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Bharat Bhushan pathak
मकड़ जाल जीवन सखे, कितने इसमें जाल। फँस-फँस इसमें हो रहा,मनुज यहाँ बदहाल।। मनुज यहाँ बदहाल,ढूँढ रहा यहाँ रस्ता। मुश्किल ढोना हुआ,संघर्षी अभी बस्ता।। शिक्षक जीवन वही,सब हल करता सवाल। निकलें हम खुद यहाँ,गहरा भले मकड़ जाल।। ©Bharat Bhushan pathak poetry lovers poetry in hindi hindi poetry on life hindi poetry poetry मकड़ जाल जीवन सखे,इसमें कितने जाल। फँस-फँस इसमें हो रहा,मनुज यहाँ बद
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read moreIG @kavi_neetesh
White आज का प्रभात शुभ हो आपको "मूर्ख को उपदेश सखे, व्यर्थ सदा हो जाय। जैसे सर्प को दूध का, देना काम न आय।" ------राधे-राधे सुप्रभात ------- ©IG @kavi_neetesh आज का प्रभात शुभ हो आपको "मूर्ख को उपदेश सखे, व्यर्थ सदा हो जाय। जैसे सर्प को दूध का, देना काम न आय।" ------राधे-र
आज का प्रभात शुभ हो आपको "मूर्ख को उपदेश सखे, व्यर्थ सदा हो जाय। जैसे सर्प को दूध का, देना काम न आय।" ------राधे-र
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