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SURAJ आफताबी
जब आये तुम्हारे कदमबोसी को मेरे प्रेमपत्र अपने मृदुल चरणों को पैगाम जरा ये दे देना आयेंगे कुछ प्रिय सखे तुम्हारे, तुम्हें इक भेंट करने गर थोड़े सहम जाये वो तो तुम स्वयं ही उन्हें बांहे भर लेना !! गर पांव में पाजैब की जगह शब्द लिपट जाये बिछियों में मूंगों की जगह बिंदु या मात्रायें लटक जाये गर कुछ यूं हो कि पांव की हीना लजियाने लगे नख-शिख के सारे अंग प्रेम समर्पण पाने लगे तब प्रेमपत्र के सारे स्पर्शों का आग्रह स्वीकार तुम कर लेना तुम भी अपने मकरन्दी होंठों से चूम प्यार इन्हें कर लेना !! नमी से बिगड़ी शब्दों की स्याही गर मुझे वापस लौट आई तेरे हृदय की झन्नाहट से गर मेरे हृदय को भी मीठी चोट आई मैं समझूंगा कि मेरी एकाकी की सुनहरी व्यवस्था तुम ही थी जिन छंदों को सबने सराहा उनमें समाई विलक्षता तुम ही थी कल जिन सखियों से मिलती थी आज अंतिम व्यवहार उनसे कर लेना परसों जब हम मिलने आये तब सारा जग तज मुझमें संसार तुम कर लेना !! कविता 🤗🤗 कदमबोसी - पांव चूमना सखे -- मीत, मित्र बिछिया - पांव की ऊंगली में पहनी जाने वाली अंगूठी नख-शिख - पैर के नाखून से लेकर सिर तक सारे
Poetry with Avdhesh Kanojia
अंदर के रावण का अंत प्रतीक रूप में रावण दहन हर वर्ष करना चाहिए। पर अपने अंदर के रावण का भी अंत करना चाहिए।। अभिमान क्रोध व निरंकुशता होते पतन के द्वार हैं। इन असाधारण रोगों का बस एक प्रेम ही उपचार है। निष्ठुरता रूपी उलूक बैठा जो मन रूपी टहनी पे है। उड़ा देना है उसे भी ज्ञान दृष्टि पैनी से है। कर्म निंदित हैं जहर से इनसे डरना चाहिए। अपने अंदर के रावण का भी अंत करना चाहिए।। वन्दनीया नारी है सो सम्मान का भी भान हो। हर नर में हर आभास हों व दूर सब अज्ञान हो। बन्धु भगिनी देवतुल्य से ये सभी के विचार हों। वृद्धजन पूजित रहें और सत्य कटु स्वीकार हों। सार्वभौम सौहार्द्र हो व स्वार्थ तजना चाहिए। अपने अंदर के रावण का भी अंत करना चाहिए।। प्रतीक रूप में रावण दहन हर वर्ष करना चाहिए। पर अपने अंदर के रावण का भी अंत करना चाहिए।। #दशहरा #victory #सत्य #धर्म #ram #ravan #poetry अंदर के रावण का अंत प्रतीक रूप में रावण दहन हर वर्ष करना चाहिए। पर अपने अंदर के रावण का भ
Poetry with Avdhesh Kanojia
अंदर के रावण का अंत प्रतीक रूप में रावण दहन हर वर्ष करना चाहिए। पर अपने अंदर के रावण का भी अंत करना चाहिए।। अभिमान क्रोध व निरंकुशता होते पतन के द्वार हैं। इन असाधारण रोगों का बस एक प्रेम ही उपचार है। निष्ठुरता रूपी उलूक बैठा जो मन रूपी टहनी पे है। उड़ा देना है उसे भी ज्ञान दृष्टि पैनी से है। कर्म निंदित हैं जहर से इनसे डरना चाहिए। अपने अंदर के रावण का भी अंत करना चाहिए।। वन्दनीया नारी है सो सम्मान का भी भान हो। हर नर में हर आभास हों व दूर सब अज्ञान हो। बन्धु भगिनी देवतुल्य से ये सभी के विचार हों। बृद्धजन पूजित रहें और सत्य कटु स्वीकार हों। सार्वभौम सौहार्द्र हो व स्वार्थ तजना चाहिए। अपने अंदर के रावण का भी अंत करना चाहिए।। प्रतीक रूप में रावण दहन हर वर्ष करना चाहिए। पर अपने अंदर के रावण का भी अंत करना चाहिए।। ✍️अवधेश कनौजिया© अंदर के रावण का अंत प्रतीक रूप में रावण दहन हर वर्ष करना चाहिए। पर अपने अंदर के रावण का भी अंत करना चाहिए।। अभिमान क्रोध व निरंकुशता