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vishal
Career का हिंदी में अर्थ विकास, पेशा, व्यवसाय, आजीविका आदि होता है. कोई व्यक्ति अपनी जिंदगी में प्रगति लाने के लिए या आजीविका चलाने के लिए जो कार्य करता है उसे करियर कहते है. आजीविका उस कार्य को कहते है जिससे जीविकोपार्जन होता है. उदाहरण के लिए शिक्षक, वकील, कलाकार, डॉक्टर, ब्लॉगर, ड्राइवर आदि कुछ आजीविकायें है. अक्सर हम अपने दोस्तों के साथ जब बात करते है तो उनसे पूछते है कि तुम किस क्षेत्र में अपना करियर बनाओगे। यानि तुम किस क्षेत्र में विकास करोगे। या किस क्षेत्र में रोजगार या नौकरी करोगे। कई सफल लोगो से सलाह भी लेते है कि किस क्षेत्र में करियर बनाना उचित रहेगा। कई प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट बच्चों की काउन्सलिंग करते है ताकि सही करियर चुनने में उनकी मदत की जा सके. अगर माता-पिता शिक्षित होते है तो बच्चे की रुचि और शौक के अनुसार उसे कार्य करने देते है और उसको उसमें अपना करियर बनाने देते है.h ©vishal Career का हिंदी में अर्थ विकास, पेशा, व्यवसाय, आजीविका आदि होता है.
ARVIND KUMAR KASHYAP
सुमंत्र राज्य से बाहर वन के किनारे उन्हें छोड़कर वापस लौटने को तैयार नहीं थे।राम ने समझा-बुझाकर मंत्री सुमंत्र को वापस भेजा। राम - लक्ष्मण और सीता पैदल चलते हुए गंगा के किनारे पहुंचे जहां उनकी केवट से भेंट हुई। राम ने केवट से गंगा पार कराने के लिए कहा। परन्तु केवट ने रामजी द्वारा अहिल्या उद्धार की बात सुन रखा था।वह हाथ जोड़कर राम से कहा -" प्रभु! मैं आपको गंगा पार अवश्य उतार दूंगा परन्तु पहले आप मुझे अपने चरण पखार लेने दीजिए।आपके चरणों के स्पर्श से पत्थर की अहिल्या, नारी रूप धारण कर स्वर्ग को चलीं गईं थीं।अगर आपके चरण स्पर्श से मेरी यह नौका भी स्वर्ग सिधार गई तो मैं अपने बाल - बच्चों का पेट कैसे पालूंगा ? केवट की भक्ति और प्रेम देखकर राम मुस्कुराए। उन्होंने केवट की अपने चरण पखारने की अनुमति दे दी। केवट ने बड़े प्रेम से गंगा जल से राम - लक्ष्मण और सीता के चरण धोए और फिर उन्हें गंगा पार उतार दिया पर उतराई नहीं ली। उसने श्री राम प्रभु से आग्रह की -" आप तो सबसे बड़े पार-करैया हो, जो भवसागर से पार उतारते हो प्रभु , मुझे भी बिना उतराई मांगें पार उतार देना प्रभु ।" ये कहते हुए केवट फुट - फुटकर रो पड़ा। रामजी ने उसे गले लगा लिया और उससे कहा कि वह चिन्ता ना करे। ©ARVIND KUMAR KASHYAP श्री राम प्रभु का केवट से भेंट
Author Harsh Ranjan
एक जिंदगानी है... मालूम नहीं पड़ता, कहाँ खपानी है! स्मृतियों में पानी है... छाती में बीसियों कहानी है! एक पेड़ हूँ, फलूँ, ये जिम्मेदारी हमने मानी है कि सबसे पहले हममे उनके हिस्से हैं वैसे तो दरिया खुद लहरों के किस्से ही किस्से हैं! सोचते हैं कभी जलते तवे पर सिंकते हुए, जिंदगी कम है सालों में, साल कम हैं दिनों में, दिन कम हैं पलों में! क्या हासिल होता है कलों में! पल कम, पन्ने ज्यादा हैं, उम्र कम, कहानियां ज्यादा हैं! शीशे के टुकड़ों सी अनुभूतियां सीने से जब प्रसंगों के साथ कुरेदकर उठाते हैं! हमने देखी हैं उभरती बूंदें रक्त की, अपनी स्नायु तिलमिलाती हैं! भगवान काम देना, कला नहीं, नजरों के आगे सिर्फ पेट हो हाथ भी क्यों भटकें रास्ता, तो क्यों किसी फितूर से अपनी भेंट हो! भेंट
Author Harsh Ranjan
एक जिंदगानी है... मालूम नहीं पड़ता, कहाँ खपानी है! स्मृतियों में पानी है... छाती में बीसियों कहानी है! एक पेड़ हूँ, फलूँ, ये जिम्मेदारी हमने मानी है कि सबसे पहले हममे उनके हिस्से हैं वैसे तो दरिया खुद लहरों के किस्से ही किस्से हैं! सोचते हैं कभी जलते तवे पर सिंकते हुए, जिंदगी कम है सालों में, साल कम हैं दिनों में, दिन कम हैं पलों में! क्या हासिल होता है कलों में! पल कम, पन्ने ज्यादा हैं, उम्र कम, कहानियां ज्यादा हैं! शीशे के टुकड़ों सी अनुभूतियां सीने से जब प्रसंगों के साथ कुरेदकर उठाते हैं! हमने देखी हैं उभरती बूंदें रक्त की, अपनी स्नायु तिलमिलाती हैं! भगवान काम देना, कला नहीं, नजरों के आगे सिर्फ पेट हो हाथ भी क्यों भटकें रास्ता, तो क्यों किसी फितूर से अपनी भेंट हो! भेंट