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हिमांशु Kulshreshtha
White लोगों के फरेबी चेहरे देख कर, जज़्बातों से रिस रहा हूँ , दिल और दिमाग की इस रस्साकशी में, मैं पिस रहा हूँ ...!!!! ©हिमांशु Kulshreshtha लोगों के
लोगों के
read moreVijay Vidrohi
White ""बजट बिगडया"" सब्जी पर लहसुन का राज बढ़े टमाटर बढ़े प्याज कैसे सूखी रोटी खाएं, बहुमूल्य हो गया अनाज चटनी हो गई दाल बराबर दाल हो गई मछली मांस गोभी बैंगन और मिर्च के रेट देखकर फूले सांस। 100 ₹ पर लगा रहे हैं पांच टके का सीधा ब्याज। मजदूरी दर बढ़ी न उतनी जितनी महंगाई है आज। कुछ तो जतन करो रे भैया दिलवादो कोई धंधा-काज बेरोजगारी में भटक रहा देश का सारा यूथ समाज। ©Vijay Vidrohi ||बजट_बिगडया|| #my #new #poetry #poem #shayri #बजट #बेरोजगारी #महंगाई #byaj #garibi zindagi in hindi urdu poetry poetry in hindi h
हिमांशु Kulshreshtha
Unsplash कर के मोहब्बत भरपूर तुमसे .. हिस्से में सिर्फ तेरी बेरुखी के हक़दार हुए .. ख़बर भी ना लगी कब दिल खो गया कब तेरी चाहतों के शिद्दत से तलबगार हुए .. ©हिमांशु Kulshreshtha कर के..
कर के..
read moreऋतुराज पपनै "क्षितिज"
White "जो बेरोजगार होते हैं न साहब! उन्हें बार-बार अहसास दिलाया जाता है कि वो बेरोजगार हैं।" ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज" #बेरोजगारी #ऋतुराज
Ghanshyam Ratre
जंगल उपवन के छेड़छाड़ पेड़ -पौधों की कटाई कर रहें हैं। वन्य प्राणी पशु-पक्षियों का जीवन संकटों से प्रभावित हो रहें हैं।। जंगल में रहने वाले पशु-पक्षियां गांवों- शहरों में आ रहें हैं। खेती-बाड़ी फसल को उजाड़ कर बर्बाद कर रहे हैं।। ©Ghanshyam Ratre जंगलों के पशुओं पक्षियों के जीवन
जंगलों के पशुओं पक्षियों के जीवन
read moreF M POETRY
a-person-standing-on-a-beach-at-sunset समंदर के किनारे आ के अक्सर बैठ जाता हूँ.. सुना है दिल के दर्द-ओ-ग़म समंदर सोख लेता है.. यूसुफ़ आर खान... ©F M POETRY #समंदर के किनारे आ के अक्सर..
#समंदर के किनारे आ के अक्सर..
read moreअनिल कसेर "उजाला"
मौसम बदल रहा है सम्हल के चल, दिल से दिल मिल रहा है सम्हल के चल। तूफां तो बहुत आयेंगे जिंदगी में तेरे, वक़्त भी निकल रहा है सम्हल के चल। ©अनिल कसेर "उजाला" सम्हल के चल
सम्हल के चल
read moreGhanshyam Ratre
शीत लहरें कोहरे का ठंडा का महिना है । गरम वाले सुती ऊनी वस्त्र लगते सुहाने हैं।। बहुत ठंडा लगता है ठंड से शरीर कांपते हैं। ठंडा में गर्मागर्म खाने के चीजें अच्छे लगते हैं।। ©Ghanshyam Ratre ठंडा के महिने
ठंडा के महिने
read morePraveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी योजनाओं की धुंध से ओझल जनमानस उनकी नीतियां जीवन कपकपाती है सर्द और सुन्न हो गये मन मस्तिष्क ओले राशन पानी पर गिराकर महंगाई का कहर रसोई पर बरसाती है मानक सफ़लता के सरकारों के पास है गफलत में हम, दम तोड़े जाते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #sadak मानक सफलता के सरकारों के पास है
#sadak मानक सफलता के सरकारों के पास है
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