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Lalit Saxena
हमने ख़ुद को ज़िंदा जलते देखा है रोशन दिन आँखों में ढलते देखा है सांस-सांस पीर कसमसाती रहती मुर्दा सपने पांवपांव चलते देखा है उगते सूरज के जलवे देखे हर दिन उदास शाम को भी उतरते देखा है ख़्वाहिशें, सारे ही रंग उतार देती है उम्रदराज़ को भी, मचलते देखा है दरवाजे पर नहीं कोई दस्तक हुई हर सुब्ह उन्हें वैसे गुज़रते देखा है दिन बुरे हों, तो ये दरिया भी सूखे बुलंदियों को भी, बिखरते देखा है ©Lalit Saxena ग़ज़ल
ग़ज़ल
read moreVinod Mishra
Rakesh frnds4ever
White क्यों न रो पाए कोई कोई न सो पाए कोई दुनिया जिस परिस्थितियों में दम तोड़ दे,, उन हालातों में भी दबा /छुपा किसी अंजान /एकांत /खामोश जगह में चुपके छुपके आहें भर रहा है कोई क्यों न रो पाए कोई क्यों न सो पाए कोई जीवन की तमाम हर उदास / अंधेरी रातों में जहां लोगों को किसी अपने के कंधे ओर साथ के साए मिलते हैं वहीं उन तमाम अंधेरी / उदास / कहर बरपाने वाली रातों में संपूर्ण खामोशी से चीखता है कोई,, क्यों न चंदा है कोई,,,,,,,,,,,,,क्यों न सवेरा है कोई क्यों न रो पाए कोई ,,,,,,,,,,,,,,,,,,क्यों न सो पाए कोई....१... ©Rakesh frnds4ever #क्यों_न_रो_पाए_कोई #कोई_न_सो_पाए_कोई #दुनिया जिस #परिस्थितियों में दम तोड़ दे,, उन हालातों में भी दबा /छुपा किसी अंजान /एकांत /खामोश जगह
#क्यों_न_रो_पाए_कोई #कोई_न_सो_पाए_कोई #दुनिया जिस #परिस्थितियों में दम तोड़ दे,, उन हालातों में भी दबा /छुपा किसी अंजान /एकांत /खामोश जगह
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White जीना हैं अकेले फिर भी लोगों के पीछे दुख के मेले हैं किसी के साथ होते हुए भी ना जाने क्यों हम अब भी अकेले हैं जलते हैं अकेले ही यादों के दरिया में भी बुझती नहीं वो आग तफ़्दिशे जलन भी झेले हैं किसी के साथ होते हुए भी ना जाने क्यों मगर और भी अकेले हैं नसीब का लिखा वो ही जाने तक़दीर का दिया हुआ दर्द_ए _नसीब हम ने भी झेले है अब इस के बाद न जाने नसीब में क्या है ना आओ साथ हमारे जिंदगी में हमारे बहुत झमेले हैं ना याद आते अब वो लम्हे ना याद आते हो तुम कभी इस कदर मेरे सफ़र में ओ मुसाफ़िर कि अब तन्हाई इस कदर मेरी यादों में घुल गई कि ना अब कोई मिलता ना अब कभी बिछड़ता शायद अब हम अपने आप से भी नहीं मिलते कि अब हम अपने ध्यान से उतरे हुए से आसुओं के रेले हैं के ना अब कभी कहना मुझसे कि साथ चलने को तुम्हारे हम अपना सब कुछ छोड़ चलते हैं अब ना मिलेंगे हम ना वो हमारी मोहब्बत मिलेंगे तो सिर्फ हम और हमारी तन्हाई जिसको दिया तुमने और हमने वो जख्म सदियों से झेले है फिर ये खेल ना खेलो हमारे साथ समझ जरा ज़ख्मी हु और टूटे हुए इस कदर की फ़िर ना जुड़ सकू दोबारा जो खेल लोगों ने सदियों से खेले हैं मत आजमा ए ज़ालिम कि आवाज़ तक नहीं आएगी मेरे दर्द कि हम अब अकेले बहुत अकेले हैं ©Sonuzwrites #good_night ग़ज़ल ✍️
#good_night ग़ज़ल ✍️
read moreDr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी
White आज राज जवाब लिख देना, आज आँसु बिखेर देना, जो कहना है आज ही कह दो, कल शायद न हो, कोई लेना देना। #कलमसत्यकी ©Dr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी #कलमसत्यकी✍️©️ ज ही कह दो, कल शायद न हो, कोई लेना देना। #कलमसत्यकी
#कलमसत्यकी✍️©️ ज ही कह दो, कल शायद न हो, कोई लेना देना। #कलमसत्यकी
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