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Lovely Marjana
उन गरीबो का भी रखना है हमें पूरा ख्याल, जिनको है ये फिक्र के क्या खाएंगे 21 दिन ... उन गरीबो का भी रखना है हमें पूरा ख्याल, जिनको है ये फिक्र के क्या खाएंगे 21 दिन ...
Shivraj Solanki
क्या खाएंगे उसकी पत्नी और बच्चे नभ में सूरज निकला और प्रभात हुई कष्टकारी क्लिष्ट काली रात की रात हुई रात का झाड़ा थोड़ा तो कम हुआ नहीं दरिद्र का दुख भी थोड़ा तो कम हुआ नहीं बढ़ेगी रोटी के जुगाड की चिंता क्या खाएंगे उसकी पत्नी और बच्चा अबकी बार खेतो में फ़सल नहीं है हो भी कहा से कुऑ में पानी नहीं है दरिद्रता का हाल बुरा है सिर पे छत परिवार में किसी के पेट में अन्न नहीं है सिर छत थी जो साहूकार ने छीन ली खेतों में फसल थी जो कुदरत ने लेली मेरा क्या दोष मैने जीवन भर खेती की कोई दूसरा काम मैने सीखा नहीं लोगों को धोका देना आता नहीं अब कहा से करू रोटी का जुगाड क्या खाएंगे उसकी पत्नी ओर बच्चे क्या खुले आसमान के तले भीख में जो खाने को मिले उसे खाकर सो जाएंगे केसे आगे बढ़ेंगे मेरे बच्चे केसे लड़ेंगे स्वार्थ भारी दुनिया से क्या कभी गरीबी से निकाल पाएंगे मेरे बच्चे या फिर गरीबी में मार जाएंगे मेरे बच्चे क्या खाएंगे उसकी पत्नी ओर बच्चें फिर से वह क्लिष्ट कली रात आयेगी फिर से झाड़ा आयेगा ठंड का खतरा बढ़ जायेगा क्या अबकी प्रभा सुख का सूरज उगेगा यही आस जीवन जीता रहेगा क्या खाएंगे मेरी पत्नी और बच्चे शिवराज खटीक किसान की दर्द भरी कविता क्या खाएंगे उसकी पत्नी और बच्चे
Sandeep Kothar
अन्न का हर एक दाना है वरदान इस मुश्किल घड़ी में कुछ बाते समझ नहीं आती... कुछ लोग कहते है आज क्या खाएं..? और कुछ तो कहते है आज क्या क्या खाएं..? कुछ तो कहते है आज क्या पकाएं..? और कुछ तो कहते है आज क्या कुछ और पकाएं..? बात तो तब हज़म नहीं होती.. जब कुछ लोग कहते है की आज भूखा ही सोना पड़ेगा..? और कुछ कहते हैै.. आज क्यों ना उपवास करते..? अन्नदाता का वरदान तो सबको मिला... कोई भूखा है तन से.. तो कोई सिर्फ मन से.. इसलिए, सदा अनाज के एक एक दाने की कीमत समझे..! ©Sandeep Manohar Kothar Please comment.. इस मुश्किल घड़ी में कुछ बाते समझ नहीं आती... कुछ लोग कहते है आज क्या खाएं..? और कुछ तो कहते है आज क्या क्या खाएं..? कुछ
Preet Gaba
बंजर जमीन बंजर ही रह गई, सूखी मिट्टी सुखी ही रह गई। किसान की उम्मीदें टूटी ही रह गई,. सरकार की दलीलें झूठी ही रह गई। क्या बोए क्या खाएं? जिसने सबको खिलाया उसकी बेटी भूखी रह गई। लगान कहाँ से चुकाए किसान? जमीन थी गिरवी. गिरवी ही रह गई। बहुत गीतों में मेरा नाम है,. कि किसान महान है।. पर मेरी दशा जैसी थी, वैसी ही रह गई। कुछ ना मिला,. अंतिम में खुदा ने पनाह दी।. अब हिम्मत मेरी अलविदा कह गई, बस लाश मेरी झूला झूलती रह गई। किसान की हालत बंजर जमीन बंजर ही रह गई, सूखी मिट्टी सुखी ही रह गई। किसान की उम्मीदें टूटी ही रह गई, सरकार की दलीलें झूठी ही रह गई।
AB
" take off... ऐसा नहीं है मैंने कभी 'take' और 'off' शब्द नहीं पढ़े और ऐसा भी नहीं है कि मुझे इनके अर्थ नहीं पता. बचपन से लेकर न जाने अब तक मैंने कितनी बार
Anjuola Singh (Bhaddoria)
#anjula #singh #bhadauria देवभूमि उत्तराखंड, एक अविस्मरणीय संस्मरण By ©Anjula Singh Bhadauria नमस्कार/ਸਤਿ ਸ਼੍ਰੀ ਅਕਾਲ/आदाब/Hello दोस्तों, सर्वप्रथम आप सबसे अनुरोध है