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Dipen
वो बदल गया है, नई उम्मीद के साथ। नई दिशा के साथ। हम आज भी बैठे है, सड़क के किनारे। तेरे इंतज़ार में। एक सवाल के साथ। ©Dipen वो बदल गया है, ।
Ritesh Gupta
White एक ही शक्श समझता था मुझे फिर एक दिन यूं हुआ की वो भी समझदार हो गया... ©Ritesh Gupta #SAD वो भी समझदार हो गया
Arora PR
White दूर चला गया हैं वो मेरा दामन छिटक कर जिसे हमने जिंदगी के सफर के लिए हमसफर समझा था उसकी तलाश मे मैंने गली मोहल्लो की खाक छान ली हैं....बस्ती का हर दरवाज़ा भी बजा कर देख लिया हैं पर पतानहीं वो किस तरफ क़ो निकल गया हैं ©Arora PR दूर चला गया गया हैं वो
( prahlad Singh )( feeling writer)
ll वो बारिश से लिखा बूंदों से आंखो से लिखा रात चांदनी से लिखा मिट तो गया पर रह भी गया बात कुमुदिनी से ll ©( prahlad Singh )( feeling writer) रह भी गया#truecolors
लेखक ओझा
वो नब्ज़ भी न देखे सिर्फ नजरों से मेरी तबीयत को तलाश ले ऐसी ही आश ले चल रहा मुसाफ़िर… ©लेखक ओझा #lakeview वो नब्ज भी न देखे
Arora PR
वो भी क्या दिन थे. ज़ब हम भी यारों क़ी महफिल मे शिरकत करते थे फिर वक़्त क्या बदला कि सब कुछ. बदल गया आज हम अपने बिस्तर पर पड़े पड़े या तो आसमान के तारो से मुख़ातिब होते है.. याफिर अपनी मंद होती हुई साँसो क़ो गिनते है ©Arora PR वो भी क्या दिन थे
Kiran Chaudhary
ये भी शायद ज़िंदगी की इक अदा है दोस्तों, जिसको कोई मिल गया वो और तन्हा हो गया। ©Kiran Chaudhary जिसको कोई मिल गया वो और तन्हा हो गया।
Pinki Khandelwal
विघार्थी जीवन यूं तो बेखौफ निड़र होते हैं बच्चे, अपने सपनों से अनजान अपनी ही मस्ती में मस्त रहते, जब मन करता पढ़ते और खेलते हैं, थोड़े शरारती थोड़े नौटंकीबाज भी होते हैं, ढाल दो जिस सांचे में ढल जाते हैं, प्यार अपनेपन की भाषा को वो जानते हैं, लड़ाई झगड़ा पल भर में भूल जाते हैं, ये बच्चे तो कागज के फूल है, जो मनचाही राहों पर मुड़ जाते हैं, बेशक मां बच्चो की सबसे बड़ी गुरु कहलाती है, फिर भी गुरु से मिला ज्ञान का भी उतना महत्व है, इसलिए बच्चों को विघालय में भेजा जाता है, ताकि सीख सकें शिष्टाचार अनुशासन का भी वो पाठ, आत्मविश्वासी हो बोलने में सशक्त बने, और अपनी पहचान बनाएं, शुरुआती दिनों में बच्चों को होती है मुश्किल, जाने में करते कभी कभी आनाकानी है, पर धीरे धीरे नये नये दोस्त बनाते, क ख ग बोलना भी सीख जाते, सच कहूं तो स्कूल लाइफ बेस्ट लाइफ होती है, यह बात बाद में सबको समझ आती है, और फिर, उन दिनो को याद कर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, वो टाई बेल्ट दो चुटिया रिबन लगा कैसे कार्टून लगते थे, और मटक मटक कर जो हम स्कूल जाते थे, जाते जाते किसी की खिड़की पर पत्थर फैक आते थे, तो कभी स्कूल बहाने खेलने चले जाते थे, आज बड़े होकर स्कूल जाने का मन करता है, और पहले स्कूल जाने से भी डर लगता था, हम भी कितने अजीब है, जो बीत गया समय उसको याद कर मुस्कुराते हैं और जो चल रहा समय उसे रो रोकर बिताते हैं। ©Pinki Khandelwal वो दिन आज भी याद आते हैं...।