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DrArchi Dubey
अपने लिए जीने वाली स्त्रियां खटकती हैं, चुभती हैं, नकारी जाती हैं, स्वीकारी जाती हैं वो जो गठरियों में पड़ी तुड़ी मुड़ी रहती हैं, हाशिये पर जीती हैं, चुपचाप पड़ी रहती हैं इस्त्री होती स्त्रियां परिवार में चल पाती हैं, नाचती, गाती, खिलखिलाती स्वार्थी कहलाती है, मिटटी सी सुघड़ और पानी सी तरल स्त्रियां समाज गढ़ती हैं रेत सी फिसलती स्त्रियां आँखों में तिनके सी गड़ती हैं, जलकुम्भी सी फैलने वाली स्त्रियां, जलमग्न नहीं होती,धिक्कार दी जाती हैं खरपतवार की तरह, गमले में उगने वाली मौन स्त्रियां ऊगा दी जाती हैं कीचड़ में कमल की तरह, स्त्रियां हमेशा से ही परिभाषित होती हैं रूप से, चौके की अधपकी दाल से और जली हुयी रोटियों से, कभी मर्यादित होती हैं दहेज से, कभी लांघ न सकने वाली दहलीज़ से और कभी खरीखोटियों से | archi स्त्री विमर्श #ShiningInDark
DrArchi Dubey
अपने लिए जीने वाली स्त्रियां खटकती हैं, चुभती हैं, नकारी जाती हैं, स्वीकारी जाती हैं वो जो गठरियों में पड़ी तुड़ी मुड़ी रहती हैं, हाशिये पर जीती हैं, चुपचाप पड़ी रहती हैं इस्त्री होती स्त्रियां परिवार में चल पाती हैं, नाचती, गाती, खिलखिलाती स्वार्थी कहलाती है, मिटटी सी सुघड़ और पानी सी तरल स्त्रियां समाज गढ़ती हैं रेत सी फिसलती स्त्रियां आँखों में तिनके सी गड़ती हैं, जलकुम्भी सी फैलने वाली स्त्रियां, जलमग्न नहीं होती,धिक्कार दी जाती हैं खरपतवार की तरह, गमले में उगने वाली मौन स्त्रियां ऊगा दी जाती हैं कीचड़ में कमल की तरह, स्त्रियां हमेशा से ही परिभाषित होती हैं रूप से, चौके की अधपकी दाल से और जली हुयी रोटियों से, कभी मर्यादित होती हैं दहेज से, कभी लांघ न सकने वाली दहलीज़ से और कभी खरीखोटियों से | archi स्त्री विमर्श #CityEvening
vipin prajapati Vicky
क्या बेटियों में बेटे नहीं दिखते जिनकी ऐसी सोच कि मुझे तो बेटा ही चाहिए यह बहुत बड़ी बात नहीं है बड़ी बात यह है कि उनके अंदर बेटियों को पालने का हौसला नहीं है। वो बेटियों को बढ़ावा नहीं देना चाहते । ऐसे आदमियों की वजह से बेटियां आगे नहीं बढ़ पाती जिनको को लगता है कि बेटियां पराई होती है उनको दूसरे के घर जाना है।ऐसी बेटियों के मस्तिष्क में हमेशा यह बात घूमती रहती हैं मैं अपने मां बाप के लिए सर दर्द बनकर पैदा हो गई और वह अपने मां-बाप के इशारों पर ही नाचती रहती हैं और एक दिन शादी हो कर चली जाती हैं ।उन्हें तो अपने सपने सजाने का मौका नहीं मिलता कि वह सोच सके कि मैं भी कुछ कर सकती हूं। मुझे भी कुछ करना है बस यही बात हमेशा सुनने को मिलती है कि तुम लड़की हो। अगर यही सोच अरुणिमा सिन्हा इन ,पी टी उषा, दुती चंद, हिमा दास, साइना नेहवाल ,साक्षी मलिक, गीता बबीता फोगाट बहने उनकी मां भी यही बोलती कि तुम तो लड़की हो तो आज वह भी किसी भीड़ का हिस्सा होती लेकिन उनकी मां ने उनका हौसला बढ़ाया उनका साथ दिया उनके अंदर के हुनर को पहचाना और समाज के बीच में लाया संघर्ष करवाया तब जाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा रही हैं ।और देश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है और हम उनके महान कार्य पर ताली बजाते हैं लेकिन अपने लड़कियों को बोलते हैं तुम लड़की हो। जितना दर्द अपने 9 महीने में उनको पैदा करने के लिए सहा है उससे बहुत कम कष्ट आपको उठाना पड़ेगा उनके सपने को पूरा करने के लिए। अब कोई भी संतान होगी या तो लड़की होगी या फिर लड़का होगा और आपको उसे स्वीकार करना पड़ेगा तो आप अपने लड़की में लड़की की सूरत ना देखकर लड़के की सूरत देखें और उसको अपने हक के लिए जीने दे और उनका सहयोग करें। आजकल के लड़के संघर्ष करने से कतरा रहे। है हत्या कर रहे है। बलात्कार कर रहे है। आत्महत्या कर रहे है चोरी कर रहे । छिनैती कर रहे हैं। अपने मां बाप को भूल जा रहे , उनसे दूर रह रहे । देश विरोधी काम कर रहे हैं। लेकिन लड़कियां तो ऐसा कुछ नहीं कर रही लेकिन फिर भी उन्हें लोग अपनाने से पीछे हट रहे।अपनी सोच बदलीए और बेटियों को बेटों कि सूरत में देखिए ।और उन्हें अपने जीवन में महान काम करने के लिए प्रेरित करे जिससे वह आपसे कुछ कदम की दूरी पर रहे लेकिन समाज के बीच में रहे । आज उनके सपनों को दो नई उड़ान🦸🦸 एक दिन वह बनकर आएगी नई पहचान👩⚖️👸👩🎨 जब छूयेंगी अपने हौसले से आसमान✈️✈️✈️ आपके साथ देश का पूरे जग में होगा सम्मान।🏅🏅 vp army ⚔️🇮🇳 लघुकथा#स्त्री विमर्श# प्रेरक
करिश्मा ताब
मेरा अपना अनुभव के आधार पर यह कि पुरूष किसी स्त्री का पुरूष से ज्यादा मान सम्मान ,पैसा ,पद या फैसले लेना उसके अहम को चोट करता वो सहज नहीं स्वीकार कर पाता ,,,, इन सबके कारण ही आये दिन पर्सनल रिश्ते प्रभावित होते हैं अगर पत्नी ऐसी किसी सपने या महत्त्वाकांक्षा रखती है तो इस मुद्दे पर घरों आये दिन विवाद इल्जाम जन्म ले लेते हैं ,,,,इसका सीधा सा कारण है पति या पिता जैसा बताये वैसा ही ठीक नहीं तो तुम घर की मर्यादा तोड़ने वाली ,घमंडी वगैरह वगैरह । तुम लड़की हो इसलिए ये जॉब तुम्हारे लिए सेफ नहीं है बाहर रहना पड़ेगा फलां जॉब में ऐसा होता है वैसा होता पता नहीं कितने उदाहरण वो रख देते हैं जिससे कि उस लड़की का इरादा बदल जाये । कोई मुझे बता सकता है कि महिलाएं कहाँ सुरक्षित हैं ? या कौन सी लड़की जॉब कर के अपने पति या ससुराल वालों पर रॉब झाड़ेगी या बदचलन होगी ,,,,क्या इन सवालों के डर से एक लड़की अपनी शिक्षा और सपनों की तिलांजलि दे दे । ये बहुत बड़ा सवाल होता है एक लड़की की ज़िंदगी के लिये ....अक्सर दो चार होना पड़ता है बहुत सी महिलाओं को .... स्त्री विमर्श पर लिखने वालों से बहुत से पुरुषों को इसी लिये बहुत आपत्ति होती है उन्हें शोर सा प्रतीत होता है इनको सब मिल रहा है हम सबकुछ दे रहे हैं ऐसे जताते हैं जैसे ये अपने हिस्से का दे रहे हैं एहसान जताना नहीं भूलते जबकि सच ये है आज भी महिलाओं की बड़ी संख्या ऐसी है जो रातदिन हक के लिए जूझती हैं तब कहीं अपने पैर जमा पाती हैं ©🇮🇳करिश्मा राठौर स्त्री विमर्श लेखन बनाम स्त्री विमर्श पर आपत्ति #स्त्रीविमर्श #ज्वलंतमुद्दा #nojotosocialissue #nojotohindi #nojotowomenempowerment
Shraddha Shrivastava
एक स्त्री पे हज़ार कविताएँ लिखी गईं इसका मतलब ये नहीं, एक पुरुष पीछे रह गया मान सम्मान मैं स्त्री को आगें रखा गया, कई बार इसका मतलब ये नहीं कि, पुरुषों के सम्मान मैं कोई कमी रह गईं दोनों का दर्ज़ा बराबर का हो, ये कोई ज़रूरी भी नहीं क़भी तुम आगें निकल गए ,तो क़भी हम पीछे रह गए इस आगें पीछे की दौड़ ने ,कई रास्ते खोल दिये जिसमें क़भी हम साथ चले, क़भी तुमनें हमें कुछ सिखया,तो क़भी हम तुमसे कुछ सीखनें निकलें एक स्त्री पे हज़ार कविताएँ..... ©Shraddha Shrivastava #hangout एक स्त्री पे हज़ार कविताएँ लिखी गईं