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PRAVEEN YADAV
इतिहास भाग 5 प्राचीन भारतीय इतिहास धर्मग्रंथ अथर्ववेद यह महर्षि अथर्वा द्वारा रचित वेद है, इस वेद में रोग, निवारण, तंत्र मंत्र, जादू टोना, शाप, वशीकरण, आशिर्वाद, स्तुति,प्रायश्चित, औषधि, अनुसंधान, विवाह, प्रेम, राजकर्म, मातृभूमि महात्मय आदि विविध विषयों से संबंधित मंत्र तथा सामान्य मनुष्यों के विचारों, विश्वासों,अंधविश्वासों आदि का वर्णन है| अथर्व वेद कन्याओं की वेद की निंदा करता है| इसमें सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है| सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद तथा सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है ©PRAVEEN YADAV अथर्ववेद
वेदों की दिशा
।। ॐ ।। ध्रुवां भूमिं पृथिवीं धर्मणा धृताम् ॥ धर्म से नियन्त्रण में रखी गई भूमि दृढ़ है । The land kept under control by Dharma is firm. अथर्ववेद १२।१।१७ #अथर्ववेद #वेद #धर्म
वेदों की दिशा
मा बिभेर्न मरिष्यसि ।। हे मनुष्य तू भयभीत ना हो, तुम ( रोग से ) मरोगे नहीं।। Fear not, you will not die ( अथर्वेद.५.३०.८ ) #Veda #अथर्ववेद
Shankar Jaat
लक्ष्मी विलास रस भगवान श्री कृष्ण के पूछने पर नारद ने कहा था इसके सेवन से संसार के सभी रोग नाश हो जाते है कामदेव के समान मनुष्य सौ स्त्रीयों को भोगता है यह वाजीकरण औषधी है यह रस चिकित्सा है जिनम रस नहीं उनके लिए वर्जित है यह फल तभी मिलते हैं इस योग में पडने वाली औषधि असली हों वरना ठगों द्वारा आयुर्वेद को बदनाम ना करो। ©Shankar Jaat आयुर्वेद
Shankar Jaat
सम्भोग सम्बंधी अनमोल शिक्षाऐं जो पुरुष अपनी प्राणप्रिया भामिनी को प्रशन्न नहीं कर सकता वह नार्मद है उसका संसार में रहने ना रहने का कोई अर्थ नहीं है पहले स्त्री को स्खलित करे फिर आप हो वही मर्द है वही संसार का सार है योगचिंतामणी ©Shankar Jaat #आयुर्वेद
Deepak Sharma
आयुर्वेद जीवन का सार फिर भी इंसान क्यों लाचार हैँ बदप्रेहजी कि आदत से बीमार हैँ आयुर्वेद ही एक मात्र इलाज हैँ © Deepak Sharma #आयुर्वेद
V.K.Bhagat (IMC Smart VKB)
aayurveda Business ©V.K.Bhagat (IMC Smart VKB) आयुर्वेद
वेदों की दिशा
।। ॐ ।। यस्य त्रयस्त्रिंशद् देवा अङ्गे गात्रा विभेजिरे । तान् वै त्रयास्त्रिंशद् देवानेके ब्रह्मविदो विदुः ।। अर्थात वेदज्ञ लोग जानते हैं कि तैंतीस प्रकार के देवता संसार का धारण और प्राणियों का पालन कर रहे हैं । That is, Vedic people know that thirty three types of gods are wearing the world and following beings. अथर्ववेद १०।७।२७ #अथर्ववेद #वेद #देवता #तैंतीस_कोटि_देव