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Manju Tomar
🌹हमारा, प्यारा, उत्तराखंड,🌹 कुछ लोग अपने पुरखों की जमीन बेचकर शहर, में, 50 गज, में मकान बनाकर खुद को बहुत रहिस जादे समझते हो लानत है तुम पर ऐसे, जो अपनी मातृभूमि को किसी और के हवाले सौंप देते,हो 🌹स्वरचित, शायरी, मंजू तोमर,,🌹 #Sunrise 🌹 अपनी धरती पर मैं बलिहारी जाऊं अपने पुरखों की जमीन पर मैं किसी को पैर तक न रखने, दूं, मेरा, स्वाभिमान 🌹
Farukh Maniyar
हमारे पुरखों की जमीनें सोने और दिरहम के लिए नहीं बेची जाती! हमारे पुरखों ने अपना खून देकर एक-एक इंच ले लिया और हम अपना सारा खून उसकी हिफाज़त के लिए खर्च कर देंगे! हम एक इंच भी बर्बाद नहीं होने देंगे, हम यरुशलम को क्यों छोड़ दें! हमेशा से हमारी ज़मीन यरूशलेम हमारे मुक़द्दस शहरों में से एक है! यरूशलेम को इस उम्माह के लिए बचाये बचाए रखना होगा। ~सलाउद्दीन अय्यूबी बाकी का तो पता नही लेकिन फ़िलिस्तीनियों को आज भी ये अल्फ़ाज़ याद हैं। सालों से क़ुरबानी दे रहे हैं आज भी हिम्मत नही हारी है, अपना ख़ून बहाकर इसकी हिफाज़त में लगे हैं। अल्लाह क़ामयाब करे... ©Farukh Maniyar हमारे पुरखों की जमीनें सोने और दिरहम के लिए नहीं बेची जाती! हमारे पुरखों ने अपना खून देकर एक-एक इंच ले लिया और हम अपना सारा खून उसकी हिफाज़त
Rashmi singh raghuvanshi "रश्मिमते"
बेईमानी की ज़मीन पर इंसान महल तो खड़ा कर सकता है, लेकिन उस महल का सुकून नही ख़रीद सकता । ©rashmi singh raghuvanshi #बेईमानी की जमीन
sarika
छान फटकर देखिए "रिश्तों" की जमीन को -:sarika:- रिश्तों की जमीन ...
Drjagriti
कल "हसरतों" के आसमान में "उड़" रहे थे हम आज "हकीकत" की जमीन से "गुजर" रहे हैं हम वह "उम्र" वह "दौर" "उमंगो" का था, आज अनुभवों से सीख रहे हैं हम "बेपरवाह" हुआ करते थे कभी,आज सबकी "परवाह" में "घुल" रहे हैं हम "बेबाकी" से कह देते थे, अपनी बातों को कभी,आज कई "शिकायतों" को भी अपने अंदर "रख" रहे हैं हम हां आज अब "बदल" रहे हैं हम, "जीवन पथ" पर चल रहे हैं हम! डॉ.जागृति ©Drjagriti # हकीकत की जमीन पर
Manjit Brahma
यह इस जमीन फितरत है हर चीज सोक लेती है वरना इन आंंखो से गिरने वाले आसु ओ काभी, एक अलग ही समुद्र होता। ©Manjit Brahma यह इस जमीन की फितरत
Shivam Choudhary
आंखों से बहता दरिया है मेरे पास फिर भी दिल की जमीन बंजर ही रही हमने तो चाहा तुझे बेइंतेहान तेरे दिल में हमेशा नफरत ही रही ©Shivam Choudhary दिल की बंजर जमीन #banjar
पंकज कुमार सिंह
( पुरखों का गांव) जितनी छोटी सी चादर थी मेरे पुरखों की उससे ज्यादा समेट कर रखते थे वे पांव! सराहा जाता था इलाके में सिंघना गांव !! भोलेबाबा का मंदिर हो या भगवती का स्थान सम आस्था था दोनों में ,नहीं कोई खींचातान अमीर गरीब दोनों बसते थे श्रद्धा के छांव !! न्याय -नीति संबल था दीन दुखियों के सहारे निर्णय निष्पक्ष होता चाहे कितना पैर बजारे बाघ बकरी दोनों रहते मिलके एकहीं ठांव !! इंद्र और इनारे मिलकर जितना जल देते थे मन में भरकर संतोष सुखपूर्वक जी लेते थे प्रेम यत्न से खेते थे वे सूखे में भी नाव !! लोकरीति बसती थी सबके कर्म व्यवहार में संस्कृति अनुरागी थे सभी समाजिक प्यार में लोभ- दाब था बेअसर ,नहीं था कोई दुष्प्रभाव !! पालते नहीं थे द्वेष के नाग जिससे हो टकराव सजग चौकन्ने रहते थे होता नहीं था बिखराव प्रेम एकता से बांधा था पुरखों ने अपना गांव!! " पंकज कुमार सिंह" पुरखों का गांव #Hindidiwas