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SumitGaurav2005
TAHIR CHAUHAN
हमें लिखना नहीं आता। हमें पढ़ना नही आता। छोड़ कर अपनो को बीच राह में। तन्हा हमें आगे बढ़ना नही आता। जा बैठे दुश्मन के शामियाने में । चंद खुशियों की खातिर। अब लड़े भी किस से। अपनो से हमें लड़ना नहीं आता। मैं भी उस जन्नत तक पहुँचता यकीनन। पर झूठ को प्यार में घड़ना नही आता। मेरी ये सोच ही मुझे आज तक जमीन पर रखे है। अपनो की लाश की सीढ़ी बना के हमें ऊपर चढना नही आता। ताहिर #हमें लिखना नही आता ।
manoj kumar jha"Manu"
चक्षुषा मनसा वाचा कर्मणा चतुर्विधम्। प्रसादयती यो लोकं तं लोगों लोकोअनुप्रसीदति।। जो राजा नेत्र, मन, वाणी और कर्म - इन चारों से प्रजा को प्रसन्न करता है, उसी से प्रजा प्रसन्न रहती है। विदुर नीति २.२५ (महाभारत) राजनीति सिखाएं
Stranger Traveler!
सितारों की तरह चमकना सिखा है जान ना मैंने आज खुद को सिखा है खुद को बनाया है ताकतवर इतना कि बादलो को मैंने चीरना सीखा है एक दिन वह था ना काम था मैं सब कुछ करने में पल पल में मैंने खुद को मारना सिखाएं आज भी वैसा ही हूं बस खुद के अंदर कुछ बदलना सिखाया by Ram ji सितारों की तरह चमकना सिखाएं
Ankita Tripathi
लेखक हूँ मैं,नये-नये किरदार लिखता हूँ जाहिलों को भी साहब कभी समझदार लिखता हूँ सब कुछ लिखना पड़ता है हमें!!! #yqbaba #yqdidi #lekhak #point #yqbhaijan #नफ्स़
सुनील मिश्रा
किसी ने मोहब्बत के वादे निभाए किसी ने मगरमच्छ के आंसू बहाये मजा तो तब है जब महबूब उस्ताद हो मोहब्बत से पहले मोहब्बत से सिखाएं।। सुनील मिश्रा किशनपुर ©sunil mahraj मोहब्बत से पहले मोहब्बत सिखाएं
रजनीश "स्वच्छंद"
महज़ लिखना है लिखना नही। जो भाव नही है शब्दों में, बोलो उनको लिख डालूं कैसे। लिखने को तो लिख भी डालूं, निजमन का दर्द संभालूं कैसे। लेखनशैली है शब्दों का साज नही, ये तो भावों की माला है। औरों के दर्द में जो जीता है, सच मे वही तो लिखनेवाला है। जो जिया नही, जो सहा नही, फिर, किस मुख उसका बखान हो। हो दर्द छुपा औरों का लेकिन, खुद का भी एक बयान हो। है स्वार्थ प्रधान, मैं से मैं की लड़ाई, औरों के दुख में साथ कभी जो दिया नही। सागर मंथन तो सबने देखा, वो कवि नही, बन शंकर विष जो पिया नही। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote महज़ लिखना है लिखना नही।।।
Anuraag Bhardwaj
लिखते लिखते रुक जाते है हाथ मेरे। किस के लिए लिखे जा रहा हूं। क्यों लिखे जा रहा हूं। कौन है जो पढ़ता है मुझे। कौन है जो समझता है मुझे। क्यों अपने जज्बात उघेडे जा रहा हूं। नहीं वक्त पास किसी के। जो नजर घुमा दे एक पल के लिए। जान ले हाल दिल का। क्यों सुलगते दिल को। और सुलगाए जा रहा हूं। ये शहर है पत्थरो का। क्यों मै अलख जगाए जा रहा हूं। इश्क़ की बोली लगने लगी है। क्यों मै ना बिकने की ज़िद्द किए जा रहा हूं वादों को लगने लगी है झड़ी। क्यों मै उम्मीद किए जा रहा हूं। वफ़ा पड़ी है कूड़े में कहीं। क्यों मै उसे ढूंढे जा रहा हूं बेवजह ही कोशिश के जा रहा हूं। क्यों कलम को घिसे जा रहा हूं। #अनुराज #लिखना
Prabhat Raj
मेरे आगाज़ से मेरी जिंदगी कलमों की ग़ुलाम है, मै फैरत हूं तो वो मेरा ताज़ है, मै उन्नत हु तो वो मेरा साज़ है , गर्दिश फिर भी यहीं है कि नचाह्त में भी मै हमेशा उसके साथ हूं। #लिखना