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Ankit waghela
वो साथ मिले तो कटिंग चाई पीया करते है प्याली भर खुशी, अपने नाम किया करते है बाकी तमाशे तो ज़िंदगी रोज़ सुनाया करती है दर्द ए जिंदगानी दो पल,वो भी बयां करते है कटिंग चाई!
DR. LAVKESH GANDHI
सुधार सुधारने के लिए पहले खुद को सुधारना पड़ता है तब सुधारने की बात सोची जा सकती है सुधार सुधार स्वयं की #yqlookhimself #yqsudhar# #yqbaba #yqdidi #
Ek villain
लड़कियों के विवाह की आयु 18 से 21 वर्ष करने के प्रस्ताव को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी के साथ ही सामाजिक सुधार की दिशा में एक और कदम बढ़ा दिया गया है ऐसे किसी फैसले की उम्मीद तभी बढ़ाई गई है जब प्रधानमंत्री ने पिछले साल स्वतंत्र दिवस पर लाल किले के प्रचार से दिए गए संबोधन में इसका उल्लेख किया था इसी फैसले में अमल के साथ ही महिला और पुरुष दोनों की विवाह योग्य आयु 21 वर्ष हो गई है यह लैंगिक समानता को तो दूर करेगी ही लड़कियों को पढ़ने लिखने की अधिक अवसर भी प्रदान करेगी इस नतीजे में वह कि नहीं अधिक आसानी से अपनी पढ़ाई पूरी करने और नौकरी करने में भी समर्थ होगी इसके अलावा इस कदम से मृत्यु मृत्यु दर कम करने और कुपोषण की समस्या पर लगाम लगाने में भी मदद मिलेगी यह पहली बाल विवाह की कुप्रथा पर भी चोट करने में सक्षम होने चाहिए स्पष्ट यही है कि महिला के लिए विवाह की कानून आयु 21 वर्ष के फैसले से सामाजिक लाभ भी मिलेंगे और आर्थिक भी महत्वपूर्ण केवल यह नहीं है कि संभावित विधायक को संसद के सत्र में प्रवेश किया जाए बल्कि यह भी है कि कि बाल विवाह निषेध नियम में बदलाव के साथ प्रिंसी नल कानून में संशोधन की संभावना भी टटोली जाएगी ऐसा इसलिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए क्योंकि इसका कोई औचित्य नहीं है कि कोई तब तक आपने धार्मिक मान्यताओं अथवा अपने पर्सनल कानून के नाम पर सामाजिक सुधार की इस पहल से बचा रहे इसकी सुविधा किसी को भी नहीं थी नहीं जानी चाहिए अन्यथा यह धारणा खंडित ही होगी कि लोकतंत्र में सभी एक जैसे कानून से संचालित होते हैं जो कि सामाजिक सुधार के लिए इस कदम का विरोध भी हो सकता है इसलिए सरकार को उसका सामना करने के लिए तैयार करना चाहिए यह शुभ संकेत नहीं है कि कोई और से सामाजिक सुधार की इस पहल को लेकर असहमति प्रकट की जा रही है वास्तव में ऐसा हमेशा होता है जब समाज सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए जाते हैं तब कोई ना कोई समूह संगठन उसके विरोध में खड़ा हो जाता है इसलिए लेकिन उसकी वैसी ही अनदेखी की जानी चाहिए जैसे अतीत में की गई है हम तौर पर सरकार समाज सुधार की दिशा में मुश्किल से कोई पहल करती है लेकिन अब समस्या आ गई है कि जो सुधार लंबित होगा उसकी दिशा में तेजी से आगे बढ़ जाएगा लड़कियों की विवाह योग्य आयु 21 वर्ष से कर दी गई है इस कदम बढ़ाने के बाद ही आवश्यक हो जाता है कि समान नागरिक संहिता का निर्माण किया जाए क्योंकि इस काम में पहले ही बहुत देर हो चुकी है ©Ek villain # सामाजिक सुधार की पहल #sagarkinare
Ek villain
इस देश में चुनाव चर्चा कभी थमी ही नहीं इसलिए नहीं थमी की चुनाव का सिलसिला कायम ही रहता है पांच राज्य में चुनाव के बाद गुजरात और हिमाचल के चुनाव की चर्चा होने लगी हर चुनाव में चुनाव आयोग के अत्यधिक सरकार की जब बंदोबस्त करना होता है हजारों से कर्मचारी को अपनी नियमित दायित्वों से अलग कर इस कार्य में लगना पड़ता है आचार संहिता लागू होती है जिसके कारण सभी नीतिगत निर्णय रोक दिए जाते हैं उन्हीं देशों की तरह भारत बार-बार होने वाले चुनाव से बचने की जरूरत है लेकिन ऐसा तभी होगा जब सभी दलित हितों को प्रमुखता देंगे इसी समय इसकी संभावना लगभग ना के बराबर है क्योंकि राजनीतिक दल राष्ट्रीय हित की बजाय दल गठित किया था देते हैं स्वतंत्र के बाद 10 से 15 साल में त्याग निस्वार्थ सेवा और मानवीय भूलों के चरित्र को प्रभावित प्रमुखता देने वाले तत्वों से दिखाई देते थे उस समय के युवा इसे लेकर आओ स्थित है कि देश में जाति प्रथा समाप्त हो जाएगी हिंसा अविश्वास और संप्रदायिक का कोई स्थान नहीं होगा लेकिन अब कुछ अपेक्षाओं की बिराती होती जा रही है जाति और साक्षरता आधारित राजनीतिक दल सत्ता में आने वाले लोग गांधी और उनके द्वारा जीवन पर्याप्त प्रतिपादित सत्य अहिंसा युवा आदि जैसे मूल्य सिद्धांत त तिरोहित हो गए इसके जिम्मेदार वही थे जो जनता के समक्ष गांधीवादी के एक मात्रा नहीं होने का दावा करते हैं और सत्ता में बने रहे जब जाती और क्षेत्रीय की नाव पर सवार होकर कोई चित्रपात राज्य में सत्ता में आई तो कुछ ही वर्ष में सारे देश के देवता हो गई विकास का जन कल्याण में योगदान के लिए नहीं अपने और अपने परिवार की समृद्धि वृद्धि के लिए ©Ek villain #सुधार की राह ताकती राजनीति #WorldPoetryDay