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Shivam Tiwari

कालेधन पर चर्चा #betrayal #Poetry

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जहाँ हुकूमत का चाबुक कमजोर दिखाई देता है
काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता है।

जिनके सर पर राजमुकुट है वो सरताज हमारे हैं
जो जनता से निर्वाचित हैं नेता आज हमारे हैं
इसीलिए अब दरबारों से केवल एक निवेदन है
काले धन का लेखा-जोखा देने का आवेदन है
क्योंकि भूख गरीबी का एक कारण काला धन भी है
फुटपाथों पर पली जिंदगी का हारा सा मन भी है
सिंहासन पर आने वालो अहंकार में मत झूलो
काले धन के साम्राज्य से आँख मिलाना मत भूलो
भूख प्यास का आलम देखो जाकर कालाहान्डी में
माँ बेटी को बेच रही है दिन की एक दिहाड़ी में
झोपड़ियों की भूख प्यास पर कलमकार तो चीखेगा
मजदूरों के हक़ की खातिर मुट्ठी ताने दीखेगा
पूरी संसद काले धन पर मौन साधकर बैठी है
शुक्र करो के जनता अब तक हाथ बांधकर बैठी है
झोपड़ियों को सौ-सौ आँसू रोज रुलाना बन्द करो
सेंसैक्स पर नजरें रखकर देश चलाना बन्द करो
जिस दिन भूख बगावत वाली सीमा पर आ जाती है
उस दिन भूखी जनता सिंहासन को भी खा जाती है

मैं झुग्गी झोपड़ पट्टी का चारण हूँ
मैला ढोने वालों का उच्चारण हूँ
आँसू का अग्निगन्धा सम्बोधन हूँ
भूखे मरे किसानों का उद्बोधन हूँ
संवादों के देवालय को सब्जी मंडी बना दिया
संसद में केवल कोलाहल शोर सुनाई देता है।

आज व्यवस्था का चाबुक कमजोर दिखाई देता है।
काले धन का मौसम आदमखोर दिखाई देता

©Shivam Tiwari कालेधन पर चर्चा
#betrayal

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छाया से दूर हुआ तो 
आंचल का मूल्य मैं जाना 
 जब तपी ये दिल की धरती 
बादल का मूल्य मैं जाना 
 वो छाया वो बदली
बस एक जगह मिलती है 
सब मिलता दूर शहर में 
बस  मां ही नहीं मिलती है


 पावस रजनी में जुगनू
 भट्ट के जैसे जंगल में
 पूछे राम जी वोन से
 कैसे हैं सब महल में

वन में ना कोई दुख है
 पुण्य ज्योति जलती है 
 देव मुनि सब मिलते
बस मां ही नहीं मिलती है
@गौतम माँ पर कविता
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