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Stories related to अट नहीं रही है कविता का भावार्थ

Anuradha T Gautam 6280

#तजुर्बा जीने का तरीका सिखा रही है हालात तजुर्बा उम्र का मोहताज नहीं मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं दोस्तों पर मैं कहती हूं यहां

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#तजुर्बा 
जीने का तरीका सिखा रही है हालात 
तजुर्बा उम्र का मोहताज नहीं 
मुझे जिंदगी का इतना 
तजुर्बा तो नहीं दोस्तों 
पर मैं कहती हूं 
यहां सादगी से कटती नही..🖊️
     #अनु_अंजुरी🤦🏻🙆🏻‍♀️
     २७/१२/२४

©Anuradha T Gautam 6280 #तजुर्बा 
जीने का तरीका सिखा रही है हालात 
तजुर्बा उम्र का मोहताज नहीं 
मुझे जिंदगी का इतना 
तजुर्बा तो नहीं दोस्तों 
पर मैं कहती हूं 
यहां

Dev Rishi

कविता जिन्दा रहता है

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अनिल कसेर "उजाला"

वक़्त का होता नहीं ठिकाना है।

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Kulvant Kumar

"सारा मशला आराम का हैं नहीं है, तो सबकुछ चाहिए है तो, कुछ भी नहीं.

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ANSARI ANSARI

आज सज रही है दुनिया।

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White  आज सजरही है दुनिया। 
सजाने वाला चाहिए। 
जिन्दगी के हर मोड़ पर। 
रूठी है परेशानीया। 
उसे मनाने वाला चाहिए।

©ANSARI ANSARI आज सज रही है दुनिया।

Parasram Arora

i एक नूई कविता का प्रजनन

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White उलझन वाले छंदो 
मे उलझ कर 
कविता मेरी थक
 कर हाफने लगी है

लगता है  अब एक
 नई कविता 
मन के केनवास पर 
कहीं जन्म न लें रहीं हो

©Parasram Arora i एक नूई कविता का प्रजनन

ll जीवन प्रभा ll

#sad_shayari इस नहीं कविता

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Qaseem Haider Qaseem

#Sad_Status खबर भी नहीं है पता भी नहीं है चलो वक़्त छोरो वफ़ा भी नहीं है तुझे तेरी अच्छाइयों का सिला है तू तनहा हुआ पर हुआ भी नहीं है qh

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White खबर भी नहीं है पता भी नहीं है 
चलो वक़्त छोरो वफ़ा भी नहीं है 

तुझे तेरी अच्छाइयों का सिला है 
तू तनहा हुआ पर हुआ भी नहीं है

#qhqofficial

©Qaseem Haider Qaseem #Sad_Status खबर भी नहीं है पता भी नहीं है 
चलो वक़्त छोरो वफ़ा भी नहीं है 

तुझे तेरी अच्छाइयों का सिला है 
तू तनहा हुआ पर हुआ भी नहीं है

#qh

नवनीत ठाकुर

#प्रकृति का विलाप कविता

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जमीन पर आधिपत्य इंसान का,
पशुओं को आसपास से दूर भगाए।
हर जीव पर उसने डाला है बंधन,
ये कैसी है जिद्द, ये किसका  अधिकार है।।

जहां पेड़ों की छांव थी कभी,
अब ऊँची इमारतें वहाँ बसी।
मिट्टी की जड़ों में जीवन दबा दिया,
ये कैसी रचना का निर्माण है।।

नदियों की धाराएं मोड़ दीं उसने,
पर्वतों को काटा, जला कर जंगलों को कर दिया साफ है।
प्रकृति रह गई अब दोहन की वस्तु मात्र,
बस खुद की चाहत का संसार है।
क्या सच में यही मानव का आविष्कार है?

फैक्ट्रियों से उठता धुएं का गुबार है,
सांसें घुटती दूसरे की, इसकी अब किसे परवाह है।
बस खुद की उन्नति में सब कुर्बान है,
उर्वरक और कीटनाशक से किया धरती पर कैसा अत्याचार है।
 हरियाली से दूर अब सबका घर-आँगन परिवार है,
किसी से नहीं अब रह गया कोई सरोकार है,
इंसान के मन पर छाया ये कैसा अंधकार है।।

हरियाली छूटी, जीवन रूठा,
सुख की खोज में सब कुछ छूटा।
जो संतुलन से भरी थी कभी,
बेजान सी प्रकृति पर किया कैसा पलटवार है।।
बारूद के ढेर पर खड़ी है दुनिया, 
विकसित हथियारों का लगा बहुत बड़ा अंबार है।
हो रहा ताकत का विस्तार है,खरीदने में लगी है होड़ यहां, 
ये कैसा सपना, कैसा ये कारोबार है?
ये किसका विचार है, ये कैसा विचार है?
क्या यही मानवता का सच्चा आकार है?

©नवनीत ठाकुर #प्रकृति का विलाप कविता

बेजुबान शायर shivkumar

जब #कदर ही नहीं, तो साथ रहने का क्या फायदा, दिल की बातें जहां #अनसुनी हों, इस सफर का क्या फायदा ? रिश्ते में गर #एहसास नहीं, वो अपना

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White जब कदर ही नहीं, 
तो साथ रहने का क्या फायदा,
दिल की बातें जहां अनसुनी हों, 
इस सफर का क्या फायदा ?

रिश्ते में गर एहसास नहीं, 
वो अपनापन नहीं,
तो किसी को अपना
कहने का क्या फायदा ?

अगर कदर नहीं मेरी, 
न साथ की चाहत है,
तो ऐसे बेमायने रिश्ते को 
निभाने का क्या फायदा ?

©बेजुबान शायर shivkumar जब #कदर  ही नहीं, 
तो साथ रहने का क्या फायदा,
दिल की बातें जहां #अनसुनी  हों, 
इस सफर का क्या फायदा ?

रिश्ते में गर #एहसास   नहीं, 
वो अपना
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