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Stories related to निसाचर

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Shravan Goud

आभार: कंचुर हनुमान मंदिर 🙏🙏 ॐ श्री रामदूताय नमः 🙏 🙏 भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥ इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ

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भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। 
अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। 
राखु नाथ मरजाद नाम की॥ आभार: कंचुर हनुमान मंदिर 🙏🙏
ॐ श्री रामदूताय नमः 🙏 🙏
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुंदरकांड🙏 लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥ पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो #समाज

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🙏सुंदरकांड🙏
लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन
अति उतंग जलनिधि चहु पासा।
कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥
पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो ओर समुद्र की खाई -उस पर भी सोने के परकोटे (चार दीवारी) का तेज प्रकाश कि जिससे नेत्र चकाचौंध हो जाए॥

                छन्द 1
लंका नगरी और उसके महाबली राक्षसों का वर्णन
कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥
उस नगरी का रत्नों से जड़ा हुआ सुवर्ण का कोट,अतिव सुन्दर बना हुआ है-चौहटे, दुकाने व सुन्दर गलियों के बहार, उस सुन्दर नगरी के अन्दर बनी है-जहा हाथी, घोड़े, खच्चर, पैदल व रथो की गिनती कोई नहीं कर सकता और जहा महाबली, अद्भुत रूपवाले राक्षसो के सेना के झुंड इतने है कि जिसका वर्णन किया नहीं जा सकता॥

                    छन्द 2

लंका के बाग-बगीचों का वर्णन
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥
जहा वन, बाग़, बागीचे, बावडिया, तालाब, कुएँ, बावलिया शोभायमान हो रही है।
जहां मनुष्य कन्या, नागकन्या, देवकन्या और गन्धर्वकन्याये विराजमान हो रही है – जिनका रूप देखकर, मुनि लोगोका मन मोहित हुआ जाता है॥कही पर्वत के समान बड़े विशाल देहवाले महाबलिष्ट, मल्ल गर्जना करते है और अनेक अखाड़ों में अनेक प्रकारसे भिड रहे है और एक एक को आपस में पटक पटक कर गर्जना कर रहे है॥

                छन्द 3

लंका के राक्षसों का बुरा आचरण
करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥
जहां कही विकट शरीर वाले करोडो भट,चारो तरफ से नगरकी रक्षा करते है और कही वे राक्षस लोग, भैंसे, मनुष्य, गौ, गधे,बकरे और पक्षीयों को खा रहे है॥राक्षस लोगो का आचरण बहुत बुरा है।इसीलिए तुलसीदासजी कहते है कि मैंने इनकी कथा बहुत संक्षेपसे कही है।ये महादुष्ट है, परन्तु रामचन्द्रजीके बानरूप पवित्र तीर्थ नदी के अन्दर अपना शरीर त्याग कर, गति अर्थात मोक्षको प्राप्त होंगे॥

...निरंतर मंगलवार को...,

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 100 से 110 नाम 🙏🌹

100 अच्युतः अपनी स्वरुप शक्ति से च्युत न होने वाले
101 वृषाकपिः वृष (धर्म) रूप और कपि (वराह) रूप
102 अमेयात्मा जिनके आत्मा का माप परिच्छेद न किया जा सके
103 सर्वयोगविनिसृतः सम्पूर्ण संबंधों से रहित
104 वसुः जो सब भूतों में बसते हैं और जिनमे सब भूत बसते हैं
105 वसुमनाः जिनका मन प्रशस्त (श्रेष्ठ) है
106 सत्यः सत्य स्वरुप
107 समात्मा जो राग द्वेषादि से दूर हैं
108 सम्मितः समस्त पदार्थों से परिच्छिन्न
109 समः सदा समस्त विकारों से रहित
110 अमोघः जो स्मरण किये जाने पर सदा फल देते हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड🙏
लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन
अति उतंग जलनिधि चहु पासा।
कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥
पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 15 भगवान् राम के बाणों से राक्षसों का संहार हो जायेगा निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु। जननी #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
                     दोहा – 15

भगवान् राम के बाणों से राक्षसों का संहार हो जायेगा
निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु ॥15॥
हे माता! रामचन्द्रजी के बानरूप अग्नि के आगे इस राक्षस समूह को आप पतंग के समान जानो और इन सब राक्षसो को जले हुए जानकर मन मे धीरज धरो ॥15॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

अंधकार जैसे राक्षस और सूर्य जैसे श्री राम के बाण
जौं रघुबीर होति सुधि पाई।
करते नहिं बिलंबु रघुराई॥
रामबान रबि उएँ जानकी।
तम बरूथ कहँ जातुधान की॥1॥
हे माता ! जो रामचन्द्रजी को आपकी खबर मिल जाती तो प्रभु कदापि विलम्ब नहीं करते क्योंकि रामचन्द्रजी के बानरूप सूर्य के उदय होने पर राक्षसो की सेना रूपी अंधकार कहाँ रह सकता है?॥

हनुमानजी भगवान् राम की आज्ञा के बारें में कहते है
अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई।
प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई॥
कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥2॥
हनुमानजी कहते है की हे माता!मै आपको अभी ले जाऊं, परंतु करूं क्या?रामचन्द्रजी की आपको ले आने की आज्ञा नहीं है।इसलिए मै कुछ कर नहीं सकता।यह बात मै रामचन्द्रजीकी शपथ खाकर कहता हूँ॥इसलिए हे माता! आप कुछ दिन धीरज धरो।
रामचन्द्रजी वानरोंकें साथ यहाँ आयेंगे ॥

हनुमानजी का विशाल स्वरुप
हनुमानजी का छोटा रूप देखकर माता सीता को वानर सेना पर शंका
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।
तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना।
जातुधान अति भट बलवाना॥3॥
और राक्षसों को मारकर आपको ले जाएँगे। तब रामचन्द्रजी का यह सुयश तीनो लोकोमें नारदादि मुनि गाएँगे॥
हनुमानजी की यह बात सुन कर सीताजी ने कहा की हे पुत्र!सभी वानर तो तुम्हारे ही समान (नन्हे-नन्हे से) होगे और राक्षस बड़े योद्धा और बलवान है। फिर यह बात कैसे बनेगी? ॥

हनुमानजी सीताजी को अपना विशाल स्वरुप दिखाते है
मोरें हृदय परम संदेहा।
सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा॥
कनक भूधराकार सरीरा।
समर भयंकर अतिबल बीरा॥4॥
इसका मेरे मनमे बड़ा संदेह है।(कि तुम जैसे बंदर राक्षसो को कैसे जीतेंगे!)।
सीताजी का यह वचन सुनकर हनुमानजी ने अपना शरीर प्रकट किया॥हनुमानजी का वह विराट शरीर
सुवर्ण के पर्वत के समान विशाल ,
युद्ध के बीच बड़ा विकराल,रणके बीच बड़ा धीरज वाला,युद्ध मे शत्रुओ के हृदय मे भय उत्पन्न करने वाला,अत्यंत बलवान् और वीर था ॥

बजरंगबली का विशाल रूप देखकर सीताजी को वानर सेना पर विश्वास
सीता मन भरोस तब भयऊ।
पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ॥5॥
हनुमानजी के उस शरीरको देख कर
सीताजी के मन में पक्का भरोसा आ गया।तब हनुमानजी ने अपना छोटा स्वरूप धर लिया॥

विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 610 से 621 नाम

610 श्रीधरः जिन्होंने श्री को छाती में धारण किया हुआ हैं
611 श्रीकरः भक्तों को श्रीयुक्त करने वाले हैं
612 श्रेयः जिनका स्वरुप कभी न नष्ट होने वाले सुख को प्राप्त कराता है
613 श्रीमान् जिनमे श्रियां हैं
614 लोकत्रयाश्रयः जो तीनों लोकों के आश्रय हैं
615 स्वक्षः जिनकी आँखें कमल के समान सुन्दर हैं
616 स्वङ्गः जिनके अंग सुन्दर हैं
617 शतानन्दः जो परमानंद स्वरुप उपाधि भेद से सैंकड़ों प्रकार के हो जाते हैं
618 नन्दिः परमानन्दस्वरूप
619 ज्योतिर्गणेश्वरः ज्योतिर्गणों के इश्वर
620 विजितात्मा जिन्होंने आत्मा अर्थात मन को जीत लिया है
621 विधेयात्मा जिनका स्वरुप किसीके द्वारा विधिरूप से नहीं कहा जा सकता

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
                     दोहा – 15

भगवान् राम के बाणों से राक्षसों का संहार हो जायेगा
निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुंदरकांड🙏 लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥ पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो #समाज

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🙏सुंदरकांड🙏
लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन
अति उतंग जलनिधि चहु पासा।
कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥
पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो ओर समुद्र की खाई -उस पर भी सोने के परकोटे (चार दीवारी) का तेज प्रकाश कि जिससे नेत्र चकाचौंध हो जाए॥

                छन्द 1
लंका नगरी और उसके महाबली राक्षसों का वर्णन
कनक कोटि बिचित्र मनि कृत सुंदरायतना घना।
चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना॥
गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै।
बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै॥
उस नगरी का रत्नों से जड़ा हुआ सुवर्ण का कोट,अतिव सुन्दर बना हुआ है-चौहटे, दुकाने व सुन्दर गलियों के बहार, उस सुन्दर नगरी के अन्दर बनी है-जहा हाथी, घोड़े, खच्चर, पैदल व रथो की गिनती कोई नहीं कर सकता और जहा महाबली, अद्भुत रूपवाले राक्षसो के सेना के झुंड इतने है कि जिसका वर्णन किया नहीं जा सकता॥

                    छन्द 2

लंका के बाग-बगीचों का वर्णन
बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं।
नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं॥
कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं।
नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं॥
जहा वन, बाग़, बागीचे, बावडिया, तालाब, कुएँ, बावलिया शोभायमान हो रही है।
जहां मनुष्य कन्या, नागकन्या, देवकन्या और गन्धर्वकन्याये विराजमान हो रही है – जिनका रूप देखकर, मुनि लोगोका मन मोहित हुआ जाता है॥कही पर्वत के समान बड़े विशाल देहवाले महाबलिष्ट, मल्ल गर्जना करते है और अनेक अखाड़ों में अनेक प्रकारसे भिड रहे है और एक एक को आपस में पटक पटक कर गर्जना कर रहे है॥

                छन्द 3

लंका के राक्षसों का बुरा आचरण
करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं।
कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं॥
एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही॥
जहां कही विकट शरीर वाले करोडो भट,चारो तरफ से नगरकी रक्षा करते है और कही वे राक्षस लोग, भैंसे, मनुष्य, गौ, गधे,बकरे और पक्षीयों को खा रहे है॥राक्षस लोगो का आचरण बहुत बुरा है।इसीलिए तुलसीदासजी कहते है कि मैंने इनकी कथा बहुत संक्षेपसे कही है।ये महादुष्ट है, परन्तु रामचन्द्रजीके बानरूप पवित्र तीर्थ नदी के अन्दर अपना शरीर त्याग कर, गति अर्थात मोक्षको प्राप्त होंगे॥

...निरंतर मंगलवार को...,

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 100 से 110 नाम 🙏🌹

100 अच्युतः अपनी स्वरुप शक्ति से च्युत न होने वाले
101 वृषाकपिः वृष (धर्म) रूप और कपि (वराह) रूप
102 अमेयात्मा जिनके आत्मा का माप परिच्छेद न किया जा सके
103 सर्वयोगविनिसृतः सम्पूर्ण संबंधों से रहित
104 वसुः जो सब भूतों में बसते हैं और जिनमे सब भूत बसते हैं
105 वसुमनाः जिनका मन प्रशस्त (श्रेष्ठ) है
106 सत्यः सत्य स्वरुप
107 समात्मा जो राग द्वेषादि से दूर हैं
108 सम्मितः समस्त पदार्थों से परिच्छिन्न
109 समः सदा समस्त विकारों से रहित
110 अमोघः जो स्मरण किये जाने पर सदा फल देते हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड🙏
लंका नगरी और उसके सुवर्ण कोट का वर्णन
अति उतंग जलनिधि चहु पासा।
कनक कोट कर परम प्रकासा॥6॥
पहले तो वह बहुत ऊँची है,फिर उसके चारो

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 24 राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता #समाज

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🙏सुंदरकांड 🙏
दोहा – 24
राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है
सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता है इसलिए इसकी पूंछ में तेल से भीगे हुए कपडे लपेट कर
आग लगा दो ॥24॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी की पूँछ में राक्षसों द्वारा आग लगाने का प्रसंग
रावण हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने का हुक्म देता है
पूँछहीन बानर तहँ जाइहि।
तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥
जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई।
देखेउँ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥1॥
जब यह वानर पूंछ हीन होकर (बिना पूँछ का होकर) अपने मालिक के पास जायेगा,तब अपने स्वामी को यह ले आएगा॥इस वानर ने जिसकी अतुलित बढाई की है,भला उसकी प्रभुता को मैं देखूं तो सही कि वह कैसा है?॥

राक्षस हनुमानजी की पूँछ में आग लगाने की तैयारी करते है
बचन सुनत कपि मन मुसुकाना।
भइ सहाय सारद मैं जाना॥
जातुधान सुनि रावन बचना।
लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥2॥
रावन के ये वचन सुनकर हनुमानजी मन में मुस्कुराए और मन में सोचने लगे कि मैंने जान लिया है कि इस समय सरस्वती सहाय हुई है क्योंकि इसके मुंह से रामचन्द्रजी के आने का समाचार स्वयं निकल गया॥तुलसीदास जी कहते है कि वे राक्षस लोग रावण के वचन सुनकर वही तैयारी करने लगे
अर्थात तेल से भिगो भिगोकर कपडे
उनकी पूंछ में लपेटने लगे॥

हनुमानजी पूँछ लम्बी बढ़ा देते है
रहा न नगर बसन घृत तेला।
बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥
कौतुक कहँ आए पुरबासी।
मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥3॥
उस समय हनुमान जी ने ऐसा खेल किया कि अपनी पूंछ इतनी लंबी बढ़ा दी कि जिसको लपेटने के लिये नगरी में कपडा, घी व तेल कुछ भी बाकी न रहा॥नगर के जो लोग तमाशा देखने को वहां आये थे,वे सब बहुत हँसते हैं॥

राक्षस हनुमानजी की पूँछ में आग लगा देते है
बाजहिं ढोल देहिं सब तारी।
नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥
पावक जरत देखि हनुमंता।
भयउ परम लघु रुप तुरंता॥4॥
अनेक ढोल बज रहे हे, सब लोग ताली दे रहे हैं,इस तरह हनुमानजी को नगरी में सर्वत्र फिरा कर फिर उनकी पूंछमें आग लगा दी॥हनुमानजी ने जब पूंछ में आग जलती देखी तब उन्होने तुरंत बहुत छोटा स्वरूप धारण कर लिया॥

हनुमानजी छोटा रूप धरकर बंधन से छूट जाते है
निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं।
भई सभीत निसाचर नारीं॥5॥
और बंधन से निकल कर पीछे सोने की अटारियों पर चढ़ गए,जिसको देखते ही तमाम राक्षसों की स्त्रीयां भयभीत हो गयी॥

आगे शनिवार को ....,

विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 933 से 944 नाम  

933 अनन्तश्रीः जिनकी श्री अपरिमित है
934 जितमन्युः जिन्होंने मन्यु अर्थात क्रोध को जीता है
935 भयापहः पुरुषों का संस्कारजन्य भय नष्ट करने वाले हैं
936 चतुरश्रः न्याययुक्त
937 गभीरात्मा जिनका मन गंभीर है
938 विदिशः जो विविध प्रकार के फल देते हैं
939 व्यादिशः इन्द्रादि को विविध प्रकार की आज्ञा देने वाले हैं
940 दिशः सबको उनके कर्मों का फल देने वाले हैं
941 अनादिः जिनका कोई आदि नहीं है
942 भूर्भूवः भूमि के भी आधार है
943 लक्ष्मीः पृथ्वी की लक्ष्मी अर्थात शोभा हैं
944 सुवीरः जो विविध प्रकार से सुन्दर स्फुरण करते हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड 🙏
दोहा – 24
राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है
सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 23 अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान। भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान #समाज

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🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 23
अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ॥23॥
हे रावण! मोह् का मूल कारण और
अत्यंत दुःख देने वाली अभिमान की बुद्धि को छोड़ कर कृपा के सागर भगवान् श्री रघुवीर कुल नायक रामचन्द्रजी की सेवा कर ॥23॥
(मोह ही जिनका मूल है ऐसे बहुत पीड़ा देने वाले, तमरूप अभिमान का त्याग कर दो)
श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी के सच्चे वचन अहंकारी रावण की समझ में नहीं आते है
जदपि कही कपि अति हित बानी।
भगति बिबेक बिरति नय सानी॥
बोला बिहसि महा अभिमानी।
मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥
यद्यपि हनुमान जी रावण को अति हितकारी और भक्ति, ज्ञान,धर्म और नीति से भरी वाणी कही,परंतु उस अभिमानी अधम के उसके कुछ भी असर नहीं हुआ॥इससे हँसकर बोला कि हे वानर!आज तो हमको तु बडा ज्ञानी गुरु मिला॥

रावण हनुमानजी को डराता है
मृत्यु निकट आई खल तोही।
लागेसि अधम सिखावन मोही॥
उलटा होइहि कह हनुमाना।
मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥
हे नीच! तू मुझको शिक्षा देने लगा है.
सो हे दुष्ट! कहीं तेरी मौत तो निकट नहीं आ गयी है?॥रावण के ये वचन सुन हनुमान्‌ ने कहा कि इससे उलटा ही होगा (अर्थात् मृत्यु तेरी निकट आई है, मेरी नही)।हे रावण! अब मैंने तेरा बुद्धिभ्रम (मतिभ्रम) स्पष्ट रीति से जान लिया है॥

रावण हनुमानजी को मारने का हुक्म देता है
सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना।
बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना॥
सुनत निसाचर मारन धाए।
सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥
हनुमान्‌ के वचन सुन कर रावण को बड़ा कोध आया,जिससे रावण ने राक्षसों को कहा कि हे राक्षसो!
इस मूर्ख के प्राण जल्दी ले लो अर्थात इसे तुरंत मार डालो॥इस प्रकार रावण के वचन सुनते ही राक्षस मारने को दौड़ें तब अपने मंत्रियोंके साथ विभीषण वहां आ पहुँचे॥

विभीषण रावणको दुसरा दंड देने के लिए समझाता है
नाइ सीस करि बिनय बहूता।
नीति बिरोध न मारिअ दूता॥
आन दंड कछु करिअ गोसाँई।
सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥
बड़े विनय के साथ रावण को प्रणाम करके बिभीषणने कहा कि यह दूत है इसलिए इसे मारना नही चाहिये  क्यों कि यह बात नीतिसे विरुद्ध है॥
हे स्वामी! इसे आप कोई दूसरा दंड दे दीजिये पर मारें मत।बिभीषण की यह बात सुनकर सब राक्षसों ने कहा कि
हे भाइयो! यह सलाह तो अच्छी है॥

रावण हनुमानजी को दुसरा दंड देने का सोचता है
सुनत बिहसि बोला दसकंधर।
अंग भंग करि पठइअ बंदर॥
रावण इस बात को सुन कर बोला कि
जो इसको मारना ठीक नहीं है,तो इस बंदर का कोई अंग भंग करके इसे भेज दो॥
विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 897 से 908 नाम  )
897 सनातनतमः जो ब्रह्मादि सनतानों से भी अत्यंत सनातन हैं
898 कपिलः बडवानलरूप में जिनका वर्ण कपिल है
899 कपिः जो सूर्यरूप में जल को अपनी किरणों से पीते हैं
900 अव्ययः प्रलयकाल में जगत में विलीन होते हैं
901 स्वस्तिदः भक्तों को स्वस्ति अर्थात मंगल देते हैं
902 स्वस्तिकृत् जो स्वस्ति ही करते हैं
903 स्वस्ति जो परमानन्दस्वरूप हैं
904 स्वस्तिभुक् जो स्वस्ति भोगते हैं और भक्तों की स्वस्ति की रक्षा करते हैं
905 स्वस्तिदक्षिणः जो स्वस्ति करने में समर्थ हैं
906 अरौद्रः कर्म, राग और कोप जिनमे ये तीनों रौद्र नहीं हैं
907 कुण्डली सूर्यमण्डल के समान कुण्डल धारण किये हुए हैं
908 चक्री सम्पूर्ण लोकों की रक्षा के लिए मनस्तत्त्वरूप सुदर्शन चक्र धारण किया है

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏
दोहा – 23
अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान

Sachin Ratnaparkhe

इन्द्र जिमि जंभ पर , वाडव सुअंभ पर । रावन सदंभ पर , रघुकुल राज है ॥१॥ पौन बरिबाह पर , संभु रतिनाह पर । ज्यों सहसबाह पर , राम व्दि‍जराज है ॥२

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छत्रपति शिवाजी के जन्म दिवस के अवसर पर उनकी महिमा का रितिकाल के कवि भूषण द्वारा ब्रज भाषा में विभिन्न अलंकारों एवम् वीर रस से युक्त अत्यंत मनमोहक सुंदर चित्रण पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। यह पढ़ने के दौरान ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसा साक्षात् महाराज छत्रपति शिवाजी का दर्शन हो रहा हो। यह पौराणिक काव्य शैली आधुनिक हिप होप संगीत शैली (रेप सॉन्ग्स) से काफी मिलती जुलती है और ये बेहद ही खूबसूरत अनुभूति है। और भुषण के इन छंदो को महाराष्ट्र में ठोल ताशे बजाकर बड़ी मस्ती में और बहुत ऊर्जा के साथ गाया जाता है।

(Caption me puri Kavita padhe) इन्द्र जिमि जंभ पर , वाडव सुअंभ पर ।
रावन सदंभ पर , रघुकुल राज है ॥१॥
पौन बरिबाह पर , संभु रतिनाह पर ।
ज्यों सहसबाह पर , राम व्दि‍जराज है ॥२
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