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INDIA CORE NEWS
Ravendra
Alpha_Infinity
राम रमणा राम सर्वम राम ही राम पुकारू।। राम बिना ये जग है सुना, राम तेरे लिए सब वारु।। राम सिया की मोहक जोड़ी, हर पल उनको निहारू।। जी लू ये जीवन, फिर राम में ही मर के मिल जाऊ।। ©Mr. Infinity #ramsita राम जैसा कोई भी नहीं, राम करते राम कराते।। राम की धुन में सब गाते जाते।। जय श्री राम।। हर हर महादेव।। जय घोष।। #नोजोटोहिंदी #राम #र
Rajiv R Srivastava
रंगों की भी इक अपनी खूबी। अपने रंग सब को रंगे बखूबी॥ रंग गुलाबी कर देता मदहोश। जैसे प्रेयसी का मधु आग़ोश॥ लाल रंग करता विजय घोष। मन में बढ़ाता हर पल जोश॥ हरा हरियाली हर्षित तन मन। नीला रंग जैसे अंतहीन गगन॥ पीला रंग मन महकाने वाला। माँ जैसा स्नेह बरसाने वाला॥ भगवा रंग की अपनी ही माया। त्याग तपस्या स्वच्छ हो काया॥ सबसे जुदा एक है रंग सफ़ेद। कभी ना करता किसी से भेद॥ सभी रंगों को अपने में समाये। कभी रुलाये तो कभी हंसाये॥ सब रंगों का रासि रखवाला। सादा रंग पिता जैसा निराला॥ ऐसे ही प्यार के होते रंग हजार। जिससे होता पुलकित ये संसार॥ ✍🏻@raj_sri #yqbaba #yqdidi #yqholi #holi #colours #rang #festivalofcolors
Abhay Bhadouriya
स्वयं को भूल जाऊं क्या. ( अनुशीर्षक में पढ़ें) राणा की वीरता का गाना ना करूं तो क्या मैं सुंदरी के रंग रूप में डूब जाऊं क्या कवच ,तलवार का भी ना करु सम्मान तो क्या तुम कहो तो वीरता का पा
विष्णुप्रिया
श्रद्धांजली मत दो हमें हम मृत नही अभी जीवित हैं बस तन ही पृथक हुआ हम से …!!! कण कण में हम ही संमलित हैं ॥ श्रद्धांजली मत दो हमें हम मृत नही अभी जीवित हैं बस तन ही पृथक हुआ हम से …!!! कण कण में हम ही संमलित हैं ॥ ला सको तो उनके शीश ले आओ, जिन्होन
विष्णुप्रिया
अदम्य अतुल साहस है जिनका, और प्रचंड सिंह सी हुँकार, रक्त रक्त में रोपित जिनके, मातृ भूमि का प्रेम अनुराग, अदम्य अतुल साहस है जिनका, और प्रचंड सिंह सी हुँकार, रक्त रक्त में रोपित जिनके, मातृ भूमि का प्रेम अनुराग, जिनकी शौर्य गाथा से अब तक गूँज र
विष्णुप्रिया
गृहस्थ और वैराग्य के मध्य उलझे कुछ विचार, कुछ भाव, कुछ मान्यताएं, और, उनका उत्तर खोजती मैं... इसी उधेड़बुन में यह कहनी रच गई... ' हिमाद्रि ' कैप्शन में पढ़े... हिमालय....यह....नाम सुनते ही तीव्र अद्यात्मिक ऊर्जा का संचार सा होने लगता है मेरे भीतर । फिर भी आज तक हिमालय दर्शन का सौभाग्य, प्राप्त ना हो
विष्णुप्रिया
कुछ क्षण को, जा बैठी, नील गगन के आंचल में, पूर्णता में लीन किया, उस अविचल तारापथ ने...... उदेशविहीन विचारो ने, हिय पर, जो विषाद किया.... अतं में ज्ञान की ज्योति ने ही, भावो पर जय घोष किया... हर तृण निर्जीव सा लगता था निष्प्राण रूप था तेज बिना, यह मन भटका था वर्षो, जब प्राणविहीन था ज्ञान बिना.. कैसा यह मानव जीवन है, लोभ मोह में उलझा सा, ब्रह्म मिथ्या, जगत सत्य का, रसपान सदा से ही करता... क्या भौतिकता की सृष्टि से खोज स्वयं की पूरी होगी...? या अंतर्मन की गति से ही, क्या जीवन की तृप्ति होगी....? है विचारणीय प्रश्न मगर, क्या उत्तरित कभी हो पाएगा, या आत्मबोध का चिंतन बस....चिंतन भर ही रह जायेगा आत्मबोध, कुछ क्षण को, जा बैठी, नील गगन के आंचल में, पूर्णता में लीन किया, उस अविचल तारापथ ने......
भाग्य श्री बैरागी
यह उदघोष है उस युद्ध का, पृथक ही जिसे लड़ना होगा, नंदी घोष पर जो सारथी है, अदृश्य है उसे देखना होगा। अपना शत्रु बहुत विक्राल है, पर सावधानियों से डटना होगा, न करना यूॅं धृतराष्ट्र आलिंगन, विधुर सी दूर-दृष्टि रखना होगा। है कटु परंतु सत्य यही है, अज्ञातवास हँस के सहना होगा, न खोज पाए शत्रु तुम्हें कभी, उस राज्य में जा छिपना होगा। शस्त्र ढाल भी ना ज़रूरी है, वस्त्र से स्वयं को ढॅंकना होगा, बचा रहे जो श्री कृष्ण जैसे, आदर उन्हीं का करना होगा। महाभारत को आदर्श बना, बाहु युद्ध भी दूर से लड़ना होगा, अपना घर ही एक रणभूमि है, मनोबल से शत्रु को हराना होगा। यह उदघोष है उस युद्ध का, पृथक ही जिसे लड़ना होगा, नंदी घोष पर जो सारथी है, अदृश्य है उसे देखना होगा। अपना शत्रु बहुत विक्राल है, पर सावधानि