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'त्यौहार'- संस्कृति की विशिष्ट पहचान है।भारत व विदेशों में प्राचिनतम 
समय से चलती आ रही मानवीय संस्कृति व परंपरा का परिचायक है-'त्यौहार'।
हिंदु धर्म व समाज में अनेकों पूजनीय देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य मात्र से नहीं,अपितु पीढ़ियों से चलती आ रही मान्यताओं,श्रद्धा-भक्ती,ईश्वर के प्रति सच्ची आस्था को मानव जीवन से जोड़ने वाले सभी त्यौहार उस पुल के समान हैं,जिनके ढ़हने मात्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती।स्पष्ट रूप से यह कहे कि-
"त्यौहार मानव समाज की आधारभूत शीला है।"
परंतु वैश्विक महामारी के इस दौर में इस माह तक आने वाले सभी त्यौंहारो को निकटता से देखने समझने का व मनोरंजन और आस्था से संबंधित होने वाली सभी क्रियाकलापों को स्थगित किया जा चुका है,और किया जाएगा।परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं कि श्रद्धा-भक्ति के ढांचे को किसी भी प्रकार से तोड़ने का प्रयास भारत सरकार अथवा किसी भी विशिष्ट जन समूह द्वारा किया जा रहा है।केवल प्राणी मात्र को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से कुछ समय के लिए हमें शारीरिक क्रियाकलापों को रोकना है,ताकि भविष्य में मानवीय आस्था व संस्कृति को बचाया जा सके।
यहां विचार करने योग्य बात यह है कि मानवीय आस्था केवल शारीरिक क्रियाकलापों से जुडी है?आस्था व श्रद्धा भक्ति 'ह्दय' से निकलने वाली वह सकारात्मक शक्ति है,जो संपूर्ण जगत को ईश्वर से जोडती है।केवल मन ही ईश्वर का दर्पण होता है।मानव नेत्र में वह शक्ति नहीं,जो मन रूपी नेत्र में है।ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ती के फलस्वरूप जो मधुर ध्वनि मानव मन सुन सकता है,उसे सुनने का साहस कर्ण कैसे करेगा?कान तो दिखावा मात्र है।शारीरीक अंग केवल सांसारिक वस्तुओं को आकर्षित करती है,परंतु मन केवल और केवल इश्वर को।
आज संपूर्ण भारत का ह्रदय अयोध्या में अटका पडा है,जहां श्री राम के आगमन के लिए ढेरों तैयारियां चल रही।परंतु सभी देशवासियों को यह स्मरण रखने की आवश्यकता है कि अयोध्या का स्थल इतना तो विशाल नहीं कि संपूर्ण जगत वहां समा जाए,परंतु मन ऐसा अनंत विशाल क्षेत्र है जहां
संपूर्ण जगत के प्रभु श्री राम समा जाए।
अत: श्री राम की भक्ति मन से हो।केवल शारीरीक क्रियाकलाप से नहीं। #एक निबंध....मेरे द्वारा लिखी गई।
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