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Dr. Naveen Prajapati

#dr_naveen_prajapati #शून्य_से_शून्य_तक #कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है.. तुम बनकर मेरे हमसफ़र , साथ तय करेंगे ये सफर , तुम बस हाथों में हाथ

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 #dr_naveen_prajapati
#शून्य_से_शून्य_तक
#कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है..
तुम बनकर मेरे हमसफ़र ,
साथ तय करेंगे ये सफर  ,
तुम बस हाथों में हाथ

Kulbhushan Arora

आनंद के संबंध में विस्तृत जानकारी पड़ कर हज़ारों पत्र आए, सैंकड़ों फ़ोन कॉल,भावनाओं और उत्साह ने आनंद को भाव विभोर कर दिया। इसी उत्साह में उ #yqquotes #yqkulbhushandeep #yqउपन्यास

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एक अधूरा उपन्यास...


पृष्ठ4
 आनंद के संबंध में विस्तृत जानकारी पड़ कर हज़ारों पत्र आए, सैंकड़ों फ़ोन कॉल,भावनाओं और उत्साह ने आनंद को भाव विभोर कर दिया। इसी उत्साह में उ

Kulbhushan Arora

Dedicating a #testimonial to Sumana *सु*मन सुंदर मन *सु*माना अच्छी मां हो ना *सु*मने सुंदर मन रे..😍😍 *सु*मा

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*सु*मन            सुंदर मन
*सु*माना          अच्छी मां हो ना
*सु*मने             सुंदर मन रे..😍😍
*सु*मा             प्यारी *मां* Dedicating a #testimonial to Sumana 
*सु*मन            सुंदर मन
*सु*माना          अच्छी मां हो ना
*सु*मने             सुंदर मन रे..😍😍
*सु*मा

Kulbhushan Arora

मन तुम्हारा सरल है ना😊 मन तुम्हारा *सुमन* है ना🌺 सरलता, सादगी की शाल ओढ़े, स्नेहिल भाव से तुम भर देती सबके मन, इतना स्नेह कहां से पाया तु #yqकुलभूषणदीप

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 मन तुम्हारा सरल है ना😊
 मन  तुम्हारा*सुमन* है ना🌺
शेष अनुशीर्षक में पढ़िए  मन तुम्हारा सरल है ना😊
 मन तुम्हारा *सुमन* है ना🌺
सरलता, सादगी की शाल ओढ़े,
स्नेहिल भाव से तुम
 भर देती सबके मन,
इतना स्नेह कहां से पाया तु

राजेश गुप्ता'बादल'

नेह द्वार पर वो मिली,कर पलकों की ओट। मीठी मीठी सी लगी , वो नयनो की चोट।। लरज सकुच सी साबली,फैंक रही थी डोर। भाषा बाधित लब्ज की,क्या बतला

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नेह द्वार पर वो मिली,कर पलकों की ओट।
मीठी मीठी  सी  लगी , वो नयनो  की चोट।।

लरज सकुच सी साबली,फैंक रही थी डोर।
भाषा बाधित लब्ज की,क्या बतलाऊँ तोर।।

प्रथम दर्श की व्यथा जो ,  कैसे कहूँ बताय।
प्यासे नयना मिलन को, किसको दूँ बतलाय।।

भाव विहल वो भी रही, मैं प्रेम भाव खोय।
सूझ परी ना दोन कों ,हस सके न हीं रोय ।।

छाँयाँ सी अंकित भई , खीच हृदय के तार।
द्रवित नयन उसके भये,रोया मैं  दिन रात।।

बनी सखी सी कलम जो, दिया मन मैं उतार।
आहट हलकी भी भई  , देखूँ खोल   किबार।।

उलझन मन की बहुत है,कैसे पाऊँ पार।
टोटा पड़ा लगाव का,कैसे हो व्यापार।।

आचमनन को तरस रही,आँखे हे करतार।
 दिन दिन बड़ती पीर है,व्यर्थ लागे संसार।। नेह द्वार पर वो मिली,कर पलकों की ओट।
मीठी मीठी  सी  लगी , वो नयनो  की चोट।।

लरज सकुच सी साबली,फैंक रही थी डोर।
भाषा बाधित लब्ज की,क्या बतला
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