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Parasram Arora

आधुनिक कविता की खुदकशी

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मेरी प्राचीन कविताओं का  काव्यसंग्रह .जंगलगी  संदूक  की छत तोड़  अपने  अस्तित्व की की सुरक्षा  हेतु  मुझसे  गुफ्तगू  करना चाहता है .....परन्तु मैं तो व्यस्त रहा  निरन्तर  नए संदर्भो  और छंदो की तलाश में .....नतीजतन  पुरानी  पड चुकी  कविताये  उपेक्षित. होकर चलन से  बाहर  हो गई .....अबजबकि  सब कुछ  बदल चूका आधुनिकता के परिवेश में ..और  नई  कविताये  गर्भ से  आनेके लिए  छटपटा  रही   है ...लेकिन  अमर्यादित  भाषा  की आवारगी .देख  खुदकशी  के लिए मन बना रही है ........वे नवजात   आधुनिक  कविताये ...... आधुनिक कविता  की खुदकशी

Parasram Arora

आधुनिक कविता

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आधुनिक कविता

©Parasram Arora आधुनिक कविता

Nikhat

#आधुनिक हिंदी कविता, कवि - नागार्जुन #Poetry

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'अरे भगाओ इस बालक को, होगा यह भारी उत्पाती
जुलुम मिटाएंगे धरती से
इसके साथी और संघाती यह उन सबका लीडर होगा नाम छपेगा अखबारों में
बड़े-बड़े मिलने आएंगे
लद-लदकर मोटर-कारों में' 

व्याख्या - कवि कहता है कि एक निम्नवर्गीय परिवार में जिस बच्चे ने जन्म लिया है वह बड़ा होकर निम्नवर्गीयो वर्गों का नेता होगा और अपने साथियों से मिलकर व्यवस्था परिवर्तन कर देगा। ये पंक्तियाँ कवि की मार्क्सवाद के प्रति आस्था को व्यक्त करती हैं। वह इस मार्क्सवादी विचार में विश्वास रखता है कि क्रांति होगी और निम्नवर्ग में क्रांति करने की शक्ति है। मात्र उसे सही नेतृत्व की जरूरत है।

©Nikhat #आधुनिक हिंदी कविता, कवि - नागार्जुन

Sanjay Sahu

##कोरोना काल, आधुनिक शिक्षा, माता पिता पर अतिरिक्त बोझ। #विचार

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#कोरोना काल, आधुनिक शिक्षा, माता पिता पर अतिरिक्त बोझ।
क्या बच्चों की पढ़ाई मोबाइल पर संभव है,
मैंने अक्सर देखा है जिन बच्चों के पास मोबाइल है वो मोबाइल गेम या टिक टाक पर व्यस्त रहते हैं।ये बच्चों को पढ़ाने का तरीका है या उन्हें मोबाइल के माया जाल में उलझाने का तरीका है।एक घंटे आप लगातार मोबाइल चला कर देखे आपकी मनोदशा क्या होती है तो फिर बच्चों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। मैं आधुनिक शिक्षा के विरोध में नहीं हूं पर उसके दुष्प्रभाव भी किसी से नहीं छिपे है।और आज जो गरीब परिस्थिति के बच्चें है उनके माता-पिता को मोबाइल खरीदने के लिए पैसे जुटाने में कितनी समस्या हो रही है क्या प्राइवेट स्कूलों को इस विषय में विचार नहीं करना चाहिए।

✍ मेरे विचार... ##कोरोना काल, आधुनिक शिक्षा, माता पिता पर अतिरिक्त बोझ।

Asha Shukla

कविता,दोहा प्रभात काल krishna_flute

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आलोक अग्रहरि

#आधुनिक होली भारत की #poem

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सोचता हूँ आज क्या लिखूं,
फागुन की फुहार लिखूं,
या फिर किसानों का दर्द लिखूं।
सोचता हूँ आज मैं क्या लिखूं।
रंगों का सतरंगी इंद्रधनुष लिखूं,
या सैनिकों का मौन दर्द लिखूं।
कोई तो बतलाये मैं क्या लिखूं।
रंगों से भीगे परिधान लिखूं।
या गुलाल से लिपटे कोमल गात लिखूं।
देश के गद्दारो का षडयंत्र लिखूं।
या आस्तीन के सांपों का जहर लिखूं।
मां की ममता,पिता का प्यार लिखूं।
बहन का प्यार,भाई की डांट लिखूं।
अबकी होली को मैं और क्या लिखूं।
शहीदों की विधवाओं का धैर्य लिखूं।
या भूखे तड़पते बच्चों की पुकार लिखूं।
सोचता हूँ होली को होली कैसे लिखू।

©आलोक अग्रहरि #आधुनिक होली भारत की

Deep Kushin

#आधुनिक पिता की सोच #कविता

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पिता(भाग-३)
लड़का हो या की लड़की 
प्रेम, लगाव समान है,
समलैंगिक बच्चों के संबंध में 
चाहत क्यों अमान्य है।
गलती बच्चे की नहीं
फिर स्वीकार हम क्यों नहीं करते हैं?
उसके भिन्न लैंगिक चाहत के कारण
क्यों उससे पक्षपात हम करते हैं!
है इंसान वो भी औरों कि तरह
फिर भी दुत्कारा जाता है,
अनूठा वरदान है ईश्वर का
फिर भी अंतर हीं पाता है।
क्यों नहीं समझते लोग इसे? 
क्यों इसकी जरूरतें महत्वहीन है?
प्रकृति ने ही बनाया इसे भी
फिर भी ये सौर्य विहीन है।
पहले हमें हीं इसे समझना होगा 
हम इसके जन्माधिकारी हैं,
ये बच्चा है मेरा और मैं पिता हूं इसका 
लोग,समाज और सोच हीं व्यभिचारी है।
भाग्यवान..ये कल को बड़ा होगा 
समाज ठोकरें मारेगी,
गलती नहीं की उसने कुछ भी
फिर भी सताई जाएगी।
क्या तनिक भी इंसानियत नहीं हममें!
हम इसके मां और बाप हैं,
क्या हम भी इसे छोड़ेंगे औरों कि तरह?
आखिर ऐसा भी क्या पाप है!
हां है मेरा बच्चा समलिंग चाहत का
इसमें इसका कोई अपराध नहीं,
स्वभाव ही दिया ईश्वर ने इसे ऐसा
इसे तजने को हम तैयार नहीं।
भाग्यवान..तुम अपनाओ इसे 
ये हमारा हीं वंश है,
अर्धनारीश्वर के रूप में
ये शिव-पार्वती का अंश है।
समाज को बोलने दो हमारे खिलाफ़
बातें हीं तो बनाएंगे,
बनाकर बातें वापस चले जाएंगे अपने घर
ये उनका बच्चा तो नहीं है,
जो वात्सल्यता को समझ पाएंगे।
करता हूं मैं स्वीकार इसे 
ये बच्चा अनोखा उपहार है,
भार्या,बलम और समलिंगी का
ये छोटा-सा परिवार है। #आधुनिक पिता की सोच

अद्वैतवेदान्तसमीक्षा

काल की कीमत #कविता

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वक्त नूर को भी बेनूर बना देता है, फ़क़ीर को हुजूर बना देता है ,वक्त की कद्र कर ए बंदे ,वक्त कोयले को भी कोहिनूर बना देता है काल की कीमत

Deepika

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