे गुड्डे गुड़िया, जुड़ते ल
Rahul Kanha Pandit
बस इत्ती सी आशा और इत्ती सी ही मेरी कहानी हैं। ©Rahul Kanha Pandit गले में फन्दा लगी थी, नज़रों में तस्वीर उसकी पड़ी थी, उनदोनों के बीच, एक की जान दूसरे की ज़िंदगी खड़ी थी। एक हाँथ में परिवार दूसरे में प्यार, एक