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ajay jain अविराम
कभी पढ़लो खुद की कथा चिठ्ठी मे छ्पा अकेले ही आये थे अकेला ही जायगा अजय जैन अविराम कथा
vishnu thore
कथा... धावणाऱ्या या जीवांचा राबता हा खुंटला उतू येतो सांत्वनाला पापणीचा कुंचला अंगणाचा पारिजात आजही खुणावतो स्वप्नांच्या पाठीमागे कोण वेडा धावतो लाट येते ही सुगंधी वाट होते पांगळी खुडलेला स्पर्श हाती रात होते वेंधळी काळजाच्या काळजीची सांग ना गं तू व्यथा संपलेल्या कहाणीची ऐकूदेना मला कथा - विष्णू थोरे ९३२५१९७७८१ कथा.....
नागेंद्र किशोर सिंह ( मोतिहारी, बिहार।)
एक चित्रकार था। रोज एक सुंदर चित्र बनाता और चौराहे पर लगा देता। नीचे लिख देता:कोई कमी हो तो जरूर बताइएगा। हरेक दिन नीचे कुछ न कुछ कमी लिखा होता । चित्रकार बड़ा दुखी हुआ और उदास बैठ गया। तभी कोई तजुर्बेकार व्यक्ति वहां पहुंचा और उससे उसके उदासी का कारण पूछा।चित्रकार ने कहा, " मैं मेहनत करके इतना सुंदर चित्र बनाता हूं, यहां लगा कर नीचे लिख देता हूं कोई कमी हो तो बताइए और लोग रोज कोई न कोई कमी निकल देते हैं। उस व्यक्ति ने बोला एक काम करो। आज फिर हमेशा की तरह चित्र लगाओ लेकिन लिखो चित्र की कमी के साथ साथ उस कमी को दूर कैसे किया जाय, ये भी बताएं। चित्रकार ने वैसा ही किया।लेकिन कोई जवाब में कुछ नहीं आया। सार यही है कि कमी निकालने के लिए लोग है लेकिन सुधार के उपाय बतानेवाले बहुत कम। ©नागेंद्र किशोर सिंह # कथा