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Ekta sharma

ज़िन्दगी को जिया जाए #moonlight

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क्यों ना आज फिर लिखा✍️ जाए ,कुछ 
हसीन पलों को इन आंखों 👀में संजोया जाए  

 ज़िन्दगी की किताब 📖 छोटी है पर इस ज़िन्दगी में 
कुछ खोकर भी कुछ अनजाने  से लम्हों को पिंजर में कैद किया जाए 
बस ऐसे ही सब कुछ भुला कर खुद 💓के लिए जिंदगी 
को नए तरीके से चुना जाए ज़िन्दगी को जिया जाए 
#moonlight

amar gupta

#हर लम्हा को जिया है मैने... #Motivational

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Poonam bagadia "punit"

ज़िन्दगी को तनहा ही जिया है.....

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"दर्द को लपेट कर शब्दों में ..
कुछ इस तरह हमने भी बयाँ किया है...
साथ है अपनो के पर ज़िन्दगी को तन्हा ही
जीया है......

poonam bagadia "punit"    ज़िन्दगी को तनहा ही जिया है.....

faguram samrath

#Trip #manzil को भुला कर जिया तो क्या जिया #Best motivation #faguramsamrath #विचार

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ALFAAZ-E- MOHAN

#महोब्बत को महोब्बत से जिया है हमने।

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गुजरते लम्हें।

#SushantSinghRajput #मैंने इस दर्द को जिया है।

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कोई 34 की उम्र में दुनिया क्यों छोड़ रहा है? इतना कामयाब इंसान आत्महत्या क्यों कर रहा है? ये तो हम पूछते ही हैं पर मेन्टल हेल्थ को मज़ाक के तौर पे देखते हैं। हम उस स्थिति, उस दर्द को नहीं समझ पाते जिससे छुटकारा पाने के लिए कोई अपनी जान तक देना पसन्द करता है। #SushantSinghRajput
#मैंने इस दर्द को जिया है।

Unknown Girl Diary

जुल्मत -darkness किल्क - Pen #plzsupportme #urdushayri #२०२० #followme

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जुल्मत की इतनी ना इन्तहा कर कि
स्याही ए किल्क को इनका आदी हो जाना पड़े जुल्मत -darkness
किल्क - Pen
#plzsupportme #Urdushayri
#२०२० #followme

Jiya Wajil khan

ग़ज़ल - 2122 2122 1221 2212

देर   तक   ठहरे   मिज़ाज-ए-मुदारात   इस   कूचे   में
आ रहे   है  अब  तिरे   कुछ   ख़यालात  इस  कूचे  में
 
हमको  ना  दीजो  कोई   गर्द जह'मत  की वाइज  मिरे
हो  गया  हूँ   यक  ब-कैफ़ी-ए-हालात   इस   कूचे   में

तुम   नही  कुरआन   में   बे-सदा   चीखने   वाले   गर
मत  करो  जाया  ये  वक़्त-ए-मुनाजात   इस   कूचे  में

अपने  सब  अहद-ए-वफ़ा  लौटा  दूँगा  तिरे  दर  कभी
जान  ले   सक'ती   है   कोई  मुला'क़ात   इस  कूचे  में

इस मुहब्बत  के   शगूफे   जिया'दा   नही   चलते दाग़
यार   रह'ने   दो   तिरे   सब  इशा'रात    इस  कूचे   में

याँ ये  किसका  खूँ  पड़ा  है  जमीं की  दरारों  में  फिर
कौन   जाहिल  कर  रहा  था   करा'मात  इस  कूचे  में

तुम वक़ा'लत  भी  पढ़े  हो  मगर  चुप ही  रहना जफ़र
इश्क़  के   दामन   मिरे  पाँव   कोई   हिना    से    कटे

रो   रही  है   अब   मिरी   कोई  बा'रात   इस   कूचे  में
अब   नही   मिलती तला'फ़ी-ए-मा'फ़ात  इस  कूचे  में

बे-दिली का शहर  फिर ख़ाक-पत्थर दे सकता है  बस
अब  बड़ा  नुक़'सान   देंगे  ये  हा'जात   इस   कूचे   में

हमने  भी   इक़ दो  ग़ज़ल अप'ने  हाथों रखी  है  जिया
कुछ   दिनों   से   हो  रहा  है, जो  है'यात  इस  कूचे  में

©Jiya Wajil khan #जिया

Jiya Wajil khan

ग़ज़ल- 2122 2122 2122 2122 2

इतने  फ़ाजिल  है मगर  फिर  कुछ  सदायें मार  देती है 
दाग़  हम  कुछ काफि'रों  को अब    दुआयें  मार देती  है 

उस   दरीचे  की  गरेबाँ  कैद है  बस इक़  हिफ़ा'जत  में
अब  मिरे  इस  घर को कुछ क़ा'तिल हवायें मार देती है 

तुम   बड़े शायर नही  लगते बता'ओ  कौन   हो  तुम  याँ
रे   मियाँ   अंजान    लोगों  को   बलायें   -मार   देती  है

कोई  बीमारी  बड़ी    कब  थी मुहब्बत की न'जऱ में यार
कम्बख्त  इक़  इस   मुहब्बत   में   दवायें   मार  देती  है 

कुछ दिनों  हम  दश्त  की छांवों  में रहना चाहते है अब
जाने  किसने   ये  कहा   है  की   फिजायें  मार  देती है 

अहद टूटा, मर नही जाऊंगा शिक'वा  मत करो जाहिल
आद'मी  को  इन   दिनों  ज्यादा  वफा'यें  मार  देती   है 

पीना पड़ता  है जो  मिल'ता है  जहर की उन दुकानों से
आजकल  इस  शहर   बे-मत'लब  रजायें  मार  देती  है

रंग उड़ता भी कहाँ है इस ग़ज़ल का फिर जिया वाजिल
ये  बुरा  है  हाथों  को  अब  कुछ  हिना'यें मार   देती  है

©Jiya Wajil khan #जिया
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