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Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
"खटमल बोला अमीर से" खटमल बोला,अमीर से न मार सेठ,मुझे तीर से मैंने तो तेरा खून पिया है तेरे जिस्म के लहूं नीर से बहुत सी सदियां बीती, लहूं पीता रहा,शरीर से मुझे दर्द होता बोला,सेठ उन्हें भी दर्द होता है,सेठ खटमल बोला गंभीर से किन्हे,किन्हें सेठ बोला खटमल बोला,गरीब के जिनको मार ही डाला तूने ब्याज की जंजीर से खास तू पैसा कमाता मेहनत और तदबीर से लहूं पीना छोड़ देता इसी,वक्त नजीर से कह रहा है,खटमल अपने सच्चे जमीर से न पियेगा कभी लहूं गर सताना तू छोड़ देगा, रे सेठ झूठी शमशीर से दिल से विजय विजय कुमार पाराशर-"साखी" ©Vijay Kumar उपनाम-"साखी" खटमल बोला,अमीर से
Manish Yadav
Rain Day Images खटमल के डर से चारपाई चोड दे । जिंदगी वीरान है तो क्या जिंदगानी चोड दे। खटमल के डर से चारपाई चोड दे । जिंदगी वीरान है तो क्या जिंदगानी चोड दे।।
LOL
कभी दूधिया कभी श्यामल सी कभी काँटों भरी कभी मलमल सी ज़िन्दगी सदा ही है हसीं फिर नभ चूमे चाहे विहग सी या काट ले चाहे खटमल सी.. ©KaushalAlmora Song of the Night: खोया खोया चाँद खुला आसमां ( मो.रफी/ काला बाजार) #खटमल #kaushalalmora #life #रोजकाडोजwithkaushalalmora #ज़िन्दगी #yqd
Humayoun Naqsh
दिन फूलों के बीत रहे हैं पतझड़ की तरह, कोई घर से बाहर नहीं आता, जैसे रजाई में खटमल की तरह। दिन फूलों के बीत रहे हैं पतजड़ की तरह, कोई घर से बाहर नहीं आता, जैसे रजाई में खटमल की तरह। Sofia Gupta mudassir__ Yusuf The_heavyhearted_la
Pahadi
चाहता आज भी हूं मैं उसे पागल की तरह वो जो प्यासा है मेरे खून का खटमल की तरह रंग को देख कर ठुकरा न मेरी जाने गज़ल अपनी आंखों में बसा ले मुझे काजल की तरह रोज बिजली की तरह मुझपे कड़कती हो सुनो एक दिन मैं भी बरस जाऊंगा बादल की तरह बिन तेरे तू ही बता कैसे घसीटूं इसको जिंदगी लगती है टूटी हुई चप्पल की तरह ©Pahadi #flowers चाहता आज भी हूं मैं उसे पागल की तरह वो जो प्यासा है मेरे खून का खटमल की तरह रंग को देख कर ठुकरा न मेरी जाने गज़ल अपनी आंखों में बस
RV Chittrangad Mishra
आर वी चित्रांगद के कलम से चींटा की मिस चींटी के संग,जिस दिन हुई सगाई। चींटीजी के आंगन में थी,गूंज उठी शहनाई। घोड़े पर बैठे चींटाजी, बनकर दूल्हे राजा। आगे चलतीं लाल चींटियां,बजा रहीं थीं बाजा। दीमक की टोली थी संग में,फूंक रहीं रमतूला। खटमल भाई नाच रहे थे,मटका-मटका कूल्हा। दुरकुचियों का दल था मद में,मस्ताता जाता था। पैर थिरकते थे ढोलक पर,अंग-अंग गाता था। घमरे, इल्ली और केंचुएं,थे कतार में पीछे। मद में थे संगीत मधुर के,चलते आंखें मींचे। जैसे ही चींटी सजधज कर,ले वरमाला आई। दूल्हे चींटे ने दहेज में,महंगी कार मंगाई। यह सुनकर चींटी के दादा,गुस्से में चिल्लाए। 'शरम न आई जो दहेज में,कार मांगने आए। धन दहेज की मांग हुआ,करती है इंसानों में। हम जीवों को तो यह विष-सी,चुभती है कानों में।' मिस चींटी बोली चींटा से,'लोभी हो तुम धन के। नहीं ब्याह सकती मैं तुमको,कभी नहीं तन-मन से। सभी बाराती बंधु-बांधवों,को वापिस ले जाओ। इंसानों के किसी वंश में,अपना ब्याह रचाओ चींटा की मिस चींटी के संग, जिस दिन हुई सगाई। चींटीजी के आंगन में थी, गूंज उठी शहनाई। घोड़े पर बैठे चींटाजी, बनकर दूल्हे राजा। आगे चलतीं लाल
sandy
😊सकारात्मक_विचार😊 एका स्त्री ची एक सवय होती की ती रोज झोपण्या अगोदर आपले दिवभराचा आनंद एका वहीत लिहीत असे .... एका रात्री तिने लिहलेले की.