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सुसि ग़ाफ़िल
पवित्र आत्माएं निवास करती, वो लाश ढोती नदियाँ हो गई ! मेहनत मजदूर की दिखी नहीं, खून चूसती मंडियां हो गई! स्त्री जो हाथ किसी के ना आई, समाज नजरों में रंडियां हो गई! अपराध करके तुम पुण्य करो, सोच इतनी गंदियां हो गई! खाने को कुछ मिलता नहीं, चारों तरफ मन्दियां हो गई! पैसे वाले सुर्खियों में आ गए, "सुशील" कलम ठंडियां हो गई! पवित्र आत्माएं निवास करती, वो लाश ढोती नदियाँ हो गई ! मेहनत मजदूर की दिखी नहीं, खून चूसती मंडियां हो गई! स्त्री जो हाथ किसी के ना
सुसि ग़ाफ़िल
इतनी ठंड में मैं रो रहा हूं अकेला , तेरे बिन तेरी यादों में खो रहा हूं अकेला ! तेरे मेरे बीच में दूरियां हो गई है इतनी चाह कर भी मैं तेरे पास नहीं आ सकता ! आंखें तो है खुली पर आंखों से सांस नहीं आ सकता ! टूटे हुए फूलों पर कभी भी मिठास नहीं आ सकता! देखना कभी ऊपर आसमान में नजर उठा कर , कोहरे से भरे आसमान में चांद नजर नहीं आ सकता ! खुल गई है अब दर्द की मंडियां , अब कभी वापिस तेरा मेरा साथ नहीं आ सकता ! इतनी ठंड में मैं रो रहा हूं अकेला , तेरे बिन तेरी यादों में खो रहा हूं अकेला ! तेरे मेरे बीच में दूरियां हो गई है इतनी चाह कर भी मैं तेरे
सुसि ग़ाफ़िल
आजकल इश्क की महफिल नहीं, मंडियां लगती है , जो ना हुई चाहने वालों की , उनको रंडियां लगती है। आजकल इश्क की महफिल, नहीं मंडियां लगती है , जो ना हुई चाहने वालों की , उनको रंडियां लगती है।
सुसि ग़ाफ़िल
जंग चली निगाहों में , लोग खड़े कतारों में, कत्ल हुए इशारों में, बदन पड़े बाजारों में, मंडियां लगी टोली में, गोलियां चली बोली में, पैसे मिले चंद सिक्कों में, रोटियां तब आई हिस्सों में। तब जिंदगी चली किस्तों में। तब उस औरत का नाम दर्ज हुआ वेश्या में । जंग चली निगाहों में , लोग खड़े कतारों में, कत्ल हुए इशारों में, बदन पड़े बाजारों में, मंडियां लगी टोली में, गोलियां चली बोली में, पैसे मिले