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Vikas Sahni
#सितंबर_का_सावन सितंबर का सावन सर्वाधिक सुहाना लग रहा था, इस रात की बरसात में दिल दीवाना लग रहा था, बिजली की बत्ती बुझने के बाद जो जग रहा था, घर से बाहर आँगन में बैठ ज़माना जग रहा था मेरा मतलब मात्र मटियाला का ज़माना कदाचित काला लग रहा था क्योंकि कहीं दूर आ रही ही थी लाइट, क्योंकि कहीं दूर इससे भिन्न प्रतीत होती थी नाइट, जिसमें जमीन से अब बूँदों की बात बंद हो गयी, जिससे मुझे मालूम हो गया बरसात बंद हो गयी परंतु फिर भी धीरे-धीरे चल रही ठंडी हवा दे रही थी इस दीवाने को दुख-दर्द की दवा ये लो! जिसको देखो अब तो वही जल जाता है, कविता की सुंदरता देख दिल से निकल जाता है। कविता के कुत्ते कातिलों से है मेरी गुज़ारिश! ना रचे अब और अधिक नयी-नयी साजिश क्योंकि कविता, जिसको मुझे लिखना है, उसे शब्दों से बनने के बाद ही दिखना है। ये सोच ही रहा था कि पुनः शुरू हुई बूँदों की बात कि कविता को देख बादल जल गया, वह बरसात दोबारा दूर चली गयी, जैसे कोई कली गयी मुझे छोड़, जिसके जाते-जाते जिसको कहा था, कि कष्ट केवल मैंने तो उस ही के लिए सहा था, जिसके प्रति लिखा कि सावन का इंतज़ार करूँगा, जिसके प्रति लिखा कि अब वसंत से प्यार करूँगा। मालूम नहीं क्यों नहीं समझता है मेरा खुदा! करता है मुझे इस बारिश से बार-बार जुदा।। अकस्मात् भीगे मकानों की बत्तियाँ जल गयीं जिसे देख पल भर के लिए लगा रातें ढल गयीं अतः अब सितंबर के सावन से ये प्रार्थना है अतः अब सितंबर के साजन से ये प्रार्थना है, कि वह निशा की निद्रा में खोने दे, कि वह सर्वाधिक सुकूं से सोने दे। ...✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni #सितंबर_का_सावन
Vikas Sahni
#सितंबर_का_सावन सितंबर का सावन सर्वाधिक सुहाना लग रहा था, उस रात की बरसात में दिल दीवाना लग रहा था, बिजली की बत्ती बुझने के बाद जो जग रहा था, घर से बाहर आँगन में बैठ ज़माना जग रहा था मेरा मतलब मात्र मटियाला का ज़माना कदाचित काला लग रहा था क्योंकि कहीं दूर आ रही ही थी लाइट, क्योंकि कहीं दूर उससे भिन्न प्रतीत होती थी नाइट, जिसमें जमीन से तब बूँदों की बात बंद हो गयी, जिससे मुझे मालूम हो गया बरसात बंद हो गयी परंतु फिर भी धीरे-धीरे चल रही ठंडी हवा दे रही थी इस दीवाने को दुख-दर्द की दवा ये लो! जिसको देखो अब तो वही जल जाता है, कविता की सुंदरता देख दिल से निकल जाता है। कविता के कुत्ते कातिलों से है मेरी गुज़ारिश! ना रचे अब और अधिक नयी-नयी साजिश क्योंकि कविता, जिसको मुझे लिखना है, उसे शब्दों से बनने के बाद ही दिखना है। ये सोच ही रहा था कि पुनः शुरू हुई बूँदों की बात कि कविता को देख बादल जल गया, वह बरसात दोबारा दूर चली गयी, जैसे कोई कली गयी मुझे छोड़, जिसके जाते-जाते जिसको कहा था, कि कष्ट केवल मैंने तो उस ही के लिए सहा था, जिसके प्रति लिखा कि सावन का इंतज़ार करूँगा, जिसके प्रति लिखा कि अब वसंत से प्यार करूँगा। मालूम नहीं क्यों नहीं समझता है मेरा खुदा! करता है मुझे इस बारिश से बार-बार जुदा।। अकस्मात् भीगे मकानों की बत्तियाँ जल गयीं जिसे देख पल भर के लिए लगा रातें ढल गयीं अतः अब सितंबर के सावन से ये प्रार्थना है अतः अब सितंबर के साजन से ये प्रार्थना है, कि वह निशा की निद्रा में खोने दे, कि वह सर्वाधिक सुकूं से सोने दे। ...✍️विकास साहनी ©Vikas Sahni #सितंबर_का_सावन
Vikas Sahni
सितारा लेटे-लेटे देखते हुए सितंबर के सावन का धुंधला तारा बढी बेकरारी दोबारा इसलिए नींद नहीं आयी आज भी यद्यपि हैं अन्य काम-काज भी कविता के सिवा। फिर भी रात-दिवा कविता का साथ नहीं छूटता इस तरह मेरा नाथ नहीं टूटता कभी भी और वह इस भयानक विरह-दौर में मुझे भी नहीं टूटने देता। है वार-वार वह मेरा नाम लेता तथा तुम्हारे रूप में कविता वह आता है तो धूप में कविता लिखकर तुझको ताकत है मिलती मुझको अत: आरात आवारा बना-बना है दिल देखता तारा सितंबर के सावन में। यही काम रह गया है जीवन में!! ...✍️ विकास साहनी ©Vikas Sahni #सितंबर_के_सावन_का_सितारा #WForWriters
Amit Singhal "Aseemit"
हल्की बरसात की रिमझिम, थोड़ी गरमी, त्योहारों में अपनों के साथ की बहुत नरमी। साल में यही मौक़ा, जब आए सुंदर सितंबर, जीवन को पूरा परिवार जी लेता मन भरकर। ©Amit Singhal "Aseemit" #सितंबर
kisi ki mrs.
अरे ओ सितंबर तु तो हर साल दिसंबर से ज्यादा जालिम होता था तो इस साल मई जैसे सितम क्यों कर रहा है ©kisi ki mrs. सितंबर #spark
Brij Bihari Shukla
कभी शिद्दत की गर्मी, कभी बारिश की फुहारें, ये सितम्बर और मोहब्बत, समझ से परे हैं हमारे... #शायरी #मोहब्बत #गर्मी #सितंबर
Prachi Gupta
चौदह सितंबर, साल का वो एक दिन जब हर कोई हिंदी दिवस की बधाई देने के पीछे भागता है ओर बाकी 364 दिनों का क्या सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी भाषा Good morning Good night बस अंग्रेजी से करनी सबकी हवा है टाइट वो हमारी राजभाषा है वो तो अब सिमटने सी लग गयी है क्योकि अंग्रेजी जो हमसे लिपट सी गयी है हिंदी के दौर में अंग्रेजी का न जाने कैसा ये शोर है आधुनिकता का जमाना है अब अपना ही सब लगने लगा बेगाना है आज इस दिन हिंदी दिवस को बड़ी धूमधाम से एक बार फिर मनाना है। #हिंदी दिवस#14 #सितंबर