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Ashok Yadav Amit
💧 *_आज का मीठा मोती_*💧 *_ स्वयम की उन्नत्ति में अधिक समय देंगे तो दुसरो की निंदा करने का समय नही मिलेगा। 🙏🙏 *_ओम शान्ति_*🙏🙏 🌹🌻 *_ब्रह्माकुमारीज़_*🌻🌹 ©Ashok Yadav Amit 💧 *_आज का मीठा मोती_*💧 _*07 जनुअरी:-*_ स्वयम की उन्नत्ति में अधिक समय देंगे तो दुसरो की निंदा करने का समय नही मिलेगा। 🙏🙏 *_ओम शान्ति
Dew drop
वो मर मिट ने की चाह रखते है तभी तो उनकी मातृभूमि सर उठा कर जीती है #NojotoQuote भारत माता के सुपूत हा पता है न ही आज छब्बीस जनुअरी है नहीं पंद्रह अगस्त, न ही शौर्य दिवस, न ही विजय दिवस पर क्या कोई दिन के मोहताज़ है, य
Rashmi Hule
महिनाभरापूर्वी आलेल्या नवीन शेजार्यांनी बंद दरवाजावर बाहेर बोर्ड लावला... "Do not ditrb" ...❌ मी दार वाजवले आणी बोललो स्पेलिंग चुकलंय... "Disturb" चे.🙄🙄 त्यांनी शेकहँड केला.म्हणाले "थँक्यू" आम्ही होम क्वारंटाईन आहोत म्हणून बोर्ड लावला आहे. 😢😢 एक महिना पहले नये आये हुये पडोसी ने दरवाजे पर बोर्ड लगाया था. मैने दरवाजा खटखटाया और कहा disturb का स्पेलिंग गलत लिखा है. उसने हाथ मिला के
Mayank Sharma
तब कि मैं ये बात सुनाऊँ A B C D सीखने के ज़ज्बात बताऊँ छोटे छोटे बच्चे हम, बड़े दिल से सीखते थे बात तब कि है जब हम पेन्सिल से लिखते थे.. पूरी कविता नीचे नासमझी से भरे पड़े खेल खेल में लड़ पड़े बचपन में सब होते बच्चे दिल से सच्चे, अकल के कच्चे तब कि मैं ये बात सुनाऊँ
Kulbhushan Arora
सुधा दी, ये सबने अपने अपने पापा को पत्र लिख कर भावुक कर दिया, आपको तो पता है जब में अतिभावुक होता हूं, आपकी गोद में सर रख कर, सुधा दी खो जाता हूं... अन्तर्मन लोक आदरणीय सुधा दी, मन तो सुधी कर के बोलने को था, सबके सामने कहना अच्छा नहीं ना। लो शाम की डाक में आपके नालायक भैया की चिट्ठी आई है। कमाल हो ना
Vibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ तज़ुर्बोन के मध्य चलने वाला धुरा हूँ मैं, हाँ बुरा हूँ मैं.... हर रिश्ते में गलत ठहरा हूँ मैं, हाँ बुरा हूँ मैं..... तुम श्वेत अँधेरा हूँ मैं, हाँ बुरा हूँ मैं..... कड़वा हूँ पर खरा हूँ मैं, हाँ बुरा हूँ मैं..... ✍️Vibhor vashishtha vs Meri Diary #Vs❤❤ तज़ुर्बोन के मध्य चलने वाला धुरा हूँ मैं, हाँ बुरा हूँ मैं.... हर रिश्ते में गलत ठहरा हूँ मैं, हाँ बुरा हूँ मैं..... तुम श्व
Vishal Vaid
बंसी सब सुर त्यागे है, एक ही सुर में बाजे है हाल न पूछो मोहन का, सब कुछ राधे राधे है ज़ुबैर अली ताबिश ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा यूँ सताने की तो आदत मिरे घनश्याम की थी परवीन शाकिर जिस की हर शाख़ पे राधाएँ मचलती होंगी देखना कृष्ण उसी पेड़ के नीचे होंगे बेकल उत्साही कहे जाती है ऊधौ से ये रो रो कर के हर गोपी बता अब कब सताएँगे मुझे मिरे किशन आख़िर अदनान हामिद रौशनी ऐसी अजब थी रंग-भूमी की 'नसीम' हो गए किरदार मुदग़म कृष्ण भी राधा लगा इफ्तिखार नसीम न किसी गीत से रग़बत न शग़फ़ नग़्मों से सिर्फ़ मीरा के भजन सुनता है कान्हा दिल का लकी फारूकी हसरत कल GITANJALI ने एक बेहतरीन लेख पोस्ट किया था, उसको पढ़ते हुए मन में कई विचार आए, कई शेर याद आएं । तो सोचा आज कुछ सांझा करता हूं आप सब से।