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jai rangmanch
Divyanshu Pathak
चोली के पीछे क्या है ?😶 : "ताऊ शेखावाटी" एक दिन धुन सबार हो गई पता लगाके ही रहूँगा ! कैप्शन में ही पता लगाके रख देता हूँ 😀😁😁 "रंगीला राजस्थान" एक बार सुबह सुबह ताऊजी ने गीत सुन लिया .... चोली के पीछे क्या है ? चोली के पीछे ! अब तो ताऊ जी पे सनक सबार हो गई आखिर चोली के पीछे है क्या ?
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 27 हनुमानजी माता सीता को प्रणाम करते है जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह। चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह॥27॥ हनुमानजी ने सीताजी को (जानकी को) अनेक प्रकार से समझा कर,कई तरह से धीरज दिया और फिर उनके चरण कमलों में सिर नवाकर वहां से रामचन्द्रजी के पास रवाना हुए ॥27॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी का लंका से वापस आना हनुमानजी लंका से वापिस आते है चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥ नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥ जाते समय हनुमानजी ने ऐसी भारी गर्जना की,कि जिसको सुन कर राक्षसियों के गर्भ गिर गये॥समुद्र को लांघ कर हनुमानजी समुद्र के इस पार आए और उस समय उन्होंने किलकिला शब्द (हर्षध्वनि) सब बन्दरों को सुनाया॥ राका दिन पहूँचेउ हनुमन्ता। धाय धाय कापी मिले तुरन्ता॥ हनुमानजीने लंका से लौट कर कार्तिक की पूर्णिमा के दिन वहां पहुंचे,उस समय दौड़ दौड़ कर वानर बडी त्वरा के साथ हनुमानजी से मिले॥ हनुमानजी का तेज देखकर वानर हर्षित होते है हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना॥ मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचंद्र कर काजा॥ हनुमानजी को देख कर सब वानर बहुत प्रसन्न हुए और उस समय वानरों ने अपना नया जन्म समझा॥हनुमानजी का मुख अति प्रसन्न और शरीर तेज से अत्यंत दैदीप्यमान देख कर वानरों ने जान लिया कि हनुमानजी रामचन्द्रजी का कार्य करके आए है॥ हनुमानजी के साथ सभी वानर श्री राम के पास जाते है मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥ चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥ और इसी से सब वानर परम प्रेम के साथ हनुमानजी से मिले और अत्यन्त प्रसन्न हुए।वे कैसे प्रसन्न हुए सो कहते हैं कि मानो तड़पती हुई मछलीको पानी मिल गया॥फिर वे सब सुन्दर इतिहास (वृत्तांत) पूंछते हुए और कहते हुए आनंद के साथ रामचन्द्रजी के पास चले॥ सुग्रीव का प्रसंग वानरों का मधुवन के फल खाना तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए॥ रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥ फिर उन सबों ने मधुवन के अन्दर आकर युवराज अंगद के साथ वहां मीठे फल खाये॥जब वहां के पहरेदार बरजने लगे तब उनको मुक्को से ऐसा मारा कि वे सब वहां से भाग गये॥ आगे मंगलवार को ..., 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 27 हनुमानजी माता सीता को प्रणाम करते है जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह। चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं क
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 23 अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान। भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान ॥23॥ हे रावण! मोह् का मूल कारण और अत्यंत दुःख देने वाली अभिमान की बुद्धि को छोड़ कर कृपा के सागर भगवान् श्री रघुवीर कुल नायक रामचन्द्रजी की सेवा कर ॥23॥ (मोह ही जिनका मूल है ऐसे बहुत पीड़ा देने वाले, तमरूप अभिमान का त्याग कर दो) श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी के सच्चे वचन अहंकारी रावण की समझ में नहीं आते है जदपि कही कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी॥ बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥ यद्यपि हनुमान जी रावण को अति हितकारी और भक्ति, ज्ञान,धर्म और नीति से भरी वाणी कही,परंतु उस अभिमानी अधम के उसके कुछ भी असर नहीं हुआ॥इससे हँसकर बोला कि हे वानर!आज तो हमको तु बडा ज्ञानी गुरु मिला॥ रावण हनुमानजी को डराता है मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही॥ उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥ हे नीच! तू मुझको शिक्षा देने लगा है. सो हे दुष्ट! कहीं तेरी मौत तो निकट नहीं आ गयी है?॥रावण के ये वचन सुन हनुमान् ने कहा कि इससे उलटा ही होगा (अर्थात् मृत्यु तेरी निकट आई है, मेरी नही)।हे रावण! अब मैंने तेरा बुद्धिभ्रम (मतिभ्रम) स्पष्ट रीति से जान लिया है॥ रावण हनुमानजी को मारने का हुक्म देता है सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना॥ सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥ हनुमान् के वचन सुन कर रावण को बड़ा कोध आया,जिससे रावण ने राक्षसों को कहा कि हे राक्षसो! इस मूर्ख के प्राण जल्दी ले लो अर्थात इसे तुरंत मार डालो॥इस प्रकार रावण के वचन सुनते ही राक्षस मारने को दौड़ें तब अपने मंत्रियोंके साथ विभीषण वहां आ पहुँचे॥ विभीषण रावणको दुसरा दंड देने के लिए समझाता है नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता॥ आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥ बड़े विनय के साथ रावण को प्रणाम करके बिभीषणने कहा कि यह दूत है इसलिए इसे मारना नही चाहिये क्यों कि यह बात नीतिसे विरुद्ध है॥ हे स्वामी! इसे आप कोई दूसरा दंड दे दीजिये पर मारें मत।बिभीषण की यह बात सुनकर सब राक्षसों ने कहा कि हे भाइयो! यह सलाह तो अच्छी है॥ रावण हनुमानजी को दुसरा दंड देने का सोचता है सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर॥ रावण इस बात को सुन कर बोला कि जो इसको मारना ठीक नहीं है,तो इस बंदर का कोई अंग भंग करके इसे भेज दो॥ विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 897 से 908 नाम ) 897 सनातनतमः जो ब्रह्मादि सनतानों से भी अत्यंत सनातन हैं 898 कपिलः बडवानलरूप में जिनका वर्ण कपिल है 899 कपिः जो सूर्यरूप में जल को अपनी किरणों से पीते हैं 900 अव्ययः प्रलयकाल में जगत में विलीन होते हैं 901 स्वस्तिदः भक्तों को स्वस्ति अर्थात मंगल देते हैं 902 स्वस्तिकृत् जो स्वस्ति ही करते हैं 903 स्वस्ति जो परमानन्दस्वरूप हैं 904 स्वस्तिभुक् जो स्वस्ति भोगते हैं और भक्तों की स्वस्ति की रक्षा करते हैं 905 स्वस्तिदक्षिणः जो स्वस्ति करने में समर्थ हैं 906 अरौद्रः कर्म, राग और कोप जिनमे ये तीनों रौद्र नहीं हैं 907 कुण्डली सूर्यमण्डल के समान कुण्डल धारण किये हुए हैं 908 चक्री सम्पूर्ण लोकों की रक्षा के लिए मनस्तत्त्वरूप सुदर्शन चक्र धारण किया है 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 23 अभिमान और अहंकार त्याग कर भगवान् की शरण में मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान। भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड🙏 दोहा – 17 प्रभु श्री राम के चरणों में मन रखकर कार्य करें देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु। रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु॥17॥ तुलसीदास जी कहते है कि हनुमान जी का विलक्षण बुद्धिबल देख कर सीता जी ने कहा कि हे पुत्र !जाओ, रामचन्द्र जी के चरणों को हृदय मे रख कर मधुर मधुर फल खाओ ॥17॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी फल खाते है और कुछ राक्षसों का संहार करते है चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥ रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥1॥ सीताजी के वचन सुन कर उनको प्रणाम करके हनुमान जी बाग के अन्दर घुस गए।फल फल तो सब खा गए और वृक्षों को तोड़ मरोड़ दिया॥जो वहां रक्षा के लिए राक्षस रहते थे उनमे से कुछ को मार डाला और कुछ ने जाकर रावण से पुकार की (रावण के पास गए और कहा)॥ राक्षस रावण को हनुमानजी के बारे में बताते है नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी॥ खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥2॥ कि हे नाथ! एक बड़ा भारी वानर आया है ।उसने तमाम अशोकवन का सत्यानाश कर दिया है॥उसने फल फल तो सारे खा लिए है, और वृक्षोंको उखड दिया है।और रखवारे राक्षसों को पटक पटक कर मार गिराया है,उनको मसल-मसलकर जमीन पर डाल दिया है॥ रावण और राक्षसों को भेजता है सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥ सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे॥3॥ यह बात सुनकर रावण ने बहुत से राक्षस योद्धा भेजे।उनको देखकर युद्ध के उत्साह से हनुमान जी ने भारी गर्जना की॥हनुमानजी ने उन तमाम राक्षसों को मार डाला।जो कुछ अधमरे रह गए थे,वे वहा से पुकारते हुए भागकर गए॥ अक्षयकुमार का प्रसंग रावण अक्षय कुमार को भेजता है पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा॥ आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥4॥ फिर रावण ने मंदोदरि के पुत्र अक्षय कुमार को भेजा।वह भी असंख्य योद्धाओं को संग लेकर गया॥उसे आते देखते ही हनुमानजी ने हाथ में वृक्ष लेकर उस पर प्रहार किया और उसे मारकर फिर बड़े भारी शब्दसे (महाध्वनि से, जोर से) गर्जना की॥ आगे मंगलवार को ..., विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 682 से 693 नाम 682 स्तुतिः स्तवन क्रिया 683 स्तोता सर्वरूप होने के कारण स्तुति करने वाले भी स्वयं हैं 684 रणप्रियः जिन्हे रण प्रिय है 685 पूर्णः जो समस्त कामनाओं और शक्तियों से संपन्न हैं 686 पूरयिता जो केवल पूर्ण ही नहीं हैं बल्कि सबको संपत्ति से पूर्ण करने भी वाले हैं 687 पुण्यः स्मरण मात्र से पापों का क्षय करने वाले हैं 688 पुण्यकीर्तिः जिनकी कीर्ति मनुष्यों को पुण्य प्रदान करने वाली है 689 अनामयः जो व्याधियों से पीड़ित नहीं होते 690 मनोजवः जिनका मन वेग समान तीव्र है 691 तीर्थकरः जो चौदह विद्याओं और वेद विद्याओं के कर्ता तथा वक्ता हैं 692 वसुरेताः स्वर्ण जिनका वीर्य है 693 वसुप्रदः जो खुले हाथ से धन देते हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड🙏 दोहा – 17 प्रभु श्री राम के चरणों में मन रखकर कार्य करें देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु। रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधु
Vikas Sharma Shivaaya'
ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट: ये अष्टदशाक्षर मंत्र दिव्य प्रभाव देता है, मंत्र महोदधी में कहा गया है, जिस घर में इस मंत्र का जाप होता है, वहां कभी भी कोई अनिष्ट नहीं होता। खुशहाली और सकारात्मकता का माहौल हर तरफ रहता है। शत्रु और रोगों पर विजय- ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा। "सुन्दरकांड" सुन्दरकांड में 526 चौपाइयाँ, 60 दोहे, 6 छंद और 3 श्लोक है। सुन्दरकांड में 5 से 7 चौपाइयों के बाद 1 दोहा आता है। हनुमानजी वानरों को समझाते है- जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥ तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥1॥ जाम्बवान के (सुन्दर, सुहावने) वचन सुन कर हनुमानजी को अपने मन में वे वचन बहुत अच्छे लगे और हनुमानजी ने कहा की – हे भाइयो!आप लोग कन्द, मूल व फल खाकर समय बिताना, औरतब तक मेरी राह देखना, जब तक कि मैं सीताजी का पता लगाकर लौट ना आऊँ॥1॥ श्रीराम का कार्य करने पर मन को ख़ुशी मिलती है- जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥ यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥2॥ जब मै सीताजीको देखकर लौट आऊंगा,तब कार्य सिद्ध होने पर मन को बड़ा हर्ष होगा॥यह कहकर और सबको नमस्कार करके,रामचन्द्रजी का ह्रदय में ध्यान धरकर,प्रसन्न होकर हनुमानजी लंका जाने के लिए चले 2॥ हनुमानजी ने एक पहाड़ पर भगवान् श्रीराम का स्मरण किया- सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥ बार-बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥3॥ समुद्र के तीर पर एक सुन्दर पहाड़ था। हनुमान् जी खेल से ही कूद कर उसके ऊपर चढ़ गए॥ फिर वारंवार रामचन्द्रजी का स्मरण करके,बड़े पराक्रम के साथ हनुमानजी ने गर्जना की॥ हनुमानजी, श्रीराम के बाण जैसे तेज़ गति से, लंका की ओर जाते है- जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥ जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना॥4॥ जिस पहाड़ पर हनुमानजी ने पाँव रखे थे,वह पहाड़ तुरंत पाताल के अन्दर चला गया और जैसे श्रीरामचंद्रजी का अमोघ बाण जाता है,ऐसे हनुमानजी वहा से लंका की ओर चले॥ मैनाक पर्वत का प्रसंग: समुद्र ने मैनाक पर्वत को हनुमानजी की सेवा के लिए भेजा- जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥5॥ समुद्र ने हनुमानजी को श्रीराम का दूत जानकर मैनाक नाम पर्वत से कहा की –हे मैनाक, तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो,इनको ठहरा कर श्रम मिटानेवाला हो,॥ मैनाक पर्वत हनुमानजी से विश्राम करने के लिए कहता है- सिन्धुवचन सुनी कान, तुरत उठेउ मैनाक तब। कपिकहँ कीन्ह प्रणाम, बार बार कर जोरिकै॥ समुद्रके वचन कानो में पड़ते ही मैनाक पर्वत वहांसे तुरंत ऊपर को उठ गया,जिससे हनुमानजी उसपर बैठकर थोड़ी देर आराम कर सके और हनुमान जी के पास आकर,वारंवार हाथ जोड़कर, उसने हनुमानजीको प्रणाम किया॥ 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' ऊँ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट: ये अष्टदशाक्षर मंत्र दिव्य प्रभाव देता है, मंत्र महोदधी में कहा गया है, जिस घर में इस मंत्र का जाप होता ह
faijan
Pandey Sunil 🇮🇳
जेई करे मन से माई के पुजनिया, नाइ होला कबो उनके कवनो परेशानिया, माई कै महिमा जग में बड़ा है अपार हो, धन्य होई जाला जेई जाला माँ के द्वार हो, धन्य हई माई धन्य माई के चरनिया, नाइ होला ,,,,,,,,,, अधूरा skp@basti time pass writting जेई करे मन से माई के प नाइ होला ,,,,,,,,,, अधूरा skp@basti time pass writting
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आजकल के लड़कों की दाढ़ी जैसे सब के सब मेवाड़ की रियासत के सेनापति 😂😆 #Worldbeardday #Humour #Comedy #Nojoto #NojotoHindi #Ac #Jokes #beardDay बेचारे जब दाढ़ी न आये तो दवाई ढूंढते हैं जब आ जाती है तो नाइ ढूंढते