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Gopal Lal Bunker
( लापरवाही की सिगरेट) धुआं उठ रहा था नित दिन मैं कुछ खो रहा था जीवन बिगड़ने की राह पर था चाहत थी कुछ करने की पर मैं भटक रहा था, अरमान भी थे,कुछ करने का जज्बा भी था कभी कभी ध्यान से पढ़ता भी था आती थी जब परीक्षा थोड़ा सा पढ़ता था, और थोड़ी सी करता था इधर उधर परीक्षा की घड़ी निकल जाती थी ऐसे ही मेरी पार पड़ जाती थी, परीक्षाएं देते रहा पास होता रहा कहने को तो अब शिक्षित बेरोजगार हूं मिल जाए बेरोजगारी भत्ता अब चाहता हूं और मिल भी जाएगा पर कब तक, हमेशा तो नहीं| फिर एक दिन सावचेत होना ही पड़ेगा जीवन में कुछ करना ही पड़ेगा, या तो तू कुछ बन जा या फिर वक्त, तुझे कुछ बना देगा| इसलिए कहता हूं वक्त है अभी ,बुझा और दूरफेंक, "लापरवाही की सिगरेट" जो तुमने मुंह में लगा रखी है, 'कश' जिसके अब तक तू लेता रहा लगा लगा कर जोर जीवन को जलाता रहा, पर अब बुझा इसको,अंत कर लापरवाहीयो का, कर पूरे मन से जो तू अब करना चाहता है, नित्य प्रयास और मेहनत क्या नहीं बदलते बदला है सबको और बदला है इतिहास, तुझको भी बदल देंगे जीवन में खुशियों के रंग भर देंगे, उठ खड़ा हो बन जा योद्धा मार लापरवाही को और बन कर्म योद्धा, "खुद को कुछ बनाने"| लापरवाही की सिगरेट
Ek villain
हरियाणा में आई आवासीय कॉलोनी बनाने वाली कंपनियां उपभोक्ताओं को त्रस्त कर रही हैं प्रदेश सरकार को भी हानि पहुंचा रही है इन पर अंकुश लगाने के बारे में प्रदेश सरकार को गंभीरता से सोचना होगा यह कंपनी विकास के नाम पर जो शुल्क भुगतान से ले रही है वह सरकार के खाते में जमा ही नहीं हो रहा त्रास देने वाली बात यह है कि उपभोक्ता किसी कारणवश भुगतान में विलंब कर देता है तो उससे संबंधित राशि पर ब्याज भी वसूल करती है लेकिन इन कंपनियों पर विकास उनका 15000 करोड रुपए बकाया है जो उन्होंने सरकार के खाते में जमा कराया था यह राशि जमा ना होने से आवासीय कालोनी में सीवर और अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराने के बारे में सरकार नहीं सोचती इन कंपनियों ने उपभोक्ता में जो राशि वसूली है सरकार उसी बारे में विचार नहीं कर रही इससे यह बात तो स्पष्ट हो जाती है कि कंपनियां संबंधित शासकीय अधिकारियों को अनुग्रहित करती है इससे कंपनियों के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई करते ही करते हैं यही कारण अधिकारियों को इस बात पर कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार कितनी हानि हो रही है अथवा उपभोक्ता कितने तरस हो रहे ©Ek villain #अधिकारियों की लापरवाही #selflove
kartik chadha
विकास इंग्लिश में कहें तो Development जो दिखती है पर कभी समझ में नही आती, जो बिकती है लेकिन ख़रीदारी समझ मे नही आती, जो बढ़ती तो है पर बढ़ती नजर नही आती। हज़ारों फिरते है इसी develoment की आस में, पर development के नाम पे एक गुल्लक मिलती है। जिसकी चाबी तो है, लेकिन खुलती नही है। Development के नाम पर, पेड़ों से ज्यादा आज गाड़ियां दिखती है। हर चौराहे पे हुडनगियों की सेना दिखती है। सोच के बजाए हर गली मोहल्ले के poster में बिकती है। Solution के बजाय question raising में दिखती है। आज घरों के बजाय केवल ईमारतें दिखती है। सफलता सिर्फ BP डिप्रेशन में मिलती है। आज शादियाँ पैसा ख़र्च करके होती है। करप्शन की कमाई में लोगों की खूब आस होती है। माँ बाप से ज्यादा उस पराई लड़की की चलती है। आस्था एक गन के रूप में USE होती है। समाचार में भी रेप गुंडागर्दी की गप चार मिलती है। दिखती है पर समझ में नही आती, बिकती है पर औकात नजर नही आती, ये विकास की धारा बढती तो है, पर बढ़ती नजर नही आती। ©®roasted___life™ विकास की धारा
Sonu Kumar Yadav
प्रेम की धारा धारा से मेघा ,मेघा बनावे। प्रेम से फिर उसी धारा पर बरसा वे। जैसे धारा को प्रेम मिले हैं। जैसे धारा पर बूंद रूप में प्रेम बरसत है।। प्रेम दिए हैं प्रेम मिले हैं। जल मिले हैं जल बरसे हैं।। चारों ओर संसार में प्रेम अग्न लगे हैं। आनंद जानन प्रेम परखा वन। मैंने जवाब नियति गान।। अपनी बरखा कब बरखेगी? रुत मिलन के कब आएंगे? थक ग्यो यह नैना मोरा। सखी प्रेम बिनु थकान लागो नैना मोरा। इंतजार में युग बीत गयो। बीत गए दिन - रात , आठ पहर बीत गए, सुबह - शाम संघ कई वर्ष भी! युग भी बित गए। कब होगी प्रेम की बारिश ? कब खेलेंगे प्रेम के पुष्प? कब चलेगी प्रेम की आंधी? कब बरसेगा कोरे कागज - पर प्रेम भरे बूंद? कब मेरे प्रेम को मिलेगा नए पतझड़ का धूप? ... कवि सोनू प्रेम की धारा
Sonu Kumar Yadav
प्रेम की धारा धारा से मेघा ,मेघा बनावे। प्रेम से फिर उसी धारा पर बरसा वे। जैसे धारा को प्रेम मिले हैं। जैसे धारा पर बूंद रूप में प्रेम बरसत है।। प्रेम दिए हैं प्रेम मिले हैं। जल मिले हैं जल बरसे हैं।। चारों ओर संसार में प्रेम अग्न लगे हैं। आनंद जानन प्रेम परखा वन। मैंने जवाब नियति गान।। अपनी बरखा कब बरखेगी? रुत मिलन के कब आएंगे? थक ग्यो यह नैना मोरा। सखी प्रेम बिनु थकान लागो नैना मोरा। इंतजार में युग बीत गयो। बीत गए दिन - रात , आठ पहर बीत गए, सुबह - शाम संघ कई वर्ष भी! युग भी बित गए। कब होगी प्रेम की बारिश ? कब खेलेंगे प्रेम के पुष्प? कब चलेगी प्रेम की आंधी? कब बरसेगा कोरे कागज - पर प्रेम भरे बूंद? कब मेरे प्रेम को मिलेगा नए पतझड़ का धूप? ... कवि सोनू प्रेम की धारा