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Shravan Goud
स्वार्थ शब्द का एक और अर्थ है, स्व+अर्थ यानी स्वयं का अर्थ लगाना। --अज्ञात स्वार्थ शब्द का एक और अर्थ है, स्व+अर्थ यानी स्वयं का अर्थ लगाना। --अज्ञात
Pratyush Raunak
आँगन में आकर खिली हो फिर से निष्छल वात्सल्य से मिलकर तुम पुष्प तुम्हें वन्दन है मेरा उल्लास खुरेदो खिलकर तुम ll #NojotoQuote #पुष्प का उल्लास #Nojotohindi
कलीम शाहजहांपुरी (साहिल)
उसकी रंगत है जैसे कोई खिलता गुलाब, उसकी बातों से टपके इल्हाम की बारिश.! ©कलीम शाहजहांपुरी (साहिल) शायरी ( इल्हाम का अर्थ होता है अल्लाह,ईश्वर का शब्द)
Chetan Jaat
शब्द आत्मा है और उनके अर्थ उस आत्मा की अभिव्यक्ति, इसलिए शब्द और अर्थ दोनों का बोध अनिवार्य है । ©Chetan Jaat #notjo #शब्द #अर्थ #अभिव्यक्ति
Kavita jayesh Panot
शब्द वही होते है वर्ण माला के, लेकिन वक्त के बदलाव के साथ , तार बदल जाते है। कभी सुख ,एहसास खुशी का दिला जाता है तो कभी वही सु और ख से सूखापन बन जाता है। जो एक नकारात्मकता का बोध है। कविता जयेश पनोत ©Kavita jayesh Panot #शब्द#भेद#वक्त#अर्थ
Hasanand Chhatwani
*सीमित शब्द हो और* *असीमित अर्थ हो...* *लेकिन इतना ही हो कि* *शब्द से न कष्ट हो...* #सिमित शब्द #असीमित अर्थ #
Arora PR
कितने ही अल्प विराम आते है जीवन मे अवसादों के फिर भी प्रेरणा के रंग बिरंगे फूलो को हमें खिलने देना है कितनी बार टूटता है आदमी और कितनी बार उल्लास का विधवंस होता है पर साँसों की सीतार पर उल्लास की सूक्ष्मत्म परतो को हमें तरंगीत होने देना है ©Arora PR उल्लास
Parasram Arora
एक फूल का खिल जाना ही उपवन का मधुमास नहीं है बाहर घर का जगमग करना भीतर का उल्लास नहीं है (संकलित ( ©Parasram Arora उल्लास
Ek villain
भारत त्योहारों का देश है त्योहार हमारी संस्कृति की प्राण तत्व है कोई ऐसी रितु नहीं जो बिना त्यौहार की रीति बिकती हो तेवर से हमारा लोग और समाज नया जीवन नया अर्थ और नई चेतना ग्रहण करता हमारे पर्व में हमें दुनिया ने भी एक मौलिक विशिष्ट पहचान प्रदान करते हैं सनातन संस्कृति में पर्व की यह परिपाटी सदियों पुरानी है वास्तव में सनातन समाज अकेला ऐसा समाज है जो हजारों वर्ष से अपने समय कितना और स्मृतियों से अपने त्यौहार एवं परंपराओं को कम भूपेश और उनके मूल स्वरूप से सहित संभाले हुए भारत की मिट्टी हवा पानी में उत्सव बोला है इसी उत्सव धर्मी हमारी जीवंत और गतिशील का सबसे बड़ा प्रणाम हम हमें सब के साथ घुलमिल ना सब के साथ लेना सब के साथ चलने की प्रेरणा देते हैं जीवन की कठोर वास्तविकता से जूझते यथार्थ के तड़पते दुख भोंकते जब हमारे देश को जोड़ता एवं उदासीनता हावी होने लगती है तो यह उत्साही हमारे ऐसे मन स्थिति से बढ़ते हैं त्योहारों की ऐसी समृद्ध परिपाटी कदाचित हमारे ऋषि-मुनियों एवं पुरखों की स्वर वेतन दिन है होली केवल एक उत्साह भर नहीं है यह एक समाज अनुष्ठान है उड़ीसा माता का उत्साह है और हर व्यक्ति समाज के जीवन में आयोजित हुआ इस उदासीनता और सा विक्रम आते ही रहते हैं इन सबके बीच जीवन की गतिमान बनाए रखने के लिए यह अपेक्षा एक आवश्यक है कि वर्ष भर एकत्रित की गई कुल श्रद्धा को प्रेषित कर दिया जाए ताकि ताकि जीवन में एक नए संकल्प पारित हो जा सके ©Ek villain #उल्लास और समता का पर्व होली #Holi