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dilkibaatwithamit
सात दिन की चाहत का महिना आ गया आज, दिल और फूल खूब बिकते हैं, इस महीने, महंगे दाम में..... कुछ चाहते तो सच्ची होती है, सच में, और कुछ बदलती रहती है, सुबह ,दोपहर , शाम में ..!! 😊 ©dilkibaatwithamit सात दिन की चाहत का महिना आ गया आज, दिल और फूल खूब बिकते हैं, इस महीने, महंगे दाम में..... कुछ चाहते तो सच्ची होती है, सच में, और कुछ बदलती र
सात दिन की चाहत का महिना आ गया आज, दिल और फूल खूब बिकते हैं, इस महीने, महंगे दाम में..... कुछ चाहते तो सच्ची होती है, सच में, और कुछ बदलती र
read moreGhanshyam Ratre
गुरू पूर्णिमा संत के शुभ अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं । ©Ghanshyam Ratre गुरु पूर्णिमा संत रविदास जयंती
गुरु पूर्णिमा संत रविदास जयंती
read moreरिपुदमन झा 'पिनाकी'
White ज़िन्दगी पूछती है ज़िन्दगी जियोगे कब। स्वाद इस ज़िन्दगी की मौज का चखोगे कब। ऊम्र अपनी बिता रहे हो फंँस के उलझन में - आसमाँ पर उड़ानें सपनों की भरोगे कब। आप खुद से बताओ यार अब मिलोगे कब। क़ैद कर रखा है खुद को जो तुम खुलोगे कब। पालते हो क्यूँ दिल में ग़म उदास रहते हो- रंग जीवन में अपने खुशियों की भरोगे कब। जी रहे हो घुटन में खुल के साँस लोगे कब। दुःख के दुश्मन को हौसलों से मात दोगे कब। कुछ नहीं मिलता है औरों के लिए जीने से- हो चुके सब के बहुत अपने बता होगे कब। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #कब
theABHAYSINGH_BIPIN
White वक़्त के तराजू पर कब तक तौलते, बुरे वक्त की आहट को कब तक टालते। एहसासों को रखकर हाशिये पर, प्यार से यूँ ही कब तक भागते। हर दर्द के पीछे कोई बात होती है, हर खामोशी में एक आवाज़ होती है। पलकों के साए से कब तक छिपोगे, दिल की पुकार से कब तक बचोगे। प्यार बुरा है, ये बहाना कब तक, खुद से दूरी का फसाना कब तक। वक्त की इस रेत पर नाम लिखो, एक बार प्यार से अपनी राह चुनो। ©theABHAYSINGH_BIPIN #love_shayari वक़्त के तराजू पर कब तक तौलते, बुरे वक्त की आहट को कब तक टालते। एहसासों को रखकर हाशिये पर, प्यार से यूँ ही कब तक भागते। हर
#love_shayari वक़्त के तराजू पर कब तक तौलते, बुरे वक्त की आहट को कब तक टालते। एहसासों को रखकर हाशिये पर, प्यार से यूँ ही कब तक भागते। हर
read morePraveen Jain "पल्लव"
New Year 2024-25 पल्लव की डायरी छलनी है चाँद सितारे सूरज आभा हीन हुआ नक्षत्र ग्रह सब उलट पलट गये कूरता का बह्मांड में उदय हुआ दिन पल घटी कटते नही कटती है हर वर्ष नया लगता मगर उम्मीद का दामन छोड़ जाता है दाँव लगाने वाले,दुनियाँ जीतने निकले जल थल नभ पर उनका कब्जा है साख मानवता की सूखी पतझर बारह महीने झरता है नव जीवन कैसे फले फूले माली बगिया को मसले हुये है ढ़ाचे जिंदा जरूर दिखते लेकिन सोच समझ उत्साह रोज उनके व्यवस्था के आगे मरते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #NewYear2024-25 पतझर बारह महीने झरता है
#Newyear2024-25 पतझर बारह महीने झरता है
read moreसूरज
White जनवरी सपने देखने का महीना होता है, और दिसंबर सपने पूरे कर दिखाने का । ©सूरज #महीने
Kiran Chaudhary
Unsplash Instant messaging के इस दौर में मुझे खत लिखना पसन्द है।। ©Kiran Chaudhary Instant messaging के इस दौर में मुझे खत लिखना पसन्द है।।
Instant messaging के इस दौर में मुझे खत लिखना पसन्द है।।
read moreParasram Arora
Unsplash मेरी बिगड़ेल चाहतो से मुझे राहत मिलेगी कब? मेरे शरारती स्वार्थी तत्व आखिर कब समझ पायगे जीवन का यथार्थ? मेरा मौन चिल्लाना चाहता है युगो से आखिर उनकी आवाज़ मै सुन पाऊंगा कब? ©Parasram Arora कब?
कब?
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