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Kamal bhansali
कितनी ही इकट्ठी कर ले इस जहां में दौलत पर साथ तो नहीं जायेंगी अन्तिम सांस में अटककर सारे दर्द के अनुभव करा जाएगी सत्कर्म, सत चिंतन की मलहम ही कुछ राहत दे पायेगी सन्देश यही कहता जीना जिसका धरा पर जितना रहता नशा दौलत का उसी अनुपात में सही रहता ✍ कमल भंसाली अनुपात
Rajiv
रेत के ढेर में, घरौंदों को रौंदते, पैरों के निशां हमेशा... हवाओं में, अक्सर मिट जाते हैं। फितरतों का आसमां... हमेशा अक्सर.. जाग जाता है। रंग बदलते इस दूनियां में, अपना वजूद-ए-शै, बचा कर रख ऐ जानिब! ये दुनिया बड़ी ज़ालिम चिज़ है। क्योंकि? यहां हर कोई मतलब-परस्ती का शौक रखते हैं। -राजीव ©Rajiv रेत के ढेर
Devang shukla
जब मुझे प्रेम से नफरत होने लगे,समझ लेना। तुम्हारी मजबूरियों में बहाने का अनुपात ज्यादा हो गया है। अनुपात: Ratio / Quantity
Sunil Pande Writer Content Creator
DrNidhi Srivastava
बंद मुट्ठी से निकलते रेत के घरौंदे, अपनी अपनी उदासियों को ले। कहां छुपाएं ये मन की सिसकियां, भूले बिसरे गीतों से ये प्रीत के मनके। खुशबुओं का अंबार बिखरा हुआ, मन का रीतापन भी सिमटा हुआ। तोड़ लाएं हम कहां से वो तारे, सपनों को जो जगमगा दें कभी। दूर हैं हम सभी हंगामों से, तिनका तिनका समेटे हुए। आंखों से नूर जो टपका जाए, रोक लेते हैं हम मुस्कुराते हुए। ©DrNidhi Srivastava रेत के घरौंदे #waiting
Shashi Bhushan Mishra
रेत के घर बनाते रहते हैं, स्वप्न दिल में सजाते रहते हैं, टूट जाए नहीं कोई सपना, नींद पलकों पे लाते रहते हैं, रहे रौशन सदा अरमान मेरे, एक दीपक जलाके रहते हैं, अंधेरी रात में डर का साया, राम धुन गुनगुनाते रहते हैं, बड़ी दुश्वारियां भरा जीवन, राग भैरव सुनाते रहते हैं, दरीचा-ए-दिल में रहे रौनक, रूठे रहबर मनाते रहते हैं, रहे मदहोश न दुनिया गुंजन, यहाँ सब आते-जाते रहते हैं, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #रेत के घर बनाते रहते हैं#