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Balraj Chaprana
गौरे लोगों की हुकुमत के बाद अब छिछोरे लोगों की हुकूमत है दुनिया पर blrj हुकुमत #1
Mr. R P Maurya
जग की रीत है कि जब भी आप खुशी की तरफ बढ़ते हैं ये समाज आप पर दुखों का पत्थर फेंकता है ©Mr. R P Maurya जग की रीत
نعیم رضا اشرفی
क्यों किसी की बेटी के साथ ये अतियाचार हुआ, क्यों किसी बाप के दिल पर इतना बड़ा वार हुआ। रेप कर के भी गुमते है ज़ालिम बहार खूले आम, एक भाई और बाप इतना क्यों शर्मशार हुआ। हां छोटे कपड़ों को देदो तुम दोष मगर, क्यों तीन साल की बच्ची के साथ ये वाकिया बार बार हुआ। छीन ली ज़िंदगी तुम ने खिलती हुई कलि की, इस हवस से भरी दुनिया में हर सखस लाएतबर हुआ। रूह तड़प जाती है बच्चियों पर अतियचर देख कर, नईम हुकूमत को फिर भी ये सब कुछ क्यों गवार हुआ ©نعیم رضا اشرفی #रेप #रेपिस्ट #हुकुमत #Stoprape
GARIMA SINGH
भूख से तड़प रही औरत की काया फिर बोले मेरा पति!अभी नही खाया देखो देखो जग की कैसी ये माया औरत ने ही औरत का है बैन्ड बजाया एक करे कु6 नई शुरुआत मर्द उसपर चिल्लाया देखो देखो जग की कैसी ये माया औरत करे ब्रत ,पूजा ,पाठ,उपवास बेटे के लिए क्या बेटी को नही जन्माया अरे देखो जग की ये अनोखी माया जग की माया
mukul marar
सरकार सरकार हमारी थी हर अरदास हमारी थी,जो तेरे चाहने से शायद पुरी हो जाती.. क्योंकि यहां भी हुकुमत सिर्फ तुम्हारी थी।। #सरकार हमारी #हुकुमत तेरी
Saurabh Baurai
ढल रही है यह धरा घनघोर तम की छाव से। ओझल सि लिपटी कोई बेड़ी जकड़े मनुज को पाव से।। सत्य अब जख्मी सा होकर कैद होने है लगा। चंद सिक्कों की लालसा में डकैत अब होने लगा।। मच रहा है शोर हर क्षण झूठ की हर जीत का। उल्लास में है हर प्राणी इस अनोखी रीत का।। गिर रहा है श्वेत पंछी धूर्त रण की बाह से। बह रही है रुधिर तटिनी असुर युग के प्रभाव से।। हो रहा नरसंहार हरदिन मौनता और धीर से । अंजान होकर जन है सोया विवश बंध जंजीर से ।। दुर्दशा इस जग की ।
Shailesh "saral"
हे शिवशंकर हे प़लयंकर जग की पीर हरो। जग की पीर हरो।। घोर हलाहल वसुधा पीड़ित अब विषपान करो हे शिव शंकर हे प्रलयंकर कर जग की पीर हरो। अनगिन भस्मासुर फिर सक्रिय देव शक्तियां हतप्रभ निष्क्रिय गहो त्रिशूल पुनः त्रिपुरांतक ! अब संहार करो । वसुधा आहत अंबर आहत मानवता का मन क्षत -विक्षत सजल नयन से तुम्हें निहारे अब उद्धार करो जग की पीर हरो। शैलेश 'सरल' जग की पीर हरो ।।
NG India
मन क्यों नहीं करत विचारा रे ।।टेर।। झूँठे जग की आशा धारे । कोई न देत सहारा ।। अन्त समय देही का आवे । सब हो जाते न्यारा (1) कूड़ कपट कर माया जोड़ो । होगा उसका बटवारा ।। बेटा बेटी बहू जमाई । सब हैं ठगने हारा (2) चेतन पूँजी नश जाने पर । पछताओगे भारा ।। अब मौका है चेत बावरे । राधास्वामी जपो दयाला (3) नाम की पूँजी साथ चलेगी । नही होगा बटवारा ।। सतगुरू के संग में चलने से । नहीं लूँटे बटमारा (4) शील क्षमा सन्तोष को धारो । काम क्रोध को टारो ।। लोभ मोह अहंकार निकारो । प्रेम दीनता धारो (5) राधास्वामी द्याल सा साथी प्यारे । कहाँ मिलेगा भारा ।। हरदम अपना अंग संग देकर । कर देंगे उद्धारा (6) *राधास्वामी* राधास्वामी प्रीति बानी 2--40 झूंठे जग की आशा ।
सुरेश चौधरी
देख व्यथा जग की मन मेरो घबड़ावे।। छोड़ छाड़ घर द्वार सभी, ईश शरण तू आवे नाग पाश बांध मोह को, तन डस विष फैलावे भांति भांति से जुगत भिड़ा, बस छुटकारो पावे कलजुग घोर आय बस्यो, छल कपट नजर आवे हुयो जगत प्रधान धन ही, घर घर कलह मचावे कन्या हुई बोझ अब तो, गर्भ में ही गिरावे कह घड़ों पाप को फूटे, चैन इंदु मन पावे देख व्यथा जग की मन मेरो घबड़ावे।। देख व्यथा जग की । पद।