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Poetry Of SJT
जाने ये कैसा नशा है तेरे होने का , तुम पास भी नहीं और पास भी हो , दिन गुज़र जाता है सोचने में तुम्हें , काश हर पल हम कभी साथ भी हो , सखियां मुस्कुराने कि वजह पूंछे जो , उन्हें बताने को वजह खास भी हो , अफवाहों में कम यकीन किया करो , मैं तुम्हारा हूं ज़रा ये एहसास भी हो , तुमने कहा था मिलकर बात होगी , प्रेम अकथ्य है तुम्हें आभास भी हो , मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं कुछ , तजुर्बे के लिए थोड़ा अभ्यास भी हो , ©Poetry Of SJT जाने ये कैसा नशा है तेरे होने का , तुम पास भी नहीं और पास भी हो , दिन गुज़र जाता है सोचने में तुम्हें , काश हर पल हम कभी साथ भी हो , सख
Sunita D Prasad
रिक्त पृष्ठों पर तब केवल इतना ही लिख पाऊँगी- 'वह लौटा तो था, लेकिन !' --सुनीता डी प्रसाद💐💐 #तुम, लौटोगे..... छोड़ दूँगी जीवन के कुछ पृष्ठ यों ही रिक्त! जानती हूँ एक दिन तुम लौटोगे !
Insprational Qoute
जैसे घट-घट में वास हो भगवान का कविता उसका प्रमाण हैं, भावों भरी अभिव्यक्ति उसकी,शब्द इसके सम धनुष बाण हैं, जीव निर्जीव में जान भर दे अल्हड़ को भी दे नई पहचान हैं, जो खो गया दुनिया के मेले में कविता दिलाती उसका मान हैं, मैं नदी की धार सम,कविता समुद्र की गहराइयों के समान है, मैं नाचीज़ सी इंसाँ हूँ,कविता में ही समाया समस्त ब्रह्याण्ड है, क्या कविता शब्दों का सार हैं?नही यह अभिव्यक्ति का आधार है, कण-कण में विराजमान को प्रस्तुत कर,जी हाँ! कविता ही संसार है, अद्वितीय,अलौकिक,अद्भुत दिव्यता में समाई एक अमूल्य पारस है, उघाड़ के रख दे सफेदपोशों को मिनटों में इसमें वो बात भी खास है, भूत, भविष्य, वर्तमान का सार बताये,युगों युगों की कहानी सुनाये, कभी प्रेमवारिधि की बारिश कर दे,तो कभी कभी संस्कृति भी बताये, जिसे खरीद लो मुँह बोले दाम मे ये न कोई बाजारू बिकाऊ चीज़ है, वस्त्रधारी की निर्वस्त्र कर दे,भरे बाजार में दिखाती तुम्हारी तमीज़ है। "मैं कविता हूँ" यह मूल कविता मेरी सहभागी Monika Agrawal जी द्वारा रचित हैं। जिसका मेरे द्वारा कविता पुनःनिर्मित की गई हैं। क़लम उठाकर प्रय
Pratibha Tiwari(smile)🙂
कसम की कसम है कसम से कसम की कसम है कसम से है ये अकथ्य कितना प्रेम है तुमसे मेरा सुख चैन सब है बस तुमसे तुम्हारे गुण हैं वर्णनातीत बस साथ रहना हमेशा मनप्रीत ज़िंदगी तेरे संग हो व्यतीत मुझे जान कर क्या करना तेरा अतीत जिसको कह तुम भी हो जाओ व्यथित बस हम गाए प्रेम के ही गीत तेरे यादों के सहारे न रह पाऊंगी जो तू होगा तो लिपट रो पाऊंगी कभी जो तू रूठा तो फिर मनाऊंगी माना बाधाएँ हैं कुछ विशेष पर सामने अपने बचेंगे एक न शेष जब साथ हैं नारायण ,गौरी और महेश कसम की कसम है कसम से है ये अकथ्य कितना प्रेम है तुमसे मेरा सुख चैन सब है बस तुमसे तुम्हारे गुण हैं वर्णनातीत बस साथ रहना हमेशा मनप्रीत ज़िंद
Sarita Shreyasi
माँ के हृदय ने नेह छलकाने में कभी एक क्षण जो थोड़ा पार्थक्य किया हो, चारों बच्चों की परवरिश में पुतुल ने कभी विभेद नहीं किया। किंतु अपनी गृहस्थी में बोदी की उपस्थिति उसे व्यथित कर जाती। (Read in caption.. 3rd story ) पुतुल, छरहरे गठन की सुंदर, तेज तर्रार युवती। घर-बाहर सब अकेले ही संभालती। बड़े सरकारी अधिकारी थे जमाई बाबू। उन्हें नौकरी से फुर्सत कहाँ होती