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TarunRaj
kavi-navi
Sangeeta Pal
narendra bhakuni
Gaurav Christ
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
Gaurav Christ
Mili Saha
// भस्मासुर को शिव का वरदान // पूर्व काल में भस्मासुर नाम का हुआ करता था एक राक्षस, समस्त विश्व में राज करने की प्रबल इच्छा जिसमें भरकस, इसी प्रयोजन हेतु करने लगा, भगवान शिव की घोर तपस्या, शिव ने तब प्रसन्न होकर उसकी गहन तपस्या का फल दिया, वर मांगने कहा जब, भस्मासुर ने मांगा अमरत्व का वरदान, शिव बोले नहीं दे सकता यह वर, है यह सृष्टि विरुद्ध विधान, अमृत्व के अतिरिक्त जो मांगना मांग लो बोले शिव भगवान, तब भस्मासुर ने, दौड़ाई बुद्धि और बदल कर मांगा वरदान, जिसके भी सिर पर मैं, हाथ रखूँ, वो वहीं पर भस्म हो जाए, दीजिए मुझे यही एक वरदान जिससे मेरा कल्याण हो जाए, भगवान शिव से वरदान लेकर, उन्हीं को भस्म करने चला, भ्रष्ट हुई बुद्धि भस्मासुर की, त्रिकाल देव को ही हराने चला, जैसे -तैसे खुद को बचा कर, शिव पहुंँचते नारायण के पास, संपूर्ण कथा सुनाकर नारायण को मदद करने की कही बात, तब विष्णु भस्मासुर का अंत करने को मोहनी रूप बनाते हैं, भगवान नारायण अपने रूपजाल में भस्मासुर को फंँसाते हैं, देख रूप मोहिनी का भस्मासुर रखता है विवाह का प्रस्ताव, उसी से विवाह करूंँगी जो नृत्य जाने मोहनी देती है ज़वाब, नृत्य नहीं जानता था भस्मासुर मांगी उसने मोहनी की मदद, तुरंत तैयार हो गई मोहनी, भस्मासुर की थी यह बेला सुखद, मोहनी ने अपने सर पे रख दिया हाथ नृत्य सिखाते सिखाते, भस्मासुर भूल गया शिव से मिला वरदान, नृत्य करते-करते, रख दिया उसने अपने सर पर हाथ, भस्म हो गया भस्मासुर, भगवान विष्णु की मदद से शिव की विकट समस्या हुई दूर। ©Mili Saha भस्मासुर को शिव का वरदान // भस्मासुर को शिव का वरदान // पूर्व काल में भस्मासुर नाम का हुआ करता था एक राक्षस, समस्त विश्व में राज करने की प
Mili Saha
// पांँच शिष्य // गुरु बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना जीवन अंधकार, गुरु से ज्ञान पाकर ही जीवन को मिलता आकार, एक आश्रम में एक गुरु के थे पांँच होनहार शिष्य, गुरु की प्रबल इच्छा, उज्जवल हो इनका भविष्य, पांँच शिष्य थे इच्छा, बल,बुद्धि,धैर्य और विश्वास, सभी खुद को बलशाली कहते लड़ते थे दिन-रात, पांँचों में नहीं बनती थी गुरुजी हो गए बड़े परेशान, सोचा इस समस्या का कुछ होना चाहिए समाधान, गुरुजी ने पांँचों शिष्यों को बुलाकर एक कार्य दिया, तख्ते पर लगी टेढ़ी कील को सीधा करने को कहा, इच्छा, बल, बुद्धि,धैर्य,विश्वास सब बारी बारी आए, खूब लगाई ताकत पर कील को सीधा ना कर पाए, हार चुके थे बल लगाकर सब तब गुरुजी ने बुलाया, अलग-अलग तुम्हारा महत्व नहीं सबको समझाया, बिना इच्छा किसी कार्य की ना हो सकती शुरुआत, इच्छा अधूरी रह जाती है अगर मन में न हो विश्वास, बल और बुद्धि जब मिल जाते हैं तो बन जाती बात, किंतु कार्य तभी पूर्ण होता है जब धैर्य देता है साथ, तभी एक शिष्य बोला सब तो ऊपर वाला करता है, हम सबका रिमोट उस ईश्वर के हाथों में ही रहता है, गुरुजी बोले रिमोट जरूर ईश्वर के हाथों में होता है, किंतु कर्म किए बिना कोई सफल नहीं हो सकता है, कर्म इच्छा, बल, बुद्धि, धैर्य,और विश्वास से होता है, जिस इंसान में ये गुण है वो कभी हार नहीं सकता है, यह सब सुनकर सभी शिष्य समझ गए गुरु की बात, टेढ़ी कील को सीधा किया सबने मिलकर एक साथ, चेहरे पर सब की चमक थी गुरु की शिक्षा काम आई, सबका महत्व एक बराबर है यह बात समझ में आई, शिष्यों के जीवन की कोरी स्लेट पर पड़ा ज्ञान का प्रकाश, अंधेरा हटा मन से एक हुए इच्छा, बल, बुद्धि, धैर्य,विश्वास। ©Mili Saha // पांँच शिष्य // गुरु बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना जीवन अंधकार, गुरु से ज्ञान पाकर ही जीवन को मिलता आकार, एक आश्रम में एक गुरु के थे पां