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Parasram Arora
ये स्वप्न ज़ो मैं देख रहा हूंआज कदाचित भूमिका बन कर आया है उन अंदखे संभावित सपनो की ज़ो मुझे आने वाली अगली रातो मे देखने है l जबकि यथार्थ मुझे कुछ ही दूरी पर दिखाई दिया था ज़ो विध्वंस क़े कगार पर खड़ा होकर मुझे अंगूठा दिखा कर मेरी प्रवचनाओं का परिहास. कर सकता है l शायद मुझे भिक्षापात्र लेकर सत्य की भीख माँगने हेतु हर उस चौखट पर जाना पड़ेगा जिन्होंने सत्य क़े झंडे अपने अपने आँगन मे गाड़ रखे हैँ ©Parasram Arora सत्य क़े झंडे......
Kh_Nazim
_भक्ति..._ झंडे से झंडा देखा, झंडे से झंडे तक की देश भक्ति। कुछ दिन रहे गए झंडे में, तो झंडा लगाया, फिर दिखाई देश भक्ति। गिरा कुछ अंश झंडे का जमी पे, तो उठाया नहीं,की भूल गए देश भक्ति "झंडे से झंडा देखा, झंडे से झंडे तक की देश भक्ति" कहने को परवाह बहुत करते है, कोई खड़ा न हो कूट देते है"उसी झंडे से। झंडे से झंडा देखा, झंडे से झंडे तक की देश भक्ति कुछ तत्व राष्ट्र-प्रेम दिखा रहे है इसकदर , अपनों में फ़ुटडाल कर अपनों को लड़ा रहे है इसकदर। मैं झंडे का विरोधी, मैं कुछ दिनों का विरोधी हु। न मैं दंगाई न असमाजिक हूं मैं उस देश का वासी हूं जहाँ सदियों से बुद्धविवेकगाँधीआजाद हूं..….। _भक्ति..._ झंडे से झंडा देखा, झंडे से झंडे तक की देश भक्ति। कुछ दिन रहे गए झंडे में, तो झंडा लगाया, फिर दिखाई देश भक्ति। गिरा कुछ अंश झंडे क
Archana pandey
तेज धर अखण्ड हिन्द भाव हो उच्चण्ड दूर देश में धरा के झण्डे गाड़ दे.... हे कवि! अमंद; हो हवा में एक सुगन्ध वीर भूमि की छठा सवत्र वारदे..अर्चना'अनुपमक्रान्ति' ©Archana pandey झंडे गाड़ दे... #Independence
श्रीवास्तव सूरज
समाज का दोहरा मानक और मौजूदा रणनैतिक परिदृश्य जहाँ पर नैतिकता का ह्रास हो रहा है, समाज मे किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थित सोचने पर मजबूर कर देती है।। #समाज #मानक #विचार#नोजोटो
अर्पिता
आज माँ का एक रुप देखा , दिनभर बच्चों के काम किये जा रही थीं, अपनी उलझने भुलाकर उन्हें सुलझाना सीखा रही थी, अपने खट्टे मीठे अनुभवों से उन्हें जीना सीखा रही थी, अपनी सहनशीलता का परिचय जता रही थी, नामचिन चाय की चुस्कियों के साथ दिन बनाये जा रही थी, उनके हर एक पल को तराशती जा रही थी, नाजुक सी कलियों को फूल बनना सीखा रही थी, अपनी सतयुग की कहानियां इस कलयुग में सुनाए जा रही थी, अपने भोलेपन से सभी के दिलों को जीतना सिखाए जा रही थी, सिर्फ वो ही ये सब करे जा रही थीं, अपने बच्चों को प्रत्यक्षता का ज्ञान कराए जा रही थी, अपनी ही ममता को लुटाये जा रही थी, बहुत प्यार दुलार से बात किये जा रही थी, और इन्ही बातो के जरिये सब कुछ सिखाये जा रही थी, ज़िन्दगी का मतलब बताये जा रही थी, इस संसार मे अपनी महत्वता को बनाये जा रही थी, थोड़ा ध्यान से देखा तो साक्षात देवी सी प्रतीत हो रही थी।। ©अर्पिता #माँ का रूप
Prashant Mishra
निश्छलता का प्रारूप है 'माँ' इस धरती पे स्नेह का सच्चा स्वरूप है 'माँ' इस धरती पे दुनिया में 'माँ' के जैसा नहीं कोई दूजा है भगवान का सच्चा रूप है 'माँ' इस धरती पे --प्रशान्त मिश्रा #"माँ" का रूप
Parasram Arora
प्रेम मे संयोग और वियोग तत्व प्रेम को ऊर्जावान बनाते हैँ प्रेम का मूल्यांकन वियोग की पीड़ा को झेले बिना न किया जा सकता है और न ही समझा जा सकता है.. ज़ब वो प्रेम की पीड़ा समझ कर पुष्ट हो जाता है तो प्रेम एक दैवी ज्ञान बन जाता है जो हमारे अंतग और बाहर भी आँखों को प्रकाशमान करता है. तब उस प्रेम क़े निराकार स्वरूप क़े सौजन्य से हम दुनिया की हर वस्तु मे देवत्व का तत्व देख पाने मे सक्षम हो पाते हैँ ©Parasram Arora # प्रेम का निराकार रूप