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Yakshita Jain
आज संध्याकाल में छत पर टहलते टहलते पेड़ ने मुझे बुलाया कोयल रानी को मुझे दिखाया कुकू कर मुझे सुनाया उसका मधुर गीत मुझे बहुत भाया मैंने भी उसके संग गाया मन की बगिया में आनंद महकाया रोज उसके संग गाने का मन बनाया ऐसे ही तुम आती रहना करुँगी तुम्हारा इंतज़ार तुम्हारी वाणी ही हमारी मित्रता का आधार.. 27 April 2020 koyal
koyal #कविता
read morePrateek Pandey
साथ रहकर पता पड़ा रोज सवेरे छत पर मेरे कोयल रोया करती थी रख अक्सर कन्धे पर सर वो सोया करती थी देख आयी हु मृत्यु के पैगाम को देखा है जलते मैंने हर गली हर समसान को देख आयी हु झूठ बोलते देश के प्रधान को लाशो की ढेर लगी है हर गली हर समसान मैं कुछ तो यू ही मर गए नेताओं के सम्मान में देखा है मैंने वोट के लिए मरते कटते देश के हुक्मरानों को मौतों का हिसाब मांगते इन बहसी शैतानो को रोज सवेरे छत पर मेरे कोयल रोया करती थी रख अक्सर कन्धे पर सर वो सोया करती थीं ©Prateek Koyal |#poems