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Srashti Gauri Agrawal
रिश्तो पर बर्तनों का असर देखिए- 1: आदमी जब पत्तों पर खाता था मेहमान को देखकर हरा हो जाता था। 2: बाद में जब मिट्टी के बर्तन में खाने लगा तो जमीन से जोड़कर रिश्ते निभाने लगा। 3: फिर वह पीतल के बर्तन में खाने लगा रिश्तो को साल छ: महीने में चमकाने लगा। 4: मगर जब बर्तन कांच के इस्तेमाल करने लगा तो रिश्ता हल्की सी चोट से बिखरने लगा। 5: अब बर्तन थर्माकोल के होने लगे हैं। ©Srashti Gauri Agrawal रिश्तो पर बर्तनों का असर। 🤨🤨🤨🤨🤨🤨🤨🤨🤨 #eveningtea
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
अब नही आती शिकायत बर्तनों से । हो गये परिवार छोटे दर्जनों से ।। २२/०८/२०२३ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *अब नही आती शिकायत बर्तनों से ।* *हो गये परिवार छोटे दर्जनों से ।।* *२२/०८/२०२३ महेन्द्र सिंह प्रखर*
G dutta Tiwari
काश ये बर्तनों पर नाम लिखनेवाली मशीनें न बनीं होती। शायद मशीन बनाने वाले की सोच, परिवारों को बांटने की सोच की रही होगी।
entertainment intertenment&intertenment
हजारों की सम्त में हजार रास्ता बताने वाला था.. इक खरीदार अपना घर का रास्ता बताने वाला था!! बिखरा था नसीब इसकदर नुकीले कांच की तरह.. टूटा था आइना सच का जंग झूठ से होने वाला था!! अमीरों के बर्तनों की गूंजती हुई चम्मच की आवाज़ भूखे गरीबों के कानों में पड़े.. हे खुदा हर फकीर की बद्दुआएं उस झूठे मसीह के खानदानों में पड
Soulmate (Yuhee)
तुम टूट कर भी, छूटे नहीं मेरे मन, के इक कोने में नमीं भरीं आँखों से टुकटुकी लगाए एक आशा की किरण लिए यूँही दिल में शायद तुम फिर से पूर्ण रूप से मिल जाओ नमस्कार लेखकों🌸 आज के #rzdearcharacters में हम लेकर आये हैं #rzप्रियटूटेरिश्ते । टूटे रिश्ते चीनी माटी से बने बर्तनों की तरह होते हैं, यद
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- अब नही आती शिकायत बर्तनों से । हो गये परिवार छोटे दर्जनों से ।। मौत के जो नाम से डरते नहीं थे । वह लगे डरने यहाँ तो गर्जनों से ।। बाप तक की चीख भी जिसने दबा दी । अब लगाए कान है वो धडकनों से ।। भूखी ही रोती रही माँ आज दिन भर । लौटकर आए न बेटे बंधनों से ।। बेचकर जागीर पुरुखों की सुना है । तुम न पाए क्यों निकल फिर उलझनों से ।। २२/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- अब नही आती शिकायत बर्तनों से । हो गये परिवार छोटे दर्जनों से ।। मौत के जो नाम से डरते नहीं थे । वह लगे डरने यहाँ तो गर्जनों से ।।
FIROZ KHAN ALFAAZ
इंसान से तो सीखा है ख़ुदगर्ज़ होना, सख़ावत तो सीखा हूँ शजर से मैं ! -1 मेरे दिल को भी कुछ तसल्ली होती, काश तेरा भी दिल कभी दुखा होता ! -2 ग़ुरबत के बर्तनों में तुम झाँक कर के देखो, एक भूख है उबलती, ख़ाली पतीलियों में ! -3 वक़्त के खेल में आख़िरी चाल तो मेरी होगी, वक़्त देखता रह जायेगा, मैं गुज़र जाऊँगा ! -4 किताबों में बड़ी मुश्किल से ऐसा इल्म मिलता है, काम की बात जो घर में हमें दादी बताती है ! -5 ©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़ नागपुर , प्रोपर औरंगाबाद बिहार इंसान से तो सीखा है ख़ुदगर्ज़ होना, सख़ावत तो सीखा हूँ शजर से मैं ! -1 मेरे दिल को भी कुछ तसल्ली होती, काश तेरा भी दिल कभी दुखा होता ! -2 ग़ुर
सुसि ग़ाफ़िल
रूह को चूमने का रास्ता मुझे नजर आया लगाकर उसको सीने से मैंने सिर पर हाथ लगाया . . . — % & रूह को चूमने का रास्ता मुझे नजर आया लगाकर उसको सीने से मैंने सिर पर हाथ लगाया फेर सकता था उसकी पीठ पर हाथ
Anita Saini
जबरदस्ती ब्याही गयी लड़कियाँ कभी ज़िंदा वापस नहीं आती। क्योंकि डोली के रूप में अर्थी निकलती है उनके सपनों की। आवाज़ क़ैद हो जाती है एक आँगन तक बल्कि एक कमरे तक घुटन में मरती रहती हैं चारदीवारी में। अपने दुर्भाग्य की कालिख़ पौंछती है बर्तनों की धुलाई में। मर जाता है उनका मन ज़िंदगी के प्रति। भूल जाती है कुलाँचे भरना मृग की भाँति बुझ जाती है उम्मीद की लौ स्वप्निल भविष्य की। जबरदस्ती ब्याही गयी लड़कियाँ कभी ज़िंदा वापस नहीं आती। क्योंकि डोली के रूप में अर्थी में निकलती है उनके सपनों की। आवाज़ क़ैद हो जाती है घुटन मे