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Atul Upadhyay
फूल में ख़ुशबू नहीं, काँटे नहीं हैं राह में। सब्र दिल में है नहीं, हया नहीं निगाह में। मुस्कान में ख़ुशियाँ नहीं, क्रन्दन नहीं है आह में, मन में आदर भाव ना, ना भावना है विवाह में। उन्मुक्त बहते जा रहे हैं पश्चिमी अपवाह में, देह ही एक साध्य है अब प्रेम के प्रवाह में। एक दौर ज़िन्दगी कट जाती थी एक चाह में, एक दौर सब इश्क़ ही निपटा दिया ‘सप्ताह’ में। .....अतुल 😊 साप्ताहिक प्रेम
Kavi Narendra Gurjar
#Vatika_TV के साप्ताहिक (प्रत्येक सोमवार) को प्रसारित कार्यक्रम #कवि_संगम मे ऑनलाइन #कवि_सम्मेलन
Shailendri Tiwari "Shail"
Dr Jayanti Pandey
ये जो दस्तूर ज़माने के सिर पर उठाए फिरते हैं, हर कानून खिलाफ मोहब्बत के बनाए फिरते हैं उनको समझाने में अपनी उम्र यूं जाया न करो छोड़ो सब; सिर्फ उसको समझो और निभा लो , विश्वास अपनी वफ़ा का, दिला सको तो दिला दो रह जाते हैं जिंदगी के सफर में हमराह बस दो ही, पर्दा गिरते ही मजमा हट जाता है इस दुनिया का। " साप्ताहिक काव्य प्रतियोगिता " (Post 12) Must use hashtag: #Collabwithआपकी_सहेली #jayakikalamse #yqdidi #yqbaba #आपकी_सहेली #YourQuote
isha rajput
isha rajput
CHANDRAVEER GARG
हमर संगवारी (साप्ताहिक)समाचार पत्र ©चंद्रवीर गर्ग आबदार छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय समाचार पत्र हमर संगवारी (साप्ताहिक) में मेरी रचना प्रकाशित हुईं। सोमराज मेघपूत Adarsh S Kumar Priyanka Jha udass Afzal
Monali Sharma
जी एक अच्छा माध्यम है अपनी लिखावट को और बेहतर बनाने का साप्ताहिक कक्ष -1 साहित्य कक्ष की तरफ से। एक साप्ताहिक कक्ष का आयोजन किया गया है। Note:- यह कोई प्रतियोगिता नहीं है। नियम:-
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
माँ:-- माँ धरती की सबसे खूबसूरत इंसान हैं, माँ का इस धरती पर एक अलग ही पहचान है। माँ के बिना तो सारा जग ही अंधियारा है, माँ इंसान के रूप में धरा पर भगवान है।। पिता:-- पिता से ही हमारा परिवार नज़र आता है, पिता से ही हमारा घर द्वार नज़र आता है। वो होते हैं किस्मत वाले जिनके पिता होते, पिता बिन ये संसार बेकार नज़र आता है।। BKJ-4 साप्ताहिक प्रतियोगिता दो मुक्तक लिखिये एक "माँ" पर और एक "पिता" पर दिनाँक 03.10.2020 समय सीमा 10:30AM से 10:00PM #yqdidi #yqbaba #म
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
माँ ही आदिशक्ति है, माँ की महिमा अपार है, माँ सृष्टि रचयिता हैं, माँ जगत का आधार है। नवरात्रि में माँ अपने, नौ रूपों का दर्शन देती, चैत्र और आश्विन मास में, खुलता दरबार है। माँ अपने भक्तों को, सदैव आशीर्वचन देती है, सच्चे हृदय से गर पुकारो तो, दुख हर लेती है। पापियों का नाश करे, करती दुष्टों का संहार है, सब दरबारों से ऊँचा, इनका सच्चा दरबार है। एक नजर तू अपनी माँ, फेर दे मुझ पर भी, तेरे श्री चरणों में, मेरा प्रणिपात नमस्कार है। BKJ-6 "माँ की महिमा अपार है" ब्रजकाव्यजगत साप्ताहिक प्रतियोगिता, समय सीमा 11:00PM पंक्ति सीमा : दस पंक्ति मां की फोटो पर ना लिखें #yqbaba #