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- Arun Aarya
उसे इतना तवज्जों दिया है तभी तो उसे खो दिया है ! पत्थर सा एक लड़के ने आज अचानक ही रो दिया है..!! - अरुन आर्या ©- Arun Aarya #moonlight #रो दिया है
#moonlight #रो दिया है
read moreMohan raj
White मन में निरंतर कुछ न कुछ विचार चलता हि रहता है, तो क्यों न मन को हरि में लगा दिया जाए जिससे मन निरंतर हरि का सिमरन करें Dhanywaad Har Har Mahadev ©Mohan raj #Life Lessons मन में निरंतर कुछ न कुछ विचार चलता हि रहता है, तो क्यों न मन को हरि में लगा दिया जाए जिससे मन निरंतर हरि का सिमरन करें
Life Lessons मन में निरंतर कुछ न कुछ विचार चलता हि रहता है, तो क्यों न मन को हरि में लगा दिया जाए जिससे मन निरंतर हरि का सिमरन करें
read moreअनिल कसेर "उजाला"
#5LinePoetry तेरी याद ने मुझको रोने न दिया, ये ज़ख्म प्यार का उभरने न दिया। टूटा हुआ हूँ मैं तो 'उजाला' मगर, चाहत ने उसकी बिखरने न दिया। ©अनिल कसेर "उजाला" रोने न दिया
रोने न दिया
read moreShashi Bhushan Mishra
New Year 2024-25 दिल की किताब आंखों से पढ़ने को बेक़रार, नज़रें मिलाकर देख लो तुम मुझसे एकबार, दिल में रहा क़ायम ये भ्रम है प्यार उन्हें भी, नज़रें बचाकर देखते देखा है कई बार, सूरजमुखी सा आफ़ताब देख खिल उठे, हर सुब्ह रहा करता है इस कद्र इंतज़ार, फ़ुरसत में किसी रात चांद डूबता नहीं, मिलती तो मांग लाते हम भी चांदनी उधार, हुस्न-ओ-अदा पर फ़िदा हुए राह के पत्थर, रुक जाए मुसाफ़िर भी राह चलते कई बार, महफूज़ मेरा चैन-ओ-सुकूं उनकी फ़ज़ल से, बख़्शी ख़ुदा ने दुआ की दौलत भी बेशुमार, दीदार-ए-हुस्न मुकम्मल होता नहीं कभी, होती है नुमाइश में झलक गोया क़िस्त बार, फूलों के ईर्द-गिर्द सुनूं भ्रमर का 'गुंजन', दिल पर लगा दिया खाली है का इश्तिहार, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra #दिल पर लगा दिया#
#दिल पर लगा दिया#
read moreF M POETRY
Unsplash अब न ख्वाहिश न आरज़ू न ज़ुस्तज़ू है तेरी.. इत्तीफाक़न भी न तुझसे मिलूं दुआ है मेरी.. यूसुफ़ आर खान ©F M POETRY #अब न ख्वाहिश न आरज़ू...
#अब न ख्वाहिश न आरज़ू...
read moreनवनीत ठाकुर
जियारत करूं के माथा टेकूं, तूने जो दिया, मैं उसके काबिल न था। तेरी रहमत की हद क्या बताऊं, इंशाल्लाह, तूने जो किया, मैं उसका हकदार न था। ©नवनीत ठाकुर जियारत करूं के माथा टेकूं, तूने जो दिया, मैं उसके काबिल न था। तेरी रहमत की हद क्या बताऊं, इंशाल्लाह, तूने जो किया, मैं उसका हकदार न था।
जियारत करूं के माथा टेकूं, तूने जो दिया, मैं उसके काबिल न था। तेरी रहमत की हद क्या बताऊं, इंशाल्लाह, तूने जो किया, मैं उसका हकदार न था।
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