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Vineet Choudhary

मुर्गा भात के लिए बारातियों ने किया हंगामा 🥺🍗

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Himanshu Prajapati

#Apocalypse क्यों खाना कुछ और जब मजा आता है खाकर दाल भात, फिर नींद बहुत अच्छी आती है चाहे दिन हो या रात..! #विचार

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क्यों खाना कुछ और जब मजा आता है
खाकर दाल भात,
फिर नींद बहुत अच्छी आती है 
चाहे दिन हो या रात..!

©Himanshu Prajapati #Apocalypse क्यों खाना कुछ और जब मजा आता है
खाकर दाल भात,
फिर नींद बहुत अच्छी आती है 
चाहे दिन हो या रात..!

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :- थर-थर कापे होंठ सभी के ,  कट-कट बोले दाँत । अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत । थर-थर कापे होंठ सभी के .... #कविता

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गीत :-

थर-थर कापे होंठ सभी के ,  कट-कट बोले दाँत ।
अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत ।
थर-थर कापे होंठ सभी के ....

कैसे दे नववर्ष बधाई , जाकर उनको आज ।
काज सभी के बन्द पड़े है , कैसे छेड़े साज ।।
रोटी तो अब मिलती मुश्किल , कब तक खाए भात ।
थर-थर कापे होंठ सभी के ....

शीत लहर से काँप रहे हैं , जीव-जन्तु इंसान ।
दसों दिशाओं धुन्ध पड़ी है , छुपे सूर्य भगवान ।।
खाली पेट मरोड़ उठी है , सुकुड़ी सबकी आँत ।
थर-थर कापे होंठ सभी के ....

जो मेरा अब तक हुआ नही , कैसे हो स्वीकार ।
बस कहकर तुमने थोप दिया , यह सबका त्यौहार ।।
लेकिन इसमें दिखी न हमको , खुशियों की सौगात ।
थर-थर कापे होंठ सभी के ...

हम तो अपनी पीर छुपाए , बैठे थे सरकार ।
ऊपर से नववर्ष तुम्हारा , बन बैठा त्यौहार ।।
किसको जाकर आज दिखाए , किसने मारी लात ।
थर-थर कापे होंठ सभी के ....

थर-थर कापे होंठ सभी के ,  कट-कट बोले दाँत ।
अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत ।

०१/०१/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-


थर-थर कापे होंठ सभी के ,  कट-कट बोले दाँत ।

अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत ।

थर-थर कापे होंठ सभी के ....

Tanhaz Ahmed

🤣🤣🤣 भात=Rice #chickens #Curry #Chilli #chikenchat #Comedy

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Nitu Singh जज़्बातदिलके

chandrayaan3 राखी से पहले ही भेजा है चंदा मामा को धरती माता का स्नेह और प्यार कितनी बार पुकारा तुमको कभी पानी पे उतारा तो दूध भात का लाल

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खामोशी और दस्तक

#BehtaLamha आजकल बड़े बड़े रेस्टोरेंटो में पकवानों के नाम 'अंग्रेज़ी' में रखकर यह साबित किया जाता है कि "जब तक हम जैसे समझदार बेवकूफ रहें #न्यूज़

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खामोशी और दस्तक

#BehtaLamha आजकल बड़े बड़े रेस्टोरेंटो में पकवानों के नाम 'अंग्रेज़ी' में रखकर यह साबित किया जाता है कि "जब तक हम जैसे समझदार बेवकूफ रहें #कॉमेडी

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आजकल बड़े बड़े रेस्टोरेंटो में पकवानों के नाम 'अंग्रेज़ी' में रखकर यह साबित किया जाता है कि 

"जब तक हम जैसे समझदार बेवकूफ रहेंगे ये होशियार कभी भूखे नहीं मरेंगे...

अब देखिये कुछ डिश के नाम

▪ रोसेटो अल्जफर्नो- और ये डिश है भात और लाल साग मिला हुआ..दाम 375 रूपये..

▪ नाचोस विथ सालसा- यह है नमकीन खस्ता..कच्चे टमाटर की चटनी के साथ... दाम 195 रूपये..

अब खस्ता और टमाटर चटनी बोलने से कोई 195 रूपये तो नहीं देगा न..

"कच्चे टमाटर की चटनी के साथ खस्ता खा रहे हैं "

बोलने में शर्म आती है... 

▪ *सिनोमिना सुफले - सूजी का हलवा है दाम Rs 175...

▪ चावल के मांड़ को भी राइस सूप विथ लेमन ग्रास- बोलकर 150 में परोस देते हैं..

और ये कूल ड्यूड बड़े इतरा कर बोलते हैं

"I am having rice soup with NACHOS WITH SALSA....LOL!!!" 

अब यह कोई थोड़े ही बोलेगा क़ि - माँड़ पी रहें हैं खस्ता के साथ..

▪ एक डिश है इंडिलाचा- सब्जी से भरे हुए पराठा को कहते हैं... 200 रूपये का..

▪ *'सतुआ'* बोलोगे तो लोग गंवार बोल बड़ी हीन दृष्टि से देखेंगे लेकिन ...
Gram juice with pepper' बोलने से स्टैंडर्ड बढ़ जायेगा..

▪कुकर में उबला हुआ 5 रूपया के भुट्टे को 50 रूपया में 
*'स्वीट कॉर्न'* बोलकर बेच देते हैं और लोग भी शान से खाते हैं….

Moral of the story-

(जब तक बेवक़ूफ़ ज़िन्दा हैं अक़्लमन्द भूखे नहीं मरेंगे)

©खामोशी और दस्तक #BehtaLamha 
आजकल बड़े बड़े रेस्टोरेंटो में पकवानों के नाम 'अंग्रेज़ी' में रखकर यह साबित किया जाता है कि 

"जब तक हम जैसे समझदार बेवकूफ रहें

Satish Ghorela

अपनी लेखनी अपनी वार्ता लेखक भगत सतीश कुमार घोडेला।।। नरसी का भात नानी बाई को मायरो #पौराणिककथा

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