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Ravindra Singh
डॉ मड़ावी
आप सभी आदरणीय भक्तजनों एवम बच्चों को माँ दुर्गा नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
आप सभी आदरणीय भक्तजनों एवम बच्चों को माँ दुर्गा नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं #nojotophoto
read moreRamji Mishra
सुप्रभात सभी भक्तजनों का इस वीडियो के माध्यम से स्वागत है..Mittal g....Aligarh Sethi Ji sana naaz rasmi Urmeela Raikwar (parihar) #Bhakti
read moreSajan Singh Rajput
कर्ता करे ना कर सके, शिव करे सो होय। तीन लोक नौ खंड में, महाकाल से बड़ा ना कोय।। भक्तजनों को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं🙏 #nojotovideo #विचार
read moreRavi Pareek
सभी भक्तजनों से और सभी श्याम प्रेमियों से यह प्रार्थना है कि हर साल की भांति इस साल भी श्याम मंदिर निवाई में 7 जनवरी को पोस्ट बड़ों का आयोजन
read morePARBHASH KMUAR
प्यारे भक्तजनों, क्या आपने कभी किसी ऐसी स्त्री के बारे में सुना है, जिसकी रचना स्वयं एक ऋषि मुनि ने की हो और आगे चलकर, वही उनके जीवनसाथी भी बने हों? अगर नहीं, तो आज हम आपको ऐसी ही एक रोचक कहानी से परिचित कराएंगे और बताएँगे, कि आखिर इस कथन के क्या मायने हैं, कि ‘जहां चाह वहां राह’। तो भक्तों, आप में से काफ़ी लोग धर्म ग्रंथो में शामिल रामायण और महाभारत से परिचित होंगे। इन्हीं ग्रंथों में, अगस्त्य मुनि नाम के एक ऋषि का भी परिचय भी मिलता है। ऐसी मान्यता है, कि वह प्रसिद्ध सप्त ऋषियों और प्रसिद्ध 18 सिद्धों में से एक थे, जो कई सालों तक पोथिगई की पहाड़ियों में विराजमान होकर, जीवनयापन करते रहे थे। महाभारत की एक कथा के अनुसार, एक समय अगस्त्य मुनि को अपने पितरों की तृप्ति और शांति के लिए, विवाह करने की प्रबल इच्छा जागृत हुई। मगर जब उन्हें अपने योग्य कोई कन्या प्राप्त नहीं हुई, तो उन्होंने बहुत सारे जीव-जंतुओं के अंश लेकर, स्वयं ही एक कन्या की रचना की। इसके साथ ही, उन्होंने उस कन्या को संतान के रूप में विदर्भराज को सौंप दिया, जो संतान प्राप्ति के लिए काफ़ी इच्छुक थे। यही कन्या, लोपामुद्रा थीं। इस बात का उल्लेख, काफ़ी सारी जगहों पर मिलता है, कि लोपामुद्रा खुबसूरत होने के साथ-साथ, अत्यंत बुद्धिमान भी थीं और उनके सौंदर्य के चर्चे भी हुआ करते थे। इसी कारणवश, जब उन्होंने ऋषि अगस्त्य से शादी करना स्वीकार किया, तब इस बात से लोगों को हैरानी भी हुई, कि ऐसी रूपवती और राजसी कन्या एक ऋषि से शादी के लिए, कैसे अपना ऐश्वर्य और ठाठ छोड़ रही है। मगर वो कहते हैं ना, कि नियत और नियति से सब कुछ परे है और धर्म ग्रंथ तो होते ही हैं, असंभव के आगे का रास्ता बताने के लिए। तो भक्तों, आप भी इस विचार के साथ अपने जीवन मार्ग में आगे बढ़ें, कि असंभव केवल एक मिथ्या है और कुछ नहीं। ©parbhashrajbcnegmailcomm प्यारे भक्तजनों, क्या आपने कभी किसी ऐसी स्त्री के बारे में सुना है, जिसकी रचना स्वयं एक ऋषि मुनि ने की हो और आगे चलकर, वही उनके जीवनसाथी भी
प्यारे भक्तजनों, क्या आपने कभी किसी ऐसी स्त्री के बारे में सुना है, जिसकी रचना स्वयं एक ऋषि मुनि ने की हो और आगे चलकर, वही उनके जीवनसाथी भी #Knowledge
read moreVikas Sharma Shivaaya'
✒️📇जीवन की पाठशाला 🖋️ 🙏माँ सरस्वती के आशीर्वाद एवं सतगुरु की प्रेरणा से मेरी कलम द्वारा स्वरचित मेरी 12th कविता वीणा वादिनी माँ सरस्वती को समर्पित 🌹 कृपया मेरे You Tube Channel (यू ट्यूब चैनल) को like( लाइक) करें पसंद आने पर subscribe (सब्सक्राइब) करें और अपनी comments (स्पष्ट टिपण्णी) देकर मार्गदर्शन करें ,नित प्रतिदिन इतिहास -वर्तमान नई रोचक जानकारियां -सकारात्मक क्वोट्स पढें ..., https://youtu.be/vcZnSNp84dw अगर आप भी कोई रोचक जानकारी ,सच्ची घटना या कुछ और मेरे यू ट्यूब चैनल के माध्यम से देना चाहें तो संपर्क करें : # विषय : मोबाइल# हे मोबाइल देवा स्वामी जय मोबाइल देवा तुमको हर पल ध्यावत तुमको हर पल ध्यावत हे मोबाइल देवा स्वामी जय मोबाइल देवा -1 रात्रि में नींद के आगोश में और सुबह की अधखुली पलकों के साये में सुबह का पहला प्रणाम तुमको फिर घर के बुजृगों को हे मोबाइल देवा स्वामी जय मोबाइल देवा -2 चाहे हम ना मिलते अपने रिश्तेदारों से पर एक दिन भी ना छोड़ें मिलना तुम्हारे सगे वालों से दंडवत फेसबुक बाबा ,प्रणाम इंस्टा ताऊ कैसे हैं व्हाट्सप्प भैया ,और टेलीग्राम काका हे मोबाइल देवा स्वामी जय मोबाइल देवा -3 बेड टी हो या नाश्ता या हो लंच या डिनर कानों में लीड वाली मौसी फिर किस बात का डर हे मोबाइल देवा स्वामी जय मोबाइल देवा -4 जबसे तुम हो आये कैमरे -कॉपी -नोटबुक हुए दफ़न झूठ बोलना हम सीखे तुमको शत शत नमन हे मोबाइल देवा स्वामी इस मोबाइल देवा -5 रिश्ते नातों में दूरियां सब तुमको भातिं सुकून -चैन -नींद सब छिना तुम बन गए प्राणप्रिया साथी हे मोबाइल देवा स्वामी जय मोबाइल देवा -6 तुम हो दुनिया मुट्ठी में और अवगुणों का भंडार नई पीड़ी सीख रही तुमसे ही हर व्यवहार हे मोबाइल देवा स्वामी जय मोबाइल देवा -7 आज मात पिता तुम मेरे तुम ही हो बंधू सखा चारों पहर तुम्हें अर्पण क्या लागे मेरा जय मोबाइल देवा स्वामी जय मोबाइल देवा -8 तुम्हारे बिना यज्ञ न होवे -और ना कोई पूजा तुम्हारे बिना रिश्ते ना बनते जय मोबाइल देवा स्वामी जय मोबाइल देवा -9 बोलो मोबाइल देवता की जय नोकिया और मोटोरोला देव की जय सैमसंग और एम् आई देव की जय बोलो सच्चे नेटवर्क वाले एयरटेल की जय दूरदराज वाले वोडाफोन की जय गली गली जिओ देव की जय कलयुग के सच्चे भगवान की जय -10 सभी भक्तजनों भक्तजनो से निवेदन है की प्रसाद रूपी सिम कार्ड लेकर जाएँ और अमृत एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए निरंतर रिचार्ज कराएं आज की चारोँ दिशाओं और वास्तु मोबाइल की जय सभी संगत अंत में हाथ उठाकर हमारी नींद -सुकून -शांति छीनने वाले मोबाइल भगवान की जय बोलेंगे हे मोबाइल देवा स्वामी जय मोबाइल देवा -11 बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा 🙏सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरुरी ...! 🌹सुप्रभात🙏 स्वरचित एवं स्वमौलिक "🔱विकास शर्मा'शिवाया '"🔱 जयपुर-राजस्थान ©Vikas Sharma Shivaaya' ✒️📇जीवन की पाठशाला 🖋️ 🙏माँ सरस्वती के आशीर्वाद एवं सतगुरु की प्रेरणा से मेरी कलम द्वारा स्वरचित मेरी 12th कविता वीणा वादिनी माँ सरस्वती को
✒️📇जीवन की पाठशाला 🖋️ 🙏माँ सरस्वती के आशीर्वाद एवं सतगुरु की प्रेरणा से मेरी कलम द्वारा स्वरचित मेरी 12th कविता वीणा वादिनी माँ सरस्वती को
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श्री शनि चालीसा:- ॥दोहा॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज। करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥ हे माता पार्वती के पुत्र भगवान श्री गणेश, आपकी जय हो। आप कल्याणकारी है, सब पर कृपा करने वाले हैं, दीन लोगों के दुख दुर कर उन्हें खुशहाल करें भगवन। हे भगवान श्री शनिदेव जी आपकी जय हो, हे प्रभु, हमारी प्रार्थना सुनें, हे रविपुत्र हम पर कृपा करें व भक्तजनों की लाज रखें। ॥चौपाई॥ जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥ चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥ परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥ कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिये माल मुक्तन मणि दमके॥ कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥ हे दयालु शनिदेव महाराज आपकी जय हो, आप सदा भक्तों के रक्षक हैं उनके पालनहार हैं। आप श्याम वर्णीय हैं व आपकी चार भुजाएं हैं। आपके मस्तक पर रतन जड़ित मुकुट आपकी शोभा को बढा रहा है। आपका बड़ा मस्तक आकर्षक है, आपकी दृष्टि टेढी रहती है ( शनिदेव को यह वरदान प्राप्त हुआ था कि जिस पर भी उनकी दृष्टि पड़ेगी उसका अनिष्ट होगा इसलिए आप हमेशा टेढी दृष्टि से देखते हैं ताकि आपकी सीधी दृष्टि से किसी का अहित न हो)। आपकी भृकुटी भी विकराल दिखाई देती है। आपके कानों में सोने के कुंडल चमचमा रहे हैं। आपकी छाती पर मोतियों व मणियों का हार आपकी आभा को और भी बढ़ा रहा है। आपके हाथों में गदा, त्रिशूल व कुठार हैं, जिनसे आप पल भर में शत्रुओं का संहार करते हैं। पिंगल, कृष्णों, छाया, नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन॥ सौरी, मन्द, शनि, दशनामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥ जा पर प्रभु प्रसन्न है जाहीं। रंकहुं राव करैं क्षण माहीं॥ पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥ र्पिंगल, कृष्ण, छाया नंदन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दु:ख भंजन, सौरी, मंद, शनि ये आपके दस नाम हैं। हे सूर्यपुत्र आपको सब कार्यों की सफलता के लिए पूजा जाता है। क्योंकि जिस पर भी आप प्रसन्न होते हैं, कृपालु होते हैं वह क्षण भर में ही रंक से राजा बन जाता है। पहाड़ जैसी समस्या भी उसे घास के तिनके सी लगती है लेकिन जिस पर आप नाराज हो जांए तो छोटी सी समस्या भी पहाड़ बन जाती है। राज मिलत वन रामहिं दीन्हो। कैकेइहुं की मति हरि लीन्हो॥ बनहूं में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चतुराई॥ लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥ रावण की गति मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥ दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥ नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥ हार नौलाखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥ भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥ विनय राग दीपक महँ कीन्हों। तब प्रसन्न प्रभु हवै सुख दीन्हों॥ हे प्रभु आपकी दशा के चलते ही तो राज के बदले भगवान श्री राम को भी वनवास मिला था। आपके प्रभाव से ही केकैयी ने ऐसा बुद्धि हीन निर्णय लिया। आपकी दशा के चलते ही वन में मायावी मृग के कपट को माता सीता पहचान न सकी और उनका हरण हुआ। उनकी सूझबूझ भी काम नहीं आयी। आपकी दशा से ही लक्ष्मण के प्राणों पर संकट आन खड़ा हुआ जिससे पूरे दल में हाहाकार मच गया था। आपके प्रभाव से ही रावण ने भी ऐसा बुद्धिहीन कृत्य किया व प्रभु श्री राम से शत्रुता बढाई। आपकी दृष्टि के कारण बजरंग बलि हनुमान का डंका पूरे विश्व में बजा व लंका तहस-नहस हुई। आपकी नाराजगी के कारण राजा विक्रमादित्य को जंगलों में भटकना पड़ा। उनके सामने हार को मोर के चित्र ने निगल लिया व उन पर हार चुराने के आरोप लगे। इसी नौलखे हार की चोरी के आरोप में उनके हाथ पैर तुड़वा दिये गये। आपकी दशा के चलते ही विक्रमादित्य को तेली के घर कोल्हू चलाना पड़ा। लेकिन जब दीपक राग में उन्होंनें प्रार्थना की तो आप प्रसन्न हुए व फिर से उन्हें सुख समृद्धि से संपन्न कर दिया। हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥ तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥ श्री शंकरहि गहयो जब जाई। पार्वती को सती कराई॥ तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥ पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रोपदी होति उधारी॥ कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥ रवि कहं मुख महं धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥ शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ई॥ आपकी दशा पड़ने पर राजा हरिश्चंद्र की स्त्री तक बिक गई, स्वयं को भी डोम के घर पर पानी भरना पड़ा। उसी प्रकार राजा नल व रानी दयमंती को भी कष्ट उठाने पड़े, आपकी दशा के चलते भूनी हुई मछली तक वापस जल में कूद गई और राजा नल को भूखों मरना पड़ा। भगवान शंकर पर आपकी दशा पड़ी तो माता पार्वती को हवन कुंड में कूदकर अपनी जान देनी पड़ी। आपके कोप के कारण ही भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग होकर आकाश में उड़ गया। पांडवों पर जब आपकी दशा पड़ी तो द्रौपदी वस्त्रहीन होते होते बची। आपकी दशा से कौरवों की मति भी मारी गयी जिसके परिणाम में महाभारत का युद्ध हुआ। आपकी कुदृष्टि ने तो स्वयं अपने पिता सूर्यदेव को नहीं बख्शा व उन्हें अपने मुख में लेकर आप पाताल लोक में कूद गए। देवताओं की लाख विनती के बाद आपने सूर्यदेव को अपने मुख से आजाद किया। वाहन प्रभु के सात सुजाना। दिग्ज हय गर्दभ मृग स्वाना॥ जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥ गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै॥ गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥ जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥ जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥ तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँजी अरु तामा॥ लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावै॥ समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्वसुख मंगल कारी॥ हे प्रभु आपके सात वाहन हैं। हाथी, घोड़ा, गधा, हिरण, कुत्ता, सियार और शेर जिस वाहन पर बैठकर आप आते हैं उसी प्रकार ज्योतिष आपके फल की गणना करता है। यदि आप हाथी पर सवार होकर आते हैं घर में लक्ष्मी आती है। यदि घोड़े पर बैठकर आते हैं तो सुख संपत्ति मिलती है। यदि गधा आपकी सवारी हो तो कई प्रकार के कार्यों में अड़चन आती है, वहीं जिसके यहां आप शेर पर सवार होकर आते हैं तो आप समाज में उसका रुतबा बढाते हैं, उसे प्रसिद्धि दिलाते हैं। वहीं सियार आपकी सवारी हो तो आपकी दशा से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है व यदि हिरण पर आप आते हैं तो शारीरिक व्याधियां लेकर आते हैं जो जानलेवा होती हैं। हे प्रभु जब भी कुत्ते की सवारी करते हुए आते हैं तो यह किसी बड़ी चोरी की और ईशारा करती है। इसी प्रकार आपके चरण भी सोना, चांदी, तांबा व लोहा आदि चार प्रकार की धातुओं के हैं। यदि आप लौहे के चरण पर आते हैं तो यह धन, जन या संपत्ति की हानि का संकेतक है। वहीं चांदी व तांबे के चरण पर आते हैं तो यह सामान्यत शुभ होता है, लेकिन जिनके यहां भी आप सोने के चरणों में पधारते हैं, उनके लिये हर लिहाज से सुखदायक व कल्याणकारी होते है। जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥ अदभुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥ जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥ पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥ कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥ जो भी इस शनि चरित्र को हर रोज गाएगा उसे आपके कोप का सामना नहीं करना पड़ेगा, आपकी दशा उसे नहीं सताएगी। उस पर भगवान शनिदेव महाराज अपनी अद्भुत लीला दिखाते हैं व उसके शत्रुओं को कमजोर कर देते हैं। जो कोई भी अच्छे सुयोग्य पंडित को बुलाकार विधि व नियम अनुसार शनि ग्रह को शांत करवाता है। शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष को जल देता है व दिया जलाता है उसे बहुत सुख मिलता है। प्रभु शनिदेव का दास रामसुंदर भी कहता है कि भगवान शनि के सुमिरन सुख की प्राप्ति होती है व अज्ञानता का अंधेरा मिटकर ज्ञान का प्रकाश होने लगता है। ॥दोहा॥ पाठ शनिश्चर देव को, की हों विमल तैयार। करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥ भगवान शनिदेव के इस पाठ को ‘विमल’ ने तैयार किया है जो भी शनि चालीसा का चालीस दिन तक पाठ करता है शनिदेव की कृपा से वह भवसागर से पार हो जाता है। हनुमान जी मंत्र:- मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।(रामरक्षास्तोत्रम् 23) जिनकी मन की गति और हवा की गति, जो बुद्धिमान और विवेकपूर्ण के बीच अधिक है, मैं हवा के पुत्र श्री राम दत्त वानरों के सिर में शरण लेता हूं। इस कलि योग में हनुमान जी की भक्ति से बढ़कर भक्ति में कोई शक्ति नहीं है। राम रक्षा स्तोत्र से लिए गए हनुमान जी की शरण में जाने के लिए इस श्लोक या मंत्र का पाठ करने से हनुमान जी तुरंत साधक की विनती सुन लेते हैं और उन्हें अपनी शरण में ले लेते हैं। जो लोग प्रतिदिन हनुमान जी का ध्यान करते हैं, हनुमान जी उनकी बुद्धि से क्रोध को दूर करते हैं और शक्ति बढ़ाते हैं। 🌹बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🙏 ©Vikas Sharma Shivaaya' श्री शनि चालीसा:- ॥दोहा॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु, स
श्री शनि चालीसा:- ॥दोहा॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल। दीनन के दुःख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु, स #समाज
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🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 21 जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥ रावण का साम्राज्य, भगवान् राम के बल के थोड़े से अंश के बराबर और हे रावण! सुन,जिसके बल के लवलेश अर्थात किन्चित्मात्र, थोडे से अंश से तूने तमाम चराचर जगत को जीता है,उस परमात्मा का मै दूत हूँ जिनकी प्यारी सीता को तू हर ले आया है ॥21॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम रावण का सहस्रबाहु और बालि से युद्ध जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई॥ समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥ हे रावण! तुम्हारी प्रभुता तो मैंने तभी से जान ली है कि जब तुम्हे सहस्रबाहु के साथ युद्ध करनेका काम पड़ा था और मुझको यह बात भी याद है कि तुमने बालि से लड़ कर जो यश प्राप्त किया था। हनुमानजी के ये वचन सुनकर रावण ने हँसी में ही उड़ा दिए॥ हनुमानजी ने अशोकवन क्यों उजाड़ा? खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥ सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी॥ तब फिर हनुमानजी ने कहा कि हे रावण!मुझको भूख लग गयी थी इसलिए तो मैंने आपके बाग़ के फल खाए है औरजो वृक्षो को तोडा है सो तो केवल मैंने अपने वानर स्वाभावकी चपलतासे तोड़ डाले है और जो मैंने आपके राक्षसों को मारा उसका कारण तो यह है की हे रावण!अपना देह तो सबको बहुत प्यारा लगता है,सो वे खोटे रास्ते चलने वाले राक्षस मुझको मारने लगे॥ हनुमानजी ने राक्षसों को क्यों मारा? जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे॥ मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥ तब मैंने अपने प्यारे शरीर की रक्षा करने के लिए जिन्होंने मुझको मारा था उनको मैंने भी मारा।इस पर आपके पुत्र ने मुझको बाँध लिया है,हनुमान जी कहते है कि मुझको बंध जाने से कुछ भी लज्जा नहीं आती क्योंकि मै अपने स्वामी का कार्य करना चाहता हूँ॥ हनुमानजी रावण को समझाते है बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥ देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥ हे रावण! मै हाथ जोड़कर आपसे प्रार्थना करता हूँ।सो अभिमान छोड़कर मेरी शिक्षा सुनो॥और अपने मन मे विचार करके तुम अपने आप खूब अच्छी तरह देख लो और सोचनेके बाद भ्रम छोड़कर भक्तजनों के भय मिटाने वाले प्रभुकी सेवा करो॥ ईश्वर से कभी बैर नहीं करना चाहिए जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई॥ तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै॥ हे रावण! जो देवता, दैत्य और सारे चराचर को खा जाता है,वह काल भी जिसके सामने अत्यंत भयभीत रहता है॥उस परमात्मा से कभी बैर नहीं करना चाहिये।इसलिए जो तू मेरा कहना माने तो सीताजी को रामचन्द्रजी को दे दो॥ विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम)आज 824 से 835 नाम 824 अश्वत्थः श्व अर्थात कल भी रहनेवाला नहीं है 825 चाणूरान्ध्रनिषूदनः चाणूर नामक अन्ध्र जाति के वीर को मारने वाले हैं 826 सहस्रार्चिः जिनकी सहस्र अर्चियाँ (किरणें) हैं 827 सप्तजिह्वः उनकी अग्निरूपी सात जिह्वाएँ हैं 828 सप्तैधाः जिनकी सात ऐधाएँ हैं अर्थात दीप्तियाँ हैं 829 सप्तवाहनः सात घोड़े(सूर्यरूप) जिनके वाहन हैं 830 अमूर्तिः जो मूर्तिहीन हैं 831 अनघः जिनमे अघ(दुःख) या पाप नहीं है 832 अचिन्त्यः सब प्रमाणों के अविषय हैं 833 भयकृत् भक्तों का भय काटने वाले हैं 834 भयनाशनः धर्म का पालन करने वालों का भय नष्ट करने वाले हैं 835 अणुः जो अत्यंत सूक्ष्म हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 21 जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥ रावण का साम्राज्य, भगवान् राम के
🙏सुन्दरकांड 🙏 दोहा – 21 जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि ॥21॥ रावण का साम्राज्य, भगवान् राम के #समाज
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