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purvi Shah

मुतरादिफ़= common/same रादे अमल = behaviour/nature कितने मुतरादिफ़ रादे अमल है हम दोनो, उसे खुद की ज़रा फ़िक्र नहि मुझे उसके सिवा जहाँ #yqbaba #yqurdu #YourQuoteAndMine #yqhindi #yqquotes #yqlove #yqshayari #yqcare

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उनकी बेफिक्री में हम तो फिक्रमंद फिरते है।
पर हमारी फिक्र में कहां वो बेफिक्र रहते हैं।
ऐसा रादे अमल बनाया खुदा ने हम दोनों को,
सिर्फ एक की फिक्र में हम मुतरादीफ होते है। मुतरादिफ़= common/same
रादे अमल = behaviour/nature

कितने  मुतरादिफ़  रादे अमल है  हम दोनो,
उसे खुद की ज़रा फ़िक्र नहि मुझे  उसके सिवा 
जहाँ

Mahesh Yogi

उमर की राह मे रास्ते बदल जाते हैं...!! वक़्त की आँधी मे इंसान बदल जाते हैं...!! सोचते हैं आपको इतना याद ना करें...!! लेकिन आँख बंद करते ही #शायरी

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उमर की राह मे रास्ते 
बदल जाते हैं...!! 
वक़्त की आँधी मे इंसान 
बदल जाते हैं...!!
सोचते हैं आपको इतना 
याद ना करें...!!
लेकिन आँख बंद करते ही इ
रादे बदल जाते हैं...!! उमर की राह मे रास्ते बदल जाते हैं...!! 
वक़्त की आँधी मे इंसान बदल जाते हैं...!!
सोचते हैं आपको इतना याद ना करें...!!
लेकिन आँख बंद करते ही

Mohd Hasnain

मुसलमानों के जाहिल और कमजोर होने की सज़ा* पहले तालीम से *तुम मोड़ दिए जाओगे* फिर किसी *जुर्म से जोड़* दिए जाओगे. हाथ से *हाथ की जंजीर बना

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मुसलमानों के जाहिल और कमजोर होने की सज़ा*

पहले तालीम से *तुम मोड़ दिए जाओगे* 
फिर किसी *जुर्म से जोड़* दिए जाओगे. 
हाथ से *हाथ की जंजीर बना कर निकलो* 
वर्ना *धागे की तरह तोड़* दिए जाओगे        
 *जब अपने घर से लाश उठाओगे* 
                    *तब ही क्या होश में आओगे???*
*‘अल्लाह किसी कौम की हालत को उस वक्त*      
*तक नहीं बदलता जब तक कि वह कौम खुद*
*अपनी हालत को न बदले।’ (अल राद-11)* मुसलमानों के जाहिल और कमजोर होने की सज़ा*

पहले तालीम से *तुम मोड़ दिए जाओगे* 
फिर किसी *जुर्म से जोड़* दिए जाओगे. 
हाथ से *हाथ की जंजीर बना

मुरखनादान

प्रिय....२०२१...2021...✍🏻 ************************ तुम आये हो तो... थोड़ा खुशियो का नजारा दिखलादो... जो समेट लाए हो खुसियाँ... जरा उनको बि #शायरी

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🙏🏼प्रिय....२०२१...2021...✍🏻
************************
तुम आये हो तो...
थोड़ा खुशियो का नजारा दिखलादो...

जो समेट लाए हो खुसियाँ...
जरा उनको बिख रादो...

बहुत चाह थी सबको तुझसे मिलने की...
अब इन सबका आंगन महका दो...

तुम आये हो तो..
थोड़ा खुशियो का नजारा दिखलादो...

सब आस लगाए बैठे थे तेरे आने की चाह में...
अब सबको खुशियो से रू-बरू करवा दो...

 तुम आये हो तो..
थोड़ा खुशियो का नजारा दिखलादो...
और सबको खुशियो से रू-बरू करवा दो...
R.J...!

Date 01-01-2021
⌚टाइम  01:08am

©Rahul R.J..!♥️ प्रिय....२०२१...2021...✍🏻
************************

तुम आये हो तो...
थोड़ा खुशियो का नजारा दिखलादो...

जो समेट लाए हो खुसियाँ...
जरा उनको बि

Shruti Gupta

मैं लिखना चाहती हूं अपनी कृतियों में सिंधुवों की निगलती उन लहरों को विकट शौक हो जिसका, विशाल सा रूप उसी विनाश के भय का, एक समरूप... मै #tum #yqbaba #kavita #hindipoetry #yqdidi #yqhindi #bestyqhindiquotes #कालजयी_श्रुति

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मैं लिखना चाहती हूं अपनी कृतियों में
सिंधुवों की निगलती उन लहरों को 
विकट शौक हो जिसका, विशाल सा रूप  
उसी विनाश के भय का,  एक समरूप...

 मैं जोड़ना चाहती हूं अपने गीतों को
 पवन के उस सन्नाटे से की जो ठीक 
 एक चक्रवात के परोक्ष स्थित रहता हो,
 जिसकी मौन किसी भी शोर से सर्व परे हो..
 
मैं लाना चाहती हूं अपने ग़ज़लों में 
दो रादीफों के मध्य की मूर्त वो ठहर
जिसके यथार्थ होने पर तय हो दो प्रिय 
के मध्य के प्रेम का वो अकथित ध्वंस...

 मैं लिखित चाहती हूं अपने लेखन में
 वह सर्व प्राकृतिक सौंदर्य जिसके गुण 
 अतुलनीय हो उसके रूप से - असाधारण 
 जैसे स्याही से लिखी एक सामान्य सी कविता। मैं लिखना चाहती हूं अपनी कृतियों में
सिंधुवों की निगलती उन लहरों को 
विकट शौक हो जिसका, विशाल सा रूप  
उसी विनाश के भय का,  एक समरूप...

 मै

amar gupta

मैं लिखना चाहती हूं अपनी कृतियों में सिंधुवों की निगलती उन लहरों को विकट शौक हो जिसका, विशाल सा रूप उसी विनाश के भय का, एक समरूप... मै #tum #yqbaba #kavita #hindipoetry #yqdidi #yqhindi #bestyqhindiquotes #कालजयी_श्रुति

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मैं लिखना चाहती हूं अपनी कृतियों में
सिंधुवों की निगलती उन लहरों को 
विकट शौक हो जिसका, विशाल सा रूप  
उसी विनाश के भय का,  एक समरूप...

 मैं जोड़ना चाहती हूं अपने गीतों को
 पवन के उस सन्नाटे से की जो ठीक 
 एक चक्रवात के परोक्ष स्थित रहता हो,
 जिसकी मौन किसी भी शोर से सर्व परे हो..
 
मैं लाना चाहती हूं अपने ग़ज़लों में 
दो रादीफों के मध्य की मूर्त वो ठहर
जिसके यथार्थ होने पर तय हो दो प्रिय 
के मध्य के प्रेम का वो अकथित ध्वंस...

 मैं लिखित चाहती हूं अपने लेखन में
 वह सर्व प्राकृतिक सौंदर्य जिसके गुण 
 अतुलनीय हो उसके रूप से - असाधारण 
 जैसे स्याही से लिखी एक सामान्य सी कविता। मैं लिखना चाहती हूं अपनी कृतियों में
सिंधुवों की निगलती उन लहरों को 
विकट शौक हो जिसका, विशाल सा रूप  
उसी विनाश के भय का,  एक समरूप...

 मै
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