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Rahul Motivational Video
Sadbhawana Samachar
Adv.Pramod@Basti
परमात्मा कण कण में हर अणु में है, और ब्रम्हांड में समस्त अणुओं में व्याप्त परमशक्ति के समस्त व एकल अवस्था को समझ लेने पर वही परमात्मा ही समग्र व परिपूर्ण होकर एक रूप दृष्टिगोचर होता है। ©Raj222 #परमात्मा #कण कण में हर #अणु में है, और #ब्रम्हांड में समस्त अणुओं में व्याप्त #परमशक्ति के समस्त व एकल अवस्था को #समझ लेने पर वही परमात्मा
Pinki Khandelwal
मिलती है खुशियां जब अपने साथ होते हैं, मिलता है ढेरों प्यार मां के आंचल की छांव में, मिलती है हजारों दुआएं परिवार के साथ में, होती है हजारों ख्वाहिशें क्योंकि पिता होते पास में, अपनों का प्यार परिवार की दुआओ में वो शक्ति है, जो जुड़ जाती जब पांचों उंगलियां तब महसूस होती है, जीवन की मुश्किलें कम लगती है जब अपने साथ होते हैं, सचमुच प्यार का महत्व तो परिवार के बीच महसूस होता है, अपनों से जुदा होकर जीवनभर निराशा हाथ लगती है, साथ रहकर तो हर परेशानी छोटी सी लगती है, दादा दादी से मिली सीख जीवन जीना सिखाती है, माता पिता से मिले संस्कारों से, हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है, भाई बहना के साथ से हर मुश्किल आसान लगती है, चाचा चाची ताई ताऊजी के साथ में कब सुबह और कब शाम बीत जाती पता नहीं चल पाता, सचमुच अपने तो अपने ही होते हैं, उनका प्यार उनसे मिले संस्कार हमें संस्कारवान बनाते हैं, बड़ों का सम्मान करना सिखाते हैं, परिवार का महत्व समझाते हैं, रिश्तों को निभाना सिखाते हैं, सचमुच परिवार के बीच में रहकर उनके साथ मिलकर, जीवन में आने वाले उतार चढ़ाव भी छोटे लगते हैं, बेशक सूखी रोटी मिले पर वो भी छप्पन भोग सी लगती है, क्योंकि उसमें अपनों का प्यार स्नेह दुलार मिला होता है, फटे कपड़े भी डिजाइनर सूट जैसे लगते हैं, क्योंकि उसमे पिता की जीवनभर की कमाई लगी होती है, सचमुच अपनों के प्यार से बढ़कर कोई दौलत नहीं, और अपनों के साथ में रहकर मिलने वाली खुशी से, बढ़कर दुनिया की कोई वस्तु इतनी अनमोल नहीं। ©Pinki Khandelwal वर्तमान मे एकल परिवार को सब अच्छा मानते हैं पर वास्तव में पहले जो संयुक्त परिवार में लोग रहते थे उनके साथ और अपनेपन की मिठास बहुत ही खास होत
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HINDI SAHITYA SAGAR
"कविता : जय! जय! गणतंत्र हमारा।" जय! जय! गणतंत्र हमारा! जय हो! लोकतंत्र हमारा! विश्व का सबसे बड़ा लिखित है भारत का संविधान। लोकतांत्रिक गणराज्य का जिसमें निहित विधान। जय! जय!...(01) नीति निदेशक तत्त्व निहित हैं, मूल अधिकार प्रधान। कार्यप्रणाली संसदीय और केंद्र अभिमुख संविधान। जय! जय!....(02) समिधा, बलिवेदी की बनकर जिन्होंने त्यागे प्राण, और गुलामी की जंजीरें तोड़ किया परित्राण। जय! जय!...(03) दुःख के तम को काट हुआ आशा का नव्य विहान, श्रद्धा-सुमन करे हम अर्पण और करें गुणगान। जय! जय!...(04) न्यायपालिका है स्वतंत्र, और वयस्क को मतदान, कर्तव्यों व आपातकाल का इसमें है प्रावधान। जय! जय!....(05) नम्यता व अनम्यता का अद्भुत मिश्रण है शान, प्रभुता सम्पन्न, समाजवादी, निरपेक्ष पंथ की खान। जय! जय!...(06) एकल नागरिकता है इसमें, शासन संघ महान, संसदात्मक प्रजातंत्र का रखा है इसमें ध्यान। जय! जय!...(07) भारत के संविधान की है अति विशाल प्रतान, ज्ञान और विज्ञान प्रपूरित थे वो व्यक्ति सुजान। जय! जय!...(08) खून-पसीने से सिंचित कर दिया हमें संविधान, दंभ और विद्वेष भुलाकर आओ करें गुणगान। जय! जय!...(09) जय! जय! गणतंत्र हमारा! जय हो! लोकतंत्र हमारा! -शैलेन्द्र राजपूत उन्नाव, उत्तर-प्रदेश (#हिंदी_साहित्य_सागर) ©HINDI SAHITYA SAGAR "कविता : जय! जय! गणतंत्र हमारा।" जय! जय! गणतंत्र हमारा! जय हो! लोकतंत्र हमारा! विश्व का सबसे बड़ा लिखित है भारत का संविधान। लोकतांत्रिक गणर