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रघुराम
महकी महकी सी फिजा की चादर मंद मंद बहक रही है पवन संग हल्की हल्की सी छुअन पवन की सिहरन का ऐहसास करा रही है। ऐसे मे लटकन जुल्फो की,रह रह डोले। जब जब डोले,कपोलो को छू ले।। गुलाबी गुलाबी कपोलो की रंगत। लवो की लाली रसीले रसीले।। मधुर मधुर लव रसबरी का रस। देख देख मतवालो का मन डोले।। मन ही मन मे तमन्ना बसा कर और मिलन का ख्वाब बसा ले।। मिल जाए गर चम्पाकली ऐसी महकी महकी फिजा सी दिल के ऑगन मे उसे बुला ले।। ©Deoprakash Arya महकी महकी सी फिज सी दिल का ऑगन।
Hasanand Chhatwani
आँगन में होती तो, हम गिरा भी देते, कमबख़्त कुछ लोगों ने , दीवार दिल में बना रखी है #ऑगन#दिल #दिवार #
Ashok Sahni
#OpenPoetry किसी का पेट निकल आया है, किसी के बाल पकने लगे है ! दिन भर जो भागते दौड़तेथे , वो अब चलते-चलते भी रुकने लगे है! पर हकीकत तो यह है कि, सब दोस्त अब थकने लगे है ! बात इतनी है कि - सब पर भारी जिम्मेदारी है और सबको छोटी-मोदी कोई बीमारी है ! क्यूँकि, फुर्सत की सबको कमी है, शायद इसलिए उनके आँखो में नमी है जो अपना होमवर्क कभी नही किया वो अपने बच्चों का होमवर्क करने लगे है पर ये सच है कि सब दोस्त अब थकने लगे हैं! दोस्तो का हाल समाचार.....
MD shafique khan
अगर खबर लाने वाले को मिर्च लगाने का अधिकार दिया जाएगा | तो इस मिर्च मशाले से बने पकवान का क्या किया जाएगा || आग चूल्हे में आग लगाते तो कुछ बात बन सकती थी मगर | दिल में लगी हो आग तो इस आग का क्या किया जाएगा || हमारे बीच कोई ऐसी वैसी बात ही नहीं थी मगर खबरों ने | जो करदी कान भराई, तो इस कान भराई का क्या किया जाएगा || #समाचार पढने का तरीका
Anjana Chirag
चिड़िया# मेरे ऑगन की चिड़िया मेरे ऑगन की, मुझसे अपना थोङा सा आसमाॅ मांगती है। डर है मुझे शायद, कि अभी वो उडना ही कहाँ जानती है। किस डाल पर बैठना है, कहाँ दाना चुगना है, सही से अभी वो ये भी कहाँ जानती है। जिन्दगी टेडी- मेडी चलती है, लेकिन वो तो जिंदगी को सीधा- सीधा जीना जानती है। डर ये भी है मुझे शायद , कि हर शख्स को अभी वो कहाँ पहचानती है। कया अपने डर उस पर हावी कर दूँ, उडने से पहले ही उसके पर कुतर दूँ । थोड़ा सा आसमान ही तो माँगती है। क्यों न भरने दूँ उड़ान उसे जी भर के, क्यों ना पंख फैलाने दूँ उसे, क्यों हर वक़्त रोकूं- टोकू उसे, क्यों ना अपने हिस्से का दाना उसे खुद चुगने दूँ, क्यों ना उसे वो करने दूँ, जो वो चाहे। क्यों ना उसे बढने दूँ आगे, सबसे आगे। क्यों उसके पाँव की ज॔जीर बनूं। क्यों ना उसके हाथों की लकीर बनूं। क्यों न उसके लौट आने की राह तकूं। क्यों न उसकी उड़ान के किस्से मैं सुनू। क्यों न उस पर मैं फक्र करू। क्यों न हर दुआ में उसका जिक्र करू। मेरे जिगर का टुकड़ा है वो, तो क्यों न उसको उसके दिल की सुनने दूँ। माँगती ही क्या है, अपने हिस्से का आसमाँ ही तो माँगती है। हाँ, चिड़िया मेरे ऑगन की, अपने हिस्से का थोड़ा सा आसमाँ माँगती है। ©Anjana Chirag चिड़िया # मेरे ऑगन की #freebird
Micku Nagar
😒***Zindagi***☹️ ##Zindagi##में कल का समाचार बना*******
Prakash Aditya
तारीख़ पे तारीख़, #HappyBirthdaySunnyDeol" कब तक कहोगी, तारीख पे तारीख, तूने मुझे जो दर्द दिया, वो जाकर तू अपनी दिल पर लिख ।। ##तारीख पे तारीख