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मैं जिस में हूं ये दुनिया मुख्तलिफ है जहां मैं था वो आलम दूसरा था #करोना की महामारी
ASHISH KUMAR TIWARI
रातें पहले भी सूनी थी, ये दिन क्यूँ बदल गए, मोहताज हैं इंसान निबाले के लिए, यहाँ तो हर दिन ही रविवार बन गए, बगीचे जो बेखौफ जी रहे थे, आज वो भी समशान बन गए, बचे हैं जो घर का चिराग बनकर, वो खुद से ज्यादा के कर्जदार बन गए| स्तब्ध राहें ये बयां कर रही हैं, इंसां तो छोड़ो लहर, मोहल्ले के मोहल्ले उजड़ गए, बिलखते बच्चों के अजीज कहते हैं, बिस्तर तो मुकद्दर में नहीं अपने, कब्र भी बदनसीब हो गए, मंजर धरा का ऐसा है, महामारी से तो कम साहेब, भूख से ज्यादा मर गए, तकदीर दोषी है या खुद मगर, बेवसी ऐसी है कि, कब्र में ही कब्र बन गए, ये तो मुसीबतें हैं जनाब, आती रहेंगी मगर, ऐसे तो कई वक्त गुजर गए, फक्र है हमें इस लम्हे का, आने वाली पीढ़ियों का, हम इतिहास बन गए| ©ASHISH KUMAR TIWARI महामारी की एक झलक #rayofhope
Nishit Shah
"प्रकृति की देन-एक महामारी" हे महामारी, तेरा खौफ कैसा! तेरे आते ही दुनिया में , मानो, मानव जिंदगी थम सी गई है। कहते हैं बदलाव ही एक जीवन है, फिर भी मानव उसे पाने के लिए उत्सुक है। नारी का गृहस्थी काम,करने का मर्दों के पास मौका है,किरदारों को महकाने का। हे महामारी तेरा खौफ कैसा, ना कोई बंदूक ,ना तलवार उठ रही है। यही मानव है जो हाथ मिलाने से डर रहा है। आज प्रकृति स्वतंत्र है, और मानवी घर में कैद है, मानो,मानव जिंदगी थम सी गई है। खुली सुनसान सड़कें, बूंदो की आवाज, आज का मानवी हाथ झुकाकर खड़ा है। यह वादा रहा निभाने का सभी का, आज और अब से प्रकृति का ख्याल रखने का। हे भारतीयों, अपने को अपनों से बचाने के लिए, स्वयं घर में रहने की अपील है। प्रकृति मानवी के इतने करीब है, मनुष्य, मनुष्य से दूर होकर अकेला बैठा हुआ है। - निशित शाह "प्रकृति की देन-एक महामारी"
Poet bhushan kumar
ये खौफ भरी रातें ये खौफ भरी दिन एक दिन ढल जाएगी आने वाले उजालाओ के साथ सिर्फ रह जाएगी यादें। इस महामारी के वक्त में अपने धैर्यऔर हौसलों को बरकरार रखे।और अपने आप को सुरक्षित रखे। एवं सरकार के द्वारा सूझाऐ गये समस्त नियमों का पालन करें। कवि भूषण कुमार कोरोना की महामारी पर हमारी अनुभव
Sachin Bhatt
(गों का गों बंझा व्है गेनी छूटी गेनी सभी धाणी पहाड़ो की पीड़ा भै बंधू तुम्ही बता अब के माँ लाणी ऐगी बीमारी कॅरोना की जल्दी तुम ऐ जावा घर राजी ख़ुशी रैला जा तुम त फिर चली जाय शहर घर माँ भी तुम घर ही का भीतर रँया कुछ दिन सब सही व्हे जालु तब घर बाटिन भैर आयन) सभी भाई बहिन दोस्त रिश्तेदारों को प्रेम भरा नकमस्कार सभी स्वस्थ रहे ऐसी कामना करता हूँ ।और सभी घर में रहे ऐसी प्रार्थना करता हूँ ।कॅरोना का इलाज संभव है । पर इसे फैलने से रोकना असमभव है ।।तो आप सभी अपनी देशभक्ति प्रदर्शित करें ,और हाथ जोड़ कर निवेदन करता हूँ कि जमाखोरी ना करें। धन्यवाद! आपका अपना $ सचिन भट्ट कॅरोना की महामारी से बस बचो।