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samandar Speaks
White छूटते क्रिकेट का रंज ओ दर्द लाता है, बचपना भी जाने कैसे छूट जाता है। लड़के जिनके संग हंसी में खो गई थीं राहें, ज़िंदगी का जाल एक दिन सबको फँसाता है। थी ज़मीं मैदान की और आसमान अपना, अब वो ख़्वाब आँखों में ही सिमट जाता है। जिम्मेदारियों का बोझ ढोते-ढोते हम बड़े हो गए अब खुद से ही अपना बचपन जी चुराता है। वो गुलेल, वो पतंगें, खेल के जो साथी, हर क़दम पे दिल उन्हें फिर से बुलाता है। बचपन की कसक ये दिल से जाती ही नहीं, वो फ़िज़ा, वो बेफिक्री फिर कौन पाता है । समंदर अब भी गुम हैं चंद सवालातों में हर जेहन में वो ख़्याल भला किसके आता है राजीव ©samandar Speaks #good_night Anant Satyaprem Upadhyay Mukesh Poonia Gautam Kumar Internet Jockey
#good_night Anant Satyaprem Upadhyay Mukesh Poonia Gautam Kumar Internet Jockey
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White तलाशे-इश्क़ में हर ग़म गले लगाया जाए, ख़ुशी के नाम पर क्यों दिल को भरमाया जाए? सवाल करते हैं ये पल जो चुपचाप हैं, जवाब देना हो तो ख़ुद से निभाया जाए। नज़र के सामने हर शै है धुंधली सी क्यूं, हक़ीक़तों को कभी दिल से सजाया जाए। जो वक़्त बहता गया रोकने से कब रुका, नदी के संग चलो, साहिल बनाया जाए। हयात एक पहेली, सुलझती कम मगर, ख़ुदा के नाम पर क्यों खेल रचाया जाए? राजीव - ©samandar Speaks #good_night Internet Jockey Mukesh Poonia Satyaprem Upadhyay Radhey Ray अंजान
#good_night Internet Jockey Mukesh Poonia Satyaprem Upadhyay Radhey Ray अंजान
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White ज़िंदगी की तहरीरें हर पन्ने पर लिखा, पर पढ़ा नहीं, ज़िंदगी की तहरीर कोई समझा नहीं। कभी बहारों में खिला फूल बन गए, कभी पतझड़ में भी दरख़्त झुका नहीं। इक ख़्वाब क्या, के ख़ुद को भूल गए, ख़ुद को पाया, तो कोई अपना रहा नहीं। ग़म के दरिया में अक्सर डूबते रहे, साहिल मिला भी, तो किनारा सजा नहीं। ख़्वाब आंखों में हर रोज़ जागते रहे, पर तक़दीर का लम्हा कभी मिला नहीं। राहें लंबी हैं, मंज़िलें धुंधली सी, कोई राहगीर भी साथ चला नहीं। हर घड़ी ने सबक़ तो सिखाया मगर, जिनसे फिर से उठें वो सबक़ मिला नहीं। ज़िंदगी बस यूं ही कटती जाती है, चाहे हंस लो, मगर दर्द छुपा नहीं। ©samandar Speaks #good_night Internet Jockey Mukesh Poonia Satyaprem Upadhyay Radhey Ray अंजान
#good_night Internet Jockey Mukesh Poonia Satyaprem Upadhyay Radhey Ray अंजान
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samandar Speaks
White सुबह से शाम तक दीए लेकर वो आश पाली है खरीदोगे अगर हमसे तो मेरी भी दीवाली है देखो यूं मुंह न फेरो फटे कपड़ों कि जानिब से अंधेरा है मेरे घर में, उम्मीदें तुमसे पाली है इधर है शाम आने को,उधर बच्चे है पग तकते मेरी रेड़ी पे भी आओ, मुझे मड़ई सजानी है चमकते मॉल कल्चर ने हमे बेमौत मारा है तुम्हीं से पेट पलता है,तुम्हीं से जिंदगानी है सुबह से शाम तक दीए लेकर वो आश पाली है खरीदोगे अगर हमसे तो मेरी भी दीवाली है राजीव ©samandar Speaks #good_night अंजान Satyaprem Upadhyay Mukesh Poonia Radhey Ray Internet Jockey
#good_night अंजान Satyaprem Upadhyay Mukesh Poonia Radhey Ray Internet Jockey
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White ढूंढता हूँ उसे सबकी भीड़ में पर उसे कही नहीं पाता शायद इसीलिए मैं अब छठ घाट नहीं जाता हालांकि रंगीन कपड़ों में बच्चों को देखता हूं भागते हुए खेतों की पगडंडियों पे सबको लहराते हुए कमजोर सा शरीर लिए मांओ का दउरा उठाते हुए इस भीड़ में कही अपना वो दउरा नहीं पाता शायद इसीलिए मैं अब छठ घाट नहीं जाता घाट कि सफाई आज भी बड़े जुनून में करते हैं मेरे दोस्त आज भी फावड़ा,कुदाल,टोकरी लिए घर आते हैं मेरे दोस्त आज भी बचपन के पल्लू तले बेशक बुलाते हैं मेरे दोस्त पर उनके साथ कैसे जाऊं,कोई मां के कातर स्वर नहीं सुनाता शायद इसीलिए मैं अब छठ घाट नहीं जाता राजीव ©samandar Speaks #love_shayari Satyaprem Upadhyay Mukesh Poonia अंजान Radhey Ray Internet Jockey
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