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रजनीश "स्वच्छंद"
समास।। मैं सार्थक संक्षिप्त हूँ, एक अर्थ से मैं लिप्त हूँ। मध्य पदों को छोड़ कर, मैं समस्त पद बना। पहले लगा जो पूर्वपद, अंत मे उत्तरपद जना। नकचढ़ी या हथकड़ी, मैं हूँ शब्दों की लड़ी। एक वाक्य को समा लिया, किया लघु तेरी घड़ी। तेरे मुख चढ़ा रहा, मैं भक्तियों का लोप कर। कभी बदल दूँ अर्थ तो, न दुख मना न क्षोभ कर। भेद मेरे जान ले, सिमटता हूँ छः प्रकार में। काव्य गीत लेख कथा, गूंजता हूँ अलंकार में। अव्यय जो आगे चल रहा, अव्ययीभाव मुझको बोलते। प्रथमपद प्रधान है, जो वाणी-तुला ले तोलते। प्रतिदिन, प्रतिपल, यथाशीघ्र यथाशक्ति हो। आमरण निर्विकार भी, अनुरूप यथाभक्ति हो। प्रधान हुआ जो दूसरा, मैं तत्पुरुष बन जाता हूँ। कारकों का लोप कर, नवशब्द हो तन जाता हूँ। तुलसीदासकृत धर्मग्रंथ, राजपुत्र रचनाकार हूँ। देशभक्ति राजकुमार, मनुजहित गीतासार हूँ। कर्मधारय मैं हुआ, उत्तरपद ही प्रधान है। विशेष्य संग विशेषण, उपमेय संग उपमान है। प्राणप्रिये चंद्रमुखी, श्यामसुंदर नीलकमल। अधमरा देहलता, परमानन्द चरणकमल। उत्तरपद और पूर्वपद का, सामंजस्य खास है। आगे अंक या पीछे अंक, यही द्विगु समास है। पंचतंत्र या नवग्रह, ये त्रिलोक त्रिवेणी है। चौमासा नवरात्र कहो, ये पंचप्रमान अठन्नी है। पद न कोई गौण हो पाए, दोनों रहें प्रधान ही। द्वंद्व समास कहायें ये, रखते दोनों का ध्यान भी। नर-नारी और पाप-पुण्य, सुख-दुख ऊपर-नीचे है। अपना-पराया देश-विदेश, गुण-दोष आगे-पीछे है। मैं छीनू परधानी सबकी, पद मैं तीजा बनाता हूँ। अपना मतलब रहूँ छुपाये, बहुब्रीहि कहलाता हूँ। वीणापाणि और दशानन, लंबोदर पीताम्बर हूँ। चक्रधर और गजानन, मैं घनश्याम श्वेताम्बर हूँ। मेरी बातों को गांठ बांध लो, काम तेरे मैं आऊंगा। ले रहा जो छोटा विराम अभी, फिर आ मैं भरमाउंगा। ©रजनीश "स्वछंद" समास।। मैं सार्थक संक्षिप्त हूँ, एक अर्थ से मैं लिप्त हूँ। मध्य पदों को छोड़ कर, मैं समस्त पद बना। पहले लगा जो पूर्वपद, अंत मे उत्तरपद जना।
Omega Rajpoot
लड़का - लड़की वाले जमीन तो ऐसे पूछते हैं जैसे उनकी लड़की सीधे खेत मेें हल चलायेगी 😂😂😂 ©Omega Rajpoot #द्वंद्व
दीपेश
मिला यार और सुंदर मौसम हल्की बारिश हाय री ओसम हल्के ओले मोती जैसे ठंडी में गर्म चाय के जैसे था मौसम रंगीन सुहाना जब तक पापा का फोन था आना कहा की बेटा भीग गई है फसल सुख फिर फूल गई है फिर शरद हवाएं सास में फूली धूल मौज की गिरी धारा पर मिट्टी बनने को धूल है फूली किसी का अच्छा किसी का गंदा मौसम का मजा ही एक नही है कैसे नेता करे नियोजन हानि लाभ एक नहीं है ©दीपेश #द्वंद्व
Roshani Thakur
अँधेरे कमरे में ढूंढ रही थी रोशनी और मुझे मिली है एक चाभी l अब ढूंढ रहीं हूँ मैं एक दरवाजा, जिससे मैं बाहर निकल सकू... मगर मुझे उस अँधेरे कमरे में रोशनी को ढूँढना है या रोशनी को बाहर से ढूँढ कर लाना है l मुझे ये सफर तय करना है लेकिन इससे पहले मुझे इस द्वंद्व के बीच से एक रास्ता चुन्ना है आगे की ओर बढ़ने के लिए l ©Roshani Thakur द्वंद्व