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Rahim Singh
White पहले लोग आविष्कार करने के लिए सोचते थे, लेकिन अभी के लोग आविष्कार करके सोचते हैं ©Rahim Singh #nightthoughts #रहीम#motivationquet
Arora PR
एक लम्बा सफर तय करके मै उस पवित्रतम स्थान पर पहुंच गया हूँ जहाँ आरती के लिए शंख ध्वनि गूंज रही हैँ और साथ साथ नमाज़ के लिए आजान भी हो रही हैँ मुझे लगता हैँ शयद यही हैँ विश्व का सबसे पवित्र स्थान जहाँ राम और रहीम एक साथ तब से रह रहे हैँ ज़ब से इस दुनिया और ब्रह्माड की बुनियाद रखी जा रही थीं ©Arora PR राम और रहीम
Suthar Surya 18
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ! जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय ! रहीम ©Suthar Surya 18 #addiction # रहीम के दोहे #viral #nojato
@thewriterVDS
"कबीर" दुई जगदीस कहाँ ते आया, कहु कवने भरमाया। अल्लह राम करीमा केसो, हजरत नाम धराया॥ गहना एक कनक तें गढ़ना, इनि महँ भाव न दूजा। कहन सुनन को दुर करि पापिन, इक निमाज इक पूजा॥ वही महादेव वही महंमद, ब्रह्मा−आदम कहिये। को हिन्दू को तुरुक कहावै, एक जिमीं पर रहिये॥ बेद कितेब पढ़े वे कुतुबा, वे मोंलना वे पाँडे। बेगरि बेगरि नाम धराये, एक मटिया के भाँडे॥ कहँहि कबीर वे दूनौं भूले, रामहिं किनहुँ न पाया। वे खस्सी वे गाय कटावैं, बादहिं जन्म गँवाया॥ . ©@thewriterVDS #राम #रहीम #महादेव #दो #अल्लाह #कबीर
Ravendra
Neha Shukla
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
अब जाति धर्म के पौधे को , राजनीति में लगने दो । लेकिन इसके बीज नहीं तुम , आँगन अपने उगने दो ।। मानवता की बातें कर लो , सभी हमारे साथी है । मुश्किल से मिलता तन मानव , फिर क्यों आपा धापी है ।। वही राम रहीम है देखो , सबको उनमे रमने दो .... अब जाति धर्म के पौधे को..... मंदिर मस्जिद और शिवाले , मन मंदिर से क्या सुंदर । भटक रहा तू खाकर खोकर , झाँक कभी मन के अंदर ।। मैं तुझमे तू मुझमे दिखते , मन को दर्पण करने दो । अब जाति धर्म के पौधे को ..... आया कलयुग घोर हुआ है , जाति धर्म भी दूर हुआ । भाई-भाई लड़ते रहते , हर रिश्ता मजबूर हुआ ।। माँ पत्नी की मान नही है , बहती धारा बहने दो । अब जाति धर्म के पौधे को ..... तुमने अपने राम खो दिए , हमने अपने रहीम को । कुछ लोगों की बातों में , भूले अस्तित्व सभी वो ।। आओ लौट चले जीवन में , इनको इसमें बसने दो । अब जाति धर्म के पौधे को.... कौम याद रह गये सभी को , कौल किसी को याद नही । हम सब मानव बनकर आये , क्या रब की फरियाद नही ।। बनना था इंसान यहाँ पर , पर कीडे़ बन चलने दो । अब जाति धर्म के पौधे को .... जीव जन्तु इंसान सहारे , मन मोहे प्रकृति नजारे । मानव भक्षी बनकर देखो , चला पतन के है धारे ।। भूल गया सहयोग प्रकित का , माया-२ भजने दो । अब जाति धर्म के पौधे को.... अब जाति धर्म के पौधे को , राजनीति में लगने दो । लेकिन इसके बीज नही तुम , इँगन अपने उगने दो ।। २०/०५/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR अब जाति धर्म के पौधे को , राजनीति में लगने दो । लेकिन इसके बीज नहीं तुम , आँगन अपने उगने दो ।। मानवता की बातें कर लो , सभी हमारे साथी है ।
Umme Habiba
लेखक ओझा
एक ही चश्मा है बस फ्रेम अलग अलग है जिनको जो पसंद हो पहनता है कोई राम तो कोई रहीम समझता है।। ©लेखक ओझा #WritersSpecial कोई राम तो कोई रहीम